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बीकानेर,हाल ही में लम्पी वायरस के प्रकोप से मरती गायों की खबरों के बीच आपने एक वीडियो देखा होगा, जिसमें ड्रोन से एक बड़े मैदान में मृत पड़ी गायों को दिखाया गया था।यह बीकानेर का जोड़बीड़ इलाका है। जोड़बीड़ अपनी तरह की एक अलग ही जगह है, जो बीकानेर को अलग पहचान दिलाती है। 56.26 वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाके को मृत पशु-पक्षियों के डंपिंग यार्ड और गिद्धों के घर के रूप में जाना जाता है। यह बीकानेर शहर से करीब पन्द्रह किलोमीटर की दूरी पर है।

बीकानेर का जोड़बीड़ दक्षिण एशिया में अपने जैसा इकलौता इलाका है। जोड़बीड़ एक अभयारण्य में तब्दील किया जा चुका है ताकि भू-माफियाओं से इस जगह को बचाया जा सके। जहां पूरे देश में गिद्धों की संख्या अचानक से कम होती गई, वहीं मृत पशुओं के रूप में पर्याप्त भोजन होने से इस इलाके में गिद्धों ने अपना डेरा डाला और वंश वृद्धि की।

क्या है इतिहास

राजस्थान के जोधपुर के संस्थापक राव रावजी के पुत्र राजकुमार राव बीकाजी ने बीकानेर को बसाया था। एक युद्ध के दौरान उनका यहां आना हुआ और उन्होंने अपने घोड़ों और सैनिकों के साथ यहां डेरा डाला। तब जोड़बीड़ में उन्होंने अपना सैन्य ठिकाना बनाया और इसे रसाला नाम दिया। कालांतर में ये जगह मरे हुए ऊंटों और दूसरे पशुओं को फेंकने के काम आने लगी।गिद्धों का भोजन

जोड़बीड़ में जब मरे हुए पशुओं को स्थानीय निवासी, नगर निगम या अन्य स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा फेंक दिया जाता है तो फिर यहां मौजूद गिद्ध उनके शरीर की खाल नोच कर मांस खाते हैं। समय बीतने पर जब सिर्फ वहां हड्डियों का ढांचा रह जाता है तो उसे हड्डियों से बनने वाले विभिन्न उत्पाद बनाने के लिए ठेकेदार यहां से ले जाते हैं।

आते हैं प्रवासी पक्षी भी

जोड़बीड़ सिर्फ गिद्धों की प्रजातियों के लिए आवास की जगह नहीं हैं बल्कि यहां इतने बड़े इलाके में दूसरे जीव जन्तु भी रहते हैं। कई बार यहां प्रवासी पक्षियों का आना भी होता है। दो साल पहले थाईलैंड से 900 से अधिक चील यहां प्रवास के लिए आईं थी। चार हजार किलोमीटर दूर जोड़बीड़ में पहली बार इन ब्लैक काइट चील का आना हुआ था।आप अगर जाएं तो

अगर आप राजस्थान की यात्रा पर हैं और बीकानेर घूमने जा रहे हैं तो आपके लिए देशनोक मंदिर, जूनागढ़ किला, गजनेर पैलेस, लालगढ़ पैलेस, रामपुरिया हवेली के अलावा जोड़बीड़ भी घूमने की जगह हो सकती है। बशर्ते आप पर्यावरण से प्यार करते हैं। हां, इतना ऐहतियात जरूर रखिएगा कि नाक ढंकने को एक कपड़ा या मास्क आपके साथ हो। ये इलाका मृत पशुओं के कारण भयानक बदबूदार है। इसलिए यहां प्रकृति प्रेमी, फोटोग्राफर्स, पर्यावरणविद ही जाते हैं, आम टूरिस्ट जाने से बचते हैं।

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