बीकानेर,जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की मनोहरश्रीजी म.सा की सुशिष्या साध्वीश्री मृगावतीश्रीजी म.सा., बीकानेर मूल की साध्वीश्री सुरप्रियाश्रीजीम.सा (रेणुजी) व नित्योदयाश्रीजी म.सा. के सान्निध्य मे रांगड़ी चौक के सुगजी महाराज के उपासरे में चल रहे ’’ परमात्मा श्री श्ांंखेश्वर पार्श्वनाथ के सवा करोड़’’ जाप में 40 लाख सें अधिक गुरुवार को पूर्ण हुए । विभिन्न तपस्याओं में श्रावक-श्राविकाओं संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। सौभाग्य कल्पवृक्ष साधकों ने गुरुवार को उपवास रखा वे शुक्रवार को पारणा करेंगे।
सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट के मंत्री रतन लाल नाहटा ने बताया कि देश दुनियां में रोग, शोक महामारी व उपद्रव को निवारण के लिए 23 वें परमात्मा श्री श्ांखेश्वर पार्श्वनाथ के सवा करोड़ मंत्र जाप में गुरुवार तक 40 लाख से अधिक मंत्रों का जाप पूर्ण हो चुका है। ’’ऊं ही्र श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः’’ मंत्र परम प्रभावी, संकट परिहारक, मनोवांछित पूरक व विश्व शांति प्रदायक है। यह सर्व जीवों का कल्याण करने वाला है। जाप 13 जुलाई शुरू होकर 21 अगस्त तक 40 दिन चलेगा जिसमें प्रत्येक श्रावक श्राविका परमात्मा की 25 माला प्रतिदिन गिनने का साधना कर रहे हैं। चातुर्मास व्यवस्था समिति के संयोजक निर्मल पारख व मनीष नाहटा ने बताया कि नौ दिनों में एक साधक ने 24300 जाप पूर्ण कर लिए प्रतिदिन एक साधक 2700 माला का जाप कर रहा है। प्रतिदिन 108 माला के हिसाब से प्रत्येक श्रावक-श्राविका एक लाख 8 हजार मंत्रों का जाप करेगा। उन्होंने बताया कि निर्धारित लक्ष्य से अधिक संख्या में जाप होने का अनुमान है।
परमात्मा के वचनों में श्रद्धा रखें-साध्वीश्री मृगावती जी.म.सा. ने कहा कि परमात्मा के वचनों में श्रद्धा रखें। ज्ञाता धर्म सूत्र और मांगतुंग और मानवती के चरित्र और कथानक के माध्यम से बताया कि सम्यक ज्ञान, दर्शन व चारित्र में से एक की भी सही तरीके से पालना करने पर मनुष्य का कल्याण संभव है। परमात्मा के वचन और जैन धर्म के सभी संदेश जीव मात्र के कल्याण और आत्मोत्थान के लिए है। उन्होंने बताया कि गणधरों की श्रेणी रत्न, चतुर्विद संघ की श्रेणी स्वर्ण और सम्यक ज्ञान, दर्शन व चारित्र के साधकों की रजत श्रेणी है। श्रावक श्राविकाएं परमात्मा की वाणी, देव, गुरु व धर्म की पालना करते हुए उत्तम श्रेणी प्राप्त करने का सार्थक प्रयास करें।
पीठ पीछे की प्रशंसा-प्रशंसनीय-उन्होंने कहा कि पीठ पीछे किसी के कार्य, व्यवहार, साधना, आराधना व भक्ति की प्रशंसा सही प्रशंसा होती है। मुख के सामने व्यक्ति के प्रभाव, प्रलोभन, लोभ, मोह व डर से की गई प्रशंसा वास्तविक प्रशंसा नहीं होती । देश के राजा, संस्थान व परिवार के मुखिया को न्यायप्रिय, प्रजा,समाज व परिवार वत्सल, शांति व सद््भाव रखने वाला होना चाहिए। किसी की प्रशंसा उनकी अनुपस्थिति में होने पर ही उस की सफलता है।