बीकानेर,लोक कला, गायन नृत्य और संस्कृति की संर्वधक विरासत संस्था के संस्थापक और टी.एम. ऑडिटोरियम के सृजक टोडरमल लालानी ने अपने 90 वे जन्मोत्सव पर बीकाणा म्यूजिक ग्रुप की ओर से टी एम ओडिटॉरियम में लोक संगीत, कालबेलिया नृत्य और स्नेह भोज का आयोजन कर धनाढ्य समाज को बदले युग में सांस्कृतिक परम्पराओं की तरफ लौटने का संदेश दिया है। संदेश यह भी है कि कलाकारों को प्रोत्साहन दें और कलाओं को पोषित करें। उन्होंने खुलकर कलाकारों को बख्शीश दी।संदेश है कि जिंदगानी के ये भी मायने है। कौन से मायने, क्या मायने? उम्र 90 वर्ष। उलास, उमंग की अभिव्यक्ति तीन साल के बच्चे की तरह। जो करोड़पति, अरबपति लोग सम्पन्नता और खुशहाली में जी रहे हैं, जरूरी नहीं की उनके 70, 80 या 90 की वय में बचपन वाली उमंग उलास भरी हो। जीवन जीना केवल धन कमाकर भौतिक संसाधनों से सुखी होना नहीं है, बल्कि अलग अलग लोगों के मायने अलग अलग है। टोडरमल लालानी का 90 वा जन्मोत्सव राजस्थानी लोक संस्कृति समारोह बनकर उभरा। राजस्थानी लोक गीतों की ऐसी भावपूर्ण प्रस्तुति की लोक गीतों के रसियों के लिए ये आयोजन यादगार बन गया। पूरे आयोजन में वे गायक और नर्त्तकी कलाकारों के साथ झूमते रहे। गाते और ठुमके लगाते रहे। जैसे 3 वर्ष का बच्चा अपने जन्म दिन के आयोजन पर किलकारी मारता है, झूमता है गाता है ठीक वैसे ही 90 वर्ष के लालानी ने किया । और तो और लालानी का सान्निध्य पाकर कलाकारों का उत्साह भी आकाश चढ़ता दिखाई दिया। वे कलाकारों के साथ कलाकार बनकर रहे। ऐसा प्रतिष्ठापूर्ण बिना औपचारिकता वाले इस कार्यक्रम में बीकाजी ग्रुप के फना बाबू, मेघ राज सेठिया, सुमेर मल दफतरी, पूर्व न्यास अध्यक्ष महावीर रांका, पूर्व महापौर नारायण चोपड़ा, कन्हैया लाल बोथरा, चंपा लाल डागा, टी.आर बोथरा, डॉ जे एम मरोटी, डा.जी. एस जैन, लूणकरण छाजेड़, सोहन लाल बैद, युवा पत्रकार सुमित शर्मा, कुछेक वकील व सीए सहित साहित्य, नाट्य और संगीत नृत्य कला संस्थाओं के प्रतिनिधि, व्यवसायी और युवा भी शरीक हुए। जो कला साधक या संगीत नृत्य को समझते हैं उनके लिए तो शानदार स्नेह भोज से ज्यादा स्वाद संगीत नृत्य का ही रहा होगा। विरासत संस्था के संस्थापक टी.एम. लालानी एक सफल व्यवसायी के अलावा, साहित्त्य, संगीत, कला , संस्कृति के उपासक है। भारतीय साहित्य विधा का किसी भी अक्ष से वे अछूते नहीं है। कला, साहित्य, संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बीकानेर में खुद ने अपने वित्तीय संसाधनों से ऑडिटोरियम बनाया है। यहां कला, साहित्य , संस्कृति संर्वधन के लिए साल भर में किसी अकादमी से ज्यादा कार्यक्रम होते हैं। वे फिल्मी गीतों, कहानियों और क्रिकेट की बारीकियों की इतनी सूक्ष्म व्याख्या करते है कि सुनते ही रहने का मन करता है। लालानी जी को आमचे, चमचे इतने घेर रहते हैं कि पूछो मत। उनको सब दूसरों की देखी और कही पर ही निर्भर रहना होता। वैसे लालानी जी केवल कला को आत्मसात कर अनुभूतियों के सुख में जीने वाले नहीं है वे खुद कला सृजक, कला संप्रेषक , कलाकारों की प्रेरणा और मार्गदर्शक भी हैं। कलाओं और कलाकारों को उनका पूरा संरक्षण है। कलाकारों का सम्मान भी। आयोजन में शामिल धनाढ्य महानुभाव भी कलाओं के संरक्षक बनकर जीवन के मायने बदल सकते हैं।
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