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बीकानेर,राजस्थानी भाषा की मान्यता के मुद्दे पर क्षेत्रीय सांसद और भारत सरकार में केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने जनता से कितने ही वादे किए हैं। खुद के स्तर पर किए गए प्रयासों का बढ़ चढ़ कर बखान किया। बयान दिया कि बस मान्यता मिलने वाली है। कुछ भी नहीं कर पाए? कारण स्पष्ट है वो कोई ठोस प्रयास नहीं कर पाए। बातों से ही रिझाते रहें हैं। मंत्री बनने के बाद से तो वे राजस्थानी भाषा के मुद्दे पर चुप है। इससे पहले वो राजस्थानी भाषा की मान्यता के मुद्दे पर मिलने गए शिष्ट मंडलों से वे जितने आश्वासन और वादे कर चुके हैं उनका विश्लेषण करें तो पाते हैं कि वो राजस्थानी भाषा की मान्यता के पक्के हिमायती हैं और सब कुछ करने को तैयार है। मेघवाल राजस्थानी भाषा भाषी करोड़ों लोगों की मायड़ संस्कृति, साहित्य, रीति रिवाज, परंपराओ की खुद ही दुवाई देते रहे हैं। राजस्थान विधानसभा से राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के सर्व सम्मति के प्रस्ताव को भी मानते रहे हैं। शायद केंद्र सरकार भाषा की मान्यता के मुद्दे पर तटस्थता की नीति पर काम कर रही है। अर्जुन राम मेघवाल में इस तटस्थता के विरुद्ध जाने का साहस नहीं है। कारण वे जन भावना पर नहीं सत्ता की भावना पर राजनीति कर रहे हैं। उनको पता ही है कि राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग पर एक पीढ़ी खप गई है। युवा पीढ़ी के राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग को लेकर आंदोलनरत लोगों ने उनके लोकसभा क्षेत्र में 21 दिनों तक बिना जूते पहने पैदल यात्रा की है। 21 फुट लंबा बीकानेर कलक्टर को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री के नाम का ज्ञापन दिया है। मेघवाल केंद्र में मंत्री है और बीकानेर के सांसद क्या इस जन भावना पर उनका भी कोई धर्म नहीं बनता? राजस्थानी मान्यता के मुद्दे पर क्या मेघवाल का रवैया मुंह दिखाने लायक भी है क्या? क्या वे अपनी पार्टी और सरकार को यह कहने की क्षमता रखते हैं कि अगर राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिली तो वे अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे और मंत्री पद से इस्तीफा देंगे ? ऐसा मेघवाल कतई नहीं कर सकते क्योंकि वे सत्ता सुख की राजनीति करते हैं।जन भावना और जनहित उनके यहां दोयम दर्जे में है। मेघवाल जी श्रीकोलायत से नव निर्वाचित विधायक अंशुमान सिंह से सीखो विधायक बनते ही राजस्थानी भाषा की मान्यता पर कैसे नई सरकार और देश का ध्यान इस मुद्दे पर आकर्षित किया है। आप बातें बनाने के अलावा कोई ठोस काम राजस्थानी की मान्यता के मुद्दे पर कर पाएं है तो बता दें। आप राजस्थानी के मुद्दे पर प्रदेश और देशभर में रह रहे प्रवासी राजस्थानियों को कैसे मुंह दिखाएंगे? लोग भले आपके सामने कुछ नहीं कहे पर मन में तो जानते ही है कि राजस्थानी भाषा के मुद्दे पर आपकी कहनी और करनी में कितना फर्क है। धिक्कार, सिर पर खला खेटर।

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