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बीकानेर,जोधपुर,जोधपुर हाई कोर्ट ने आज राजस्थान की गोचर भूमि, आगौर, औरन, नदी, तालाब, नाड़ी, सड़क, रास्ता और रेलवे की भूमि पर से अवैध कब्जे हटाने के आदेश जारी किए हैं। इस निर्णय का विशेष महत्व है, क्योंकि गोचर भूमि पर अवैध अतिक्रमण राज्य में पशुधन के लिए चारागाह की उपलब्धता को सीधे प्रभावित करता है। इस आदेश से राजस्थान के पाली जिले के ग्रामीण इलाकों में चारागाह और अन्य सार्वजनिक भूमि को सुरक्षित रखने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है।

राजस्थान के कई जिलों में अवैध कब्जे के कारण गोचर भूमि का ह्रास हो रहा था, जिसके परिणामस्वरूप पशुओं के लिए चराई का संकट पैदा हो गया था। इसी मुद्दे को लेकर पाली जिले के निवासी और गोचर भूमि संरक्षण कार्यकर्ता पोपटलाल राणावत ने जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने इस मामले को न्यायालय में उठाकर गोचर भूमि सहित अन्य सार्वजनिक भूमि पर किए गए गैरकानूनी कब्जों को समाप्त करने की मांग की थी।

न्यायालय के इस आदेश से सरकारी तंत्र पर जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वह समयबद्ध तरीके से इन अतिक्रमणों को हटाए और भूमि को उसके मूल उद्देश्य के लिए पुनर्स्थापित करे। यह निर्णय न केवल पशुधन के लिए राहत का कारण बनेगा बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और जल-संरक्षण जैसे आवश्यक मुद्दों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगा। अदालत के इस निर्णय से किसानों, पशुपालकों और ग्रामीण समुदायों को एक स्थायी समाधान की आशा है, जो कई वर्षों से इस समस्या का सामना कर रहे थे।

इस ऐतिहासिक फैसले में स्वर्गीय दीपचंद सोलंकी का योगदान भी एक प्रेरणा का स्तंभ बना हुआ है। 1956 में गोचर भूमि आरक्षण विधेयक पारित करवाने में उनका योगदान ग्रामीण समाज के लिए एक प्रेरणास्रोत है। उनके प्रयासों से ही राजस्थान में गोचर भूमि की सुरक्षा की भावना जागृत हुई थी। आज न्यायालय के आदेश को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि उनकी सोच और समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बने रहेंगे।

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