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संयुक्त राष्ट्र संघ के भूमि संरक्षण से सम्बंधित सबसे बड़े संगठन यू एन सी सी डी द्वारा हर दो साल के अंतराल पर दिए जाने वाले भूमि संरक्षण से सम्बंधित दुनिया के सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड लैंड फ़ॉर लाइफ के लिए इस बार भारत के प्रोफेसर श्यामसुंदर ज्याणी द्वारा विकसित पारिवारिक वानिकी अवधारणा को चुना गया है I श्री गंगानगर जिले की रायसिंहनगर तहसील के गांव 12 टी. के.  के मूल निवासी व वर्तमान में बीकानेर के राजकीय डूंगर कॉलेज में समाजशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर श्यामसुंदर ज्याणी पिछले दो दशक से पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थल में पेड़ को परिवार का हिस्सा बनाकर जमीनी स्तर पर सकारात्मक बदलाव लाने में कामयाब हुए हैं I   इस बेहद प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार हेतु दुनियाभर से सरकारों, संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठनों, अलग—अलग क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा भूमि संरक्षण हेतु कार्य कर रही संस्थाओं व व्यक्तियों का मनोनयन किया जाता है उसके पश्चात् यू एन सी सी डी द्वारा गठित अंतर्राष्ट्रीय निर्णायक मंडल द द्वारा गहराई से उन व्यक्तियों/संगठनों के कार्यों की समीक्षा करके कुछ नामों को अंतिम तौर पर फाइनलिस्ट के रूप में जारी किया जाता है I वर्ष 2021 के लिए पूरी दुनिया से 12 लोगों/संस्थाओं को फ़ायनलिस्ट घोषित किया गया और आज विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोधी दिवस पर कोस्टा रिका में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में इस वर्ष के पुरस्कार हेतु प्रोफ़ेसर ज्याणी  के नाम की घोषणा की गयी । हालांकि इस बार अंतिम  12 नामों  में भारत से ज्याणी के अलावा सदगुरु  जग्गी वासुदेव के ईशा फ़ाउंडेशन और दुनियाभर में चर्चित उनके कार्यक्रम रेली फ़ॉर रीवर को भी शामिल किया था लेकिन अंतिम तौर पर ज्याणी के कार्यों को तरजीह देते हुए इस पुरस्कार हेतु चुना गया है। आज इस पुरस्कार की घोषणा हुई है और अगस्त के आखिर में चीन में आयोजित होने वाले विशेष समारोह में मुझे इस पुरस्कार से नवाजा जाएगा साथ ही पुरस्कार समारोह में प्रो ज्याणी का विशेष भाषण होगा, अगले साल आयोजित होने वाले COP यानि कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ जिसमें दुनिया के 195 देशों के प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या पर्यावरण मंत्रालय  की अगुवाई में हिस्सा लेते हैं उसमें भी प्रोफेसर ज्याणी को खास तौर से आमंत्रित किया जाएगा जहां वे उन सभी देशों के प्रतिनिधिमंडलों को यह बताएंगे कि पारिवारिक वानिकी के जरिए किस प्रकार से वे परिवार के स्तर पर पर्यावरण संरक्षण व पारिस्थितीकी संतुलन का बुनियादी विचार और संवेदना बोध विकसित करके पर्यावरण संरक्षण के प्रति स्थानीय समझ व योगदान को बढ़ा रहे हैं और किस तरह से ये सभी देश अपने -अपने देशों में इस विचार को समुदाय से जोड़ सकते हैं I इसके अलावा भी अगले दो वर्षों तक यू एन सी सी डी  के अम्बेसेडर के तौर पर दुनियाभर में भूमि संरक्षण के प्रयासों को गति व मजबूती देने में प्रोफेसर ज्याणी की अहम और वैश्विक भूमिका रहेगी और ज्याणी के वीज़ा से लेकर आने-जाने , रहने आदि सभी तरह की व्यवस्थाओं का पूरा खर्च व समस्त जिम्मेदारी पूरी तरह से यू एन सी डी डी द्वारा वहन की जाएगी I इस तरह प्रोफेसर ज्याणी को हासिल इस सम्मान के जरिए भारत को भूमि संरक्षण के क्षेत्र में वैश्विक नेता की हैसियत से कार्य करने का अवसर मिलेगा I यू एन सी सी डी ने ज्याणी की पारिवारिक वानिकी अवधारणा को वनीकरण का अनूठा विचार बताते हुए इसे पारिस्थितीकी अनुकूल सभ्यता के विकास के एक प्रभावी तरीके के तौर पर उल्लेखित किया है और लिखा है कि 15000 से अधिक गांवों के दस लाख से ज्यादा परिवारों को जोड़ते हुए ज्याणी द्वारा 25 लाख वृक्षारोपण करवाया जा चुका है I उल्लेखनीय है कि ज्याणी के लगाए जंगल आज फेफड़ों का काम कर रहे हैं I राजकीय डूंगर कॉलेज परिसर में ही ज्याणी ने 6 हैक्टेयर भूमि पर 3000 पेड़ों का एक जंगल खड़ा कर दिया है जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित पैनल के फार्मूले के अनुसार गणना करने पर आज की तारीख में 1 अरब 8 करोड़ रुपए मूल्य की ऑक्सीजन उत्पन्न कर रहा है I पारिवारिक वानिकी के प्रणेता ज्याणी अपने इस वन खंड को संस्थागत वन कहते हैं I बकौल ज्याणी ” संस्थागत वन मानव निर्मित जंगल की एक नई श्रेणी है जो विद्यार्थियों व स्थानीय समुदाय को सतत वन प्रबंधन के तरीके सिखाती है और पारिवारिक वानिकी के जरिए उन्हें हैड,हैंड व हार्ट तीनों ही तरह से पेड़ व पर्यावरण से जोड़ती है I यह वनीकरण के साथ-साथ क्रियात्मक पर्यावरणीय शिक्षा और जलवायु सशक्तिकरण की एक प्रक्रिया है I मैंने इस जंगल को शांतिदूत गांधी को समर्पित किया है और इस मॉडल को आगे बढ़ते हुए स्कूली शिक्षकों व ग्रामीण युवाओं के सहयोग से पश्चिमी राजस्थान में 170 गांधी संस्थागत वन विकसित करवा दिए हैं यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा I”
डूंगर कॉलेज में विकसित इस संस्थागत वन में पेड़ों की करीब 100 किस्में हैं तो कई तरह की मरुस्थली घास व औषधीय पादप संरक्षित है I हिमाचल प्रदेश के वानिकी प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षु वन अधिकारियों के तीन दल इस जंगल में प्रयुक्त हो रही सतत वन प्रबंधन तकनीकों को सीखने हेतु आ चुके हैं तो प्रदेश के वन मंत्री व उच्च शिक्षा मंत्री  भी इसका विशेष तौर से भृमण कर चुके हैं I पिछले माह आई यूजीसी की नैक निरीक्षण टीम ने भी वानिकी सम्बन्धी ज्याणी के कार्यों को बेस्ट प्रैक्टिस में शामिल किया जिसका कॉलेज की रैंकिग में विशेष योगदान रहा I उनका पेड़ को परिवार का हरित सदस्य मानने का आह्वान लोगों के लिए नए किस्म का पारिवारिक बोध बनता जा रहा है इस कारण धार्मिक मेलों में रूंख प्रसाद और  तमाम तरह के रीति -रिवाजों से वृक्षारोपण तेजी से जुड़ता चला जा रहा है I जमीनी स्तर की गतिविधियों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी 70 हजार लोग ज्याणी से जुड़े हुए हैं जिन्हें ज्याणी हर सुबह हरित प्रणाम के सम्बोधन के साथ पेड़ व पर्यावरण सम्बन्धी बारीक जानकारियां देते हैं और दूर-दराज में उनकी इस हरित मुहिम को आगे बढ़ा रहे पारिवारिक वानिकी कार्यकर्ताओं के कार्यों से अवगत कराते हैं I ज्याणी के जुनून की चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत यहां तक कह चुके हैं कि ” सरकार से मिलने वाले वेतन को पेड़ लगाने में खर्च करने वाले ज्याणी का  पेड़ के प्रति यह जुनून पागलपन की हद तक जाता है I” पिछले साल कोरोना के डरावने माहौल के बीच शिक्षक संघ शेखवत व पारिवारिक वानिकी कार्यकर्ताओं  को साथ लेकर ज्याणी ने प्रदेश के गांव -ढाणी तक घर-घर सहजन अभियान को पंहुचाकर 29 जिलों में 14 लाख सहजन रोपित करवा दिए Iज्याणी ने इस सम्मान को किसानों को समर्पित करते हुए पारिवारिक वानिकी मुहिम से जुड़े लाखों परिवारों, विद्यार्थियों, युवाओं , शिक्षकों व यू एन सी सी डी का आभार व्यक्त किया है I ज्याणी ने इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मान को किसान वर्ग को समर्पित करते हुए कहा कि चूंकि मैं किसान परिवार से हूँ इसलिए मैं इसे हमारी पूरी कौम को समर्पित करता हूँ I ज्याणी के पिता और वन विभाग से सेवानिवृत्त निरीक्षक के आर ज्याणी ने कहा कि ” मेरे बेटे की यह उपलब्धि हमारे परिवार के साथ-साथ पूरे प्रदेश, देश और पूरी किसान बिरादरी के लिए गर्व की बात है I” ज्याणी की पत्नी और इस मुहिम में हर उनके साथ खड़ी कविता ज्याणी ने कहा कि ” पति की यह उपलब्धि निश्चित ही गौरवान्वित करने वाली है पिछले बीस साल से ज्याणी जी के लिए पेड़ ही उनका परिवार बन चुका है उनके इस समर्पण ने मुझे भी अपने दैनिक जीवन की दुश्वारियों की परवाह छोड़ उनके इस मिशन को आगे बढ़ाने हेतु प्रेरित किया , आज उनके त्याग और उनके विद्यार्थियों की अपने शिक्षक के प्रति  श्रद्धा व समर्पण को वैश्विक मान्यता मिली है I” अब सरकारों को चाहिए कि वो ऐसे लोगों की सराहना से आगे बढ़ते हुए ऐसे मॉडल को खुद के स्तर पर लागू करें ताकि देश -प्रदेश को इसका लाभ मिल सके , समाज को भी चाहिए कि कोरोना में फ्रंट लाइन पर खड़े वर्कर तथा ऐसे पर्यावरण कार्यकर्ताओं को असली नायक समझें ताकि हम कल की मुश्किलों का बेहतर ढंग से मुकाबला कर सकें I

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