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बीकानेर, काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) की एक स्टडी बताती है कि एक संक्रमित व्यक्ति के आसपास हवा में कोरोना वायरस 10 फीट या 3.04 मीटर तक हो सकता है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने शुक्रवार को लोकसभा में एक लिखित जवाब में सीएसआईआर की इस स्टडी के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि हवा की दिशा के साथ लंबी दूरी तक एयरोसोल (महीन कण) के जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि सावधानी बरतते हुए मास्क पहनने से हवा के जरिए संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है. एक और सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इंडियन SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (INSACOG) के जरिए भारत में कोरोना वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग की जा रही है.यह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की संयुक्त पहल है, जिनके अधीन वायरस के जीनोम में आने वाले बदलाव की निगरानी करने वाली 28 राष्ट्रीय लैब काम कर रही हैं.

हाल ही में INSACOG ने बताया था कि देश में कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट का प्रभुत्व बरकरार है जबकि वायरस के अन्य स्वरूपों से संक्रमण की दर में कमी आ रही है. भारत में मार्च और मई के बीच आई कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर के लिए डेल्टा वेरिएंट जिम्मेदार था, जिसकी वजह से हजारों लोगों की मौत हुई और लाखों लोग संक्रमित हुए. केंद्रीय मंत्री ने सदन में यह भी कहा कि देश में 20 दिसंबर 2020 से 19 जुलाई 2021 के बीच देश में 1,88,26,913 लोग कोविड-19 से संक्रमित हुए.

एयरोसोल 10 मीटर तक जा सकते हैं- प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार

इससे पहले भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार (PSA) के विजयराघवन ने बताया था कि एयरोसोल हवा में 10 मीटर तक जा सकते हैं. उन्होंने कहा था कि कोविड-19 से संक्रमित व्यक्ति द्वारा खांसने और सांस छोड़ने से निकलने वाली छोटी बूंदों (ड्रॉपलेट) या एयरोसोल के जरिए वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है. खांसने या छींकने पर बड़े साइज के ड्रॉपलेट 2 मीटर की दूरी तक जमीन की सतह पर गिर जाते हैं, वहीं एयरोसोल पार्टिकल हवा में ज्यादा दूरी (अधिकतम 10 मीटर) तक जा सकते हैं.

उन्होंने एक एडवाइजरी में कहा था कि संक्रमित होने वाले मरीजों को वेंटिलेशन वाले कमरों का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि एयरोसोल कमरे से बाहर जा सके. बंद जगहों में वायरस के कण जल्दी इकट्ठा हो जाते हैं और इससे उस जगह पर रहने वाले दूसरे लोगों में संक्रमण के तेजी से फैलने की संभावना होती है. खुले इलाके में संक्रमण के फैलने का खतरा कम होता है, क्यों कि वायरस के कण जल्दी नष्ट हो जाते हैं.

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