बीकानेर, पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, इण्डियन रेडक्रॉस सोसायटी तथा मोहन फाउंडेशन, जयपुर के संयुक्त तत्वाधान में देहदान तथा अंगदान हेतु जागरूकता कार्यक्रम पशुचिकित्सा महाविद्यालय बीकानेर के सभागार में शुक्रवार को आयोजित किया गया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में महाविद्यालय के अधिष्ठाता एवं संकाय अध्यक्ष प्रो. ए.पी. सिंह ने आगन्तुकों का स्वागत किया और बताया की मानननीय राज्यपाल महोदय के निर्देशन में इस विश्वविद्यालय ने रेडक्रॉस सोसाइटी का गठन युवाओं में सेवा भाव जागृत करने के उद्देश्य के साथ एम.ओ.यू. कर प्रारम्भ की गई और इसी उद्देश्य से गतिविधियां आयोजित की जा रही है। इस जागरूकता कार्यक्रम की सार्थकता तभी होगी जब आयोजित कार्यक्रम के उद्देश्यों पर विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं छात्र प्रेरणा लेकर स्वयं को उसी अनुरूप में ढालेंगे। मुख्य अतिथि इण्डियन रेडक्रास सोसाइटी के उपाध्यक्ष डॉ. तनवीर मालावत ने इस अवसर पर अंगदान की महत्ता को बताया। उन्होंने कहा कि रक्तदान शिविरों की भांति अंगदान शिविरों के आयोजन की आवश्यकता है। अंगदान हेतु मात्र 0.16 प्रतिशत लोग ही अंगदान के लिये आगे आते है। अंगदान के लिये हमें समाजिक सम्प्रदाय एवं धार्मिक मान्यताओं से उपर उठ कर लोगों को इस हेतु प्रेरित करने कि आवश्यकता है। इण्डियन रेडक्रास सोसाइटी, बीकानेर के सचिव विजय खत्री ने बताया अंगदान को महादान क्यों कहा गया है? इसमें लीविंग या मृत डोनर जिसके परिवार की सहमति होती है। वो व्यक्ति अपने हार्ट, लंग्स, किडनी, लीवर, पेनक्रियाज, इन्टसटाईन क्रॉनिया, स्वीन, जोईन्टस दानमेरो आदि अंग जरूरतमंद व्यक्ति को देते हैं और कोई भी जिसके यह अंग खराब होते हैं वह इन्हें प्राप्त कर पुनः अपना जीवन सुरक्षित जीने लगते है। उन्होंने बताया कि भारत में दस लाख लोगों में से एक व्यक्ति अंगदान करता है। प्रतिवर्ष भारत में 5 लाख लोगों की मृत्यु अंगों के अभाव में होती है। 2 लाख अन्धता पीडितों में से 50 हजार लोगों क्रॉनिया मिल पाता है। 20 लाख किडनी की जरूरत है परन्तु करीब 1700 बीमार लोगों को ही उपलब्ध हो पाती है। हार्ट 147 लोगों में एक को और 70 बीमार में से एक व्यक्ति को ही लीवर मिल पाता है। सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग की प्रो. डॉ. गरिमा खत्री ने शरीर दान के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की। उन्होंने बताया कि पुराणों के अनुसार महर्षि दधीचि ने अपने जीवित अवस्था में रहते अपनी अस्थियों को शस्त्र बनाने के लिए दान देने की सहमति प्रदान कर उदाहरण पेश किया। सन् 1948 से एनाटॉमिक एक्ट बनने पर कानूनी प्रक्रिया अपनाकर मेडीकल कॉलेजों को बॉडी मिलनी प्रारम्भ हुई। उन्होंने बताया मेडीकल के विद्यार्थियों को पढ़ाई के लिए मानव देह की अत्यन्त आवश्यकता रहती है। मृत शरीर का दान मृत्यु के उपरान्त 15 घण्टे में किया जा सकता है। मेडीकल के 10 बच्चों को पढ़ाने के लिए एक शव की आवश्यकता रहती हैं। बीकानेर मेडीकल कॉलेज में 250 विद्यार्थी हैं और वहीं इयूमन बॉडी 5-6 ही है। बॉडी डोनेशन की जागरूकता के लिये मेडीकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. गुंजन सोनी व ई.एन.टी. सर्जन डॉ. राकेश रावत के प्रयासों से सरदार पटेल मेडीकल के पूर्व 5 छात्र रहे चिकित्सकों ने अपना देह दान किया। इस अवसर पर अंगदान एवं देहदान विषय पर पेंटिंग कम्पीटिशन एवं स्लोगन प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है जिसके संयोजन डॉ. प्रतिष्ठा शर्मा है। कार्यक्रम के अंत में डॉ. अशोक डांगी ने सभी आगंतुको को धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर निदेशक अनुसंधान प्रो. हेमन्त दाधीच, परीक्षा नियन्त्रक प्रो. उर्मिला पानू फैकल्टी सदस्य, कर्मचारी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे। कार्यक्रम के आयोजन में डॉ. मनीषा मेहरा एवं डॉ. नीरज कुमार शर्मा का सहयोग रहा।
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