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बीकानेर,अजित फाउण्डेशन द्वारा मासिक संवाद श्रृंखला के तहत ‘‘जल स्रोत-निर्माण तकनीक और महत्त्व’’ पर शिक्षाविद् डॉ. रितेश व्यास का व्याख्यान संस्था सभागार में आयोजित हुआ। डॉ. व्यास ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जल स्रोतों का वर्तमान दौर में महत्त्व कम नहीं हुआ है। यह आज भी इतने प्रासंगिक है जितने निर्माण के समय थे। उस दौर में पानी की इतनी किल्लत नहीं थी, फिर भी इनका निर्माण बड़े मनोयोग से हुआ और आमजन तथा जीव-जन्तुओं को इनका लाभ मिलता था। लेकिन आज हर घर ‘नल’ ने इन जल स्रोतों के प्रति हमारा नजरियां बदल दिया है। जरूरत है इस नजरिए को बदलने की और इन जल स्रोतों को बचाने की। डॉ. व्यास शेखावाटी अंचल, बीकानेर, पोकरण आदि क्षेत्रों के जल स्रोतों के निर्माण की तकनीक और उनके महत्त्व पर प्रस्तुतिकरण द्वारा अपनी बात रखी।

कार्यक्रम की अध्यक्ष्यता करते हुए इतिहासवेता एवं पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. भंवर भादानी ने कहा कि अधिकांष जल स्रोतों का निर्माण उन इलाकों में अधिक हुआ है जहां बारिश कम होती थी और वह क्षेत्र रेगिस्तान से अटा हुआ था। इसका मतलब इन निवासियों को यह पता था कि हमारी आजीविका और जीविका इन्हीं से जुड़ी हुई है। उन्होंने मध्यप्रदेष, गुजरात और राजस्थान के अन्य क्षेत्रों के उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे देश में राजाओं और सेठ साहूकारों ने जल के संरक्षण के प्रति जागरूकता रखी थी। उन्होंने कहा कि हमारे मन्दिरों और हवेलियों में भी बारिष के पानी को संग्रहित करने के प्रमाण मिलते है, आवश्यकता है वर्तमान दौर में आने वाली पीढि को इसके प्रति जागरूक करने की।
कार्यक्रम की शुरूआत में संस्था समन्वयक संजय श्रीमाली ने संवाद आयोजित करने तथा संस्था की वर्तमान गतिविधियों पर प्रकाष डाला।
कार्यक्रम के अंत में शिक्षाविद् मोहम्मद फारूक सभी का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि इस तरह के आयोजन समय-समय पर अन्य शैक्षणिक संस्थाओं में भी होन चाहिए जिससे आमजन में जागरूकता आय। उन्होंने डॉ. व्यास एवं प्रो. भादानी जी का आभार व्यक्त किया कि उन्होंने व्यक्तिषः जाकर जल स्रोतों का अध्ययन किया और इतनी महत्त्वपूर्ण जानकारी हम लोगो को उपलब्ध करवाई।
कार्यक्रम में बाबूलाल छंगाणी, जुगल किशोर पुरोहित, अमित व्यास, मणिशंकर शर्मा, रमेश व्यास, मनन, हर्षित, अमन, मोनिका, सुषमा, रामगोपाल व्यास, मनोज आदि ने भी अपनी बात रखी।

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