बीकानेर,शख्सियत से संवाद की तीसरी कड़ी में दक्ष सिक्योर की टीम का संवाद हुआ बीकानेर की एक युवा शख्शियत से जिसे लोग गोपाल सिंह के नाम से पहचानते हैं। लोक के आलोक को युवाओं के जीवन में बड़ी ही सरलता से उतारने में सिद्धहस्त इस शख्सियत के खाते में राजस्थान कबीर यात्रा जैसा बड़ा नाम जुड़ा हुआ है।
अपनी किशोरावस्था में एन सुब्बाराव जैसे दिग्गजों के युवा कार्यक्रम की ऊँगली पकड़कर आगे बढ़ते हुए गोपाल सिंह ने युवावस्था की दहलीज पर आते-आते भारत के नक्शे पर अपनी यात्राओं की गहरी छाप छोड़ दी थी और यहीं से उनके हृदय में बीज पड़ा भारत के गांवों में पसरी समृद्धि को सीखने, परखने, समझने और अंततः लोक के माध्यम से उसे युवाओं तक लाने का।
इस कार्यक्रम की तीसरी कड़ी के संवाद में गोपाल ने दो बातों को दक्ष की टीम के सामने बड़े पुरजोर तरीके से रखा। पहला था यात्राओं के माध्यम से जीवन में बहुत कुछ सीखने का और दूसरा था कि जब आप भारत के किसी भी गांव में जाएं तो कुछ देखने के लिये ना जाएं बल्कि कुछ भी देखने के लिये जाएं। उनका यह दूसरा कथन अपने आप में जिस रहस्य को समेटे हुए था, अपनी पूरी चर्चा में बड़ी ही सरलता से गोपाल ने इस टीम के सामने उस रहस्य को सिरा दर सिरा खोल कर रखने की सार्थक कोशिश की। भारतीय ज्ञान परंपरा, उसके लोक में बसी हुई संस्कृति – उत्सव और सबसे ऊपर वाणियों के माध्यम से लोक तक पसरी हुई अनंत काल से जारी संतों की गायकी जिसके गूढ़ और चोट करते हुए शब्द कब युवाओं के अंतरमन में रच बस जाये यही बस कुल जमा पूंजी है गोपाल की, कि जिसके सामने आज के युग में हर दूसरा आदमी बौना ही लगता है।
कंपनी के रिसर्च एनालिस्ट अंकित मोहता यात्राओं से सीखने की बात को जहां पहले से समझते थे किंतु गोपाल के साथ आज के संवाद ने उनकी सोच को इतना समृद्ध बनाने का प्रयास किया कि अंकित खुद अब कहते हैं की यात्राओं के बारे में जो मेरी पुरानी सोच थी उसे अब नवीन कलेवर के साथ अगर आज मैं अपने आप में उतार पा रहा हूं तो यह केवल गोपाल जी के साथ आज के संवाद के कारण ही है। इस संवाद के बाद में अमन बडगूजर का यह कहना था कि गोपाल जी खुद तो इस संवाद को अवश्य परिपूर्ण करके गए हैं किंतु मेरे हृदय के भीतर सवालों की अनगिनत धार उनके जाने के बाद बहने लगी है। जीवन और भारतीय लोक परंपराओं को तो इस तरह मैंने पहले कभी पहचाना ही नहीं था। पलक साध अपने विस्मय को छुपाने का प्रयास न करते हुए कहती है कि मेरे जीवन में कॉलेज तक की यात्रा में ऐसा अनुभूत करने का अवसर मुझे शायद पहले कभी नहीं मिला था जैसी अनुभूति गोपाल जी से संवाद करने के बाद मुझे मिली है और जीवन के प्रति मेरे नजरिए को इसने एक नई पहचान देने की कोशिश की है।
शशांक शेखर जोशी ने गोपाल सिंह का उनकी कंपनी के आग्रह की रक्षा करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि एक शख्सियत के रूप में गोपाल का चुनाव करना शायद कंपनी प्रबंधन के लिए एक दमदार फैसला था क्योंकि अगर उनसे यह संवाद ना होता तो टीम के लिये यह समझना मुश्किल होता कि यात्राओं और लोक के माध्यम से भीतर मन के सवालों को खोजना आपाधापी वाले आज के इस जीवन में कितना कठिन सा हो गया है। शशांक ने समाहार करते हुए बताया कि गोपाल के साथ का संवाद इतना सार्थक रहा कि कॉर्पोरेट जगत में काम करने वाले लोगों के लिए यह संवाद वाकई में एक रहस्योद्घाटन से कम नहीं है। जिसके बूते जीवन को सरस बनाया जाना बिल्कुल सरल जान पड़ता है।