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बीकानेर,राजस्थान..कहने को तो यह सूबा रजवाड़ों की भूमि रहा है. जहां बलिदानों की अनगिनत कहानियां आपको हर गांव, कस्बों और शहरों की हवाओं में घुली हुई सुनाई पड़ेंगी. परन्तु इतिहास में जो बलिदान यहां के निवासियों ने इस मिट्टी के हित के लिए दिया वो बलिदान आज यहां का हर नागरिक अपने अनहित में देता नजर आ रहा है. हां बात अगर सूबे के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य के सन्दर्भ में की जाए तो यह तर्कसंगत भी प्रतीत होती है. 2018 में विधानसभा चुनाव के परिणामों ने राज्य में कांग्रेस को सत्ता के शिखर तक पंहुचाया.

राजस्थान में चाहे वो भाजपा हो या कांग्रेस दोनों के सामने चुनौतियां मिलती जुलती हैं

तब दिसंबर की गुलाबी ठंड वाली शामों में सचिन पायलट के ताजपोशी की खबरें समाचार चैनलों और अखबारों की हेडलाइंस भी बन रहीं थीं. लेकिन कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने अनुभव को युवा जोश पर तरजीह देते हुए कुर्सी अशोक गहलोत को थमा दी. तब की उन हल्की सर्द हवाओं वाले मौसम को अंगड़ाई लेते देख आज पूरे 4 साल बीतने को आए हैं. पर आज तक राजस्थान का वोटर अनभिज्ञ है कि उसका वोट उसके हित में कार्य कर रहा है या अनहित में.कांग्रेस के राज्य के 2 स्तंभ गहलोत और पायलट की लड़ाई, सत्ता के बंद गलियारों से होते हुए कब सड़कों तक आ गई पता ही नहीं चला. और खामियाजा भुगता जनता ने जो 4 साल बाद भी इस राज से अनजान है कि राज्य में राज कौन कर रहा है? कांग्रेस का वो तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष (पायलट) जिसने उनको सपने दिखाए थे राज्य की कायापलट करने के या वो जादूगर जिसकी जादूगरी जनता 1998/03 और 2008/13 में देख चुकी है.

पायलट समर्थक इस बात से परेशान हैं कि विपक्ष में रहते हुए सदन से सड़कों तक लड़ाई लड़ी उन्होंने और सत्ता सुख भोग रहे गहलोत समर्थक तो गहलोत को जानने वाले कह रहे जादूगर सब कुछ छोड़ सकता है पर जादू करना नहीं. वहीं हाल तो भाजपा के भी कुछ ठीक नहीं लग रहे.

भाजपा की हालत कुछ ऐसी है कि हर खिलाड़ी को लगता है कि वो टीम का कप्तान बन सकता है. पर हकीकत तो यह है कि ऐसे हर एक उस खिलाड़ी के टीम के मैदान में उतरते समय अंतिम दल में जगह बनाने के भी लाले पड़ते दिख रहें हैं. बहरहाल 2 महीने बाद जब घड़ी 2023 में कदम रखेगी तो फिर से एक बार वो सुगबुहाहट शुरू होगी आखिर 2023 में राज करेगा कौन? कहीं एक बार फिर से यह राज,,राज ही न बना रह जाए.

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