बीकानेर,राष्ट्रीय लोकतंत्र के भीतर भी देश में एक लोकतंत्र है। जातीय संगठन, सामाजिक संगठन और विभिन्न संस्थाओं के भी चुनाव होते हैं। जो ठीक राष्ट्रीय लोकतंत्र की तर्ज पर ही होते आए हैं। देश में जो जातीय संगठन जितना मजबूत हैं वो जाति लोकतंत्र में सत्ता का उतना ही ज्यादा लाभ लेने में सक्षम हैं। आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में विडम्बना है कि जातीय संगठन का मजबूत होना नितांत आवश्यक हो गया है। गुर्जरगौड समाज देश में खास तौर पर उत्तर और मध्य भारत में बड़ी संख्या में है। लोकतंत्र में अपना प्रभुत्व बनाने के लिए इस समाज को अभी भी और मजबूती से संगठित होने की जरूरत है। गुर्जरगौड समाज की जागृति लाने में ओम प्रकाश जोशी ने उल्लेखनीय कार्य किया है। भागीरथ शर्मा और उनकी पूरी टीम ने समाज को जागृत और संगठित करने में योगदान से समाज की नई पीढ़ी वाकिफ है। जोशी ने समाज की जागृति के लिए जो भी किया उसकी सराहना की जानी चाहिए। उनका योगदान स्तुत्य ही है। और भी बहुत सारे ऐसे समाज के लोग हैं जिनका भी योगदान है। इस योगदान का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि प्रायोजित ढंग से उनका गुट ओम प्रकाश जोशी को महासभा का निर्विरोध अध्यक्ष बनाने का अभियान छेड़ दें। ऐसा प्रयास समाज में जडता और गुटबंदी लाता है। लोकतंत्र का विकास बहुमत के चुनाव से होता है। जो निर्विरोध महासभा अध्यक्ष बनाना चाहते हैं वे समाज में नए नेत्तृत्व के विकास में बाधक है। जोशी को अपने समकक्ष समाज के अन्य व्यक्ति को भी खड़ा होने देना चाहिए। वे भले ही जोड़ तोड़कर निर्विरोध महासभा अध्यक्ष बन जाए। ऐसा करके अपनी मान प्रतिष्ठा, साख और राजनीतिक पूछ भले ही बना लें। इस तरह से महासभा अध्यक्ष बनने में समाज का भला नहीं हो सकता। इससे संगठन लोकतांत्रिक नहीं होकर कोकस बन जाता है। जिनके मन में विरोध की भावना है वे जुड़ेंगे नहीं विरोध ही करते रहेंगे। चुनाव जीत कर अध्यक्ष बनाना सब की स्वीकार्यता का परिमाप है। ऐसे अध्यक्ष पद पर आसीन होने की आलोचना नहीं हो सकती। उसकी कार्य प्रणाली की भले ही आलोचना हो। तंत्र गौतम सभा के एक कार्यक्रम में पिछले दिनों जोधपुर में महासभा के जोशी को निर्विरोध अध्यक्ष बनाने की अपील हुई वो समाज के शीर्ष नेताओं और प्रतिनिधियों की अपील नहीं हो सकती है। समाज के शीर्ष नेता और प्रतिनिधि ऐसा करते हैं तो फिर उनकी विश्वनीयता संदिग्ध है। जोशी को निर्विरोध महासभा अध्यक्ष बनाने के जो भी लोजिक दिए जा रहे हैं वे जोशी के कद को छोटा करने वाले हैं। कमल जोशी, गोवरधन जोशी, सुनील जोशी, गौतम सभा के माधो प्रकाश सांखी, दुष्यंत राणेजा, सत्यनारायण_बस्तवा, हरिद्वार गौतम आश्रम के पदाधिकारी दिनेश_शर्मा, सोनाराम पंचारिया, जवाहरलाल उपाध्याय , गंगाविशन पंचारिया, माणक जोशी, ललित सांखी, मोहन जोशी, राजकमल पंचारिया, प्रेम सांखी बेलवा, रामेश्वरम लाल जाजड़ा, झूमरलाल गौतम, महेश सांखी, किशन सांखी, रामस्वरूप पंचारिया, राजेश जी जाजड़ा , प्रकाश राणेजा जो ओम प्रकाश जोशी के समर्थक माने जा सकते हैं। इन्होंने ओमप्रकाश जोशी को निर्विरोध अध्यक्ष के अभियान की तरफदारी की है। अगर जोशी कि इतनी ही स्वीकार्यता है तो उनके समर्थकों को यह अपील की जरूरत नहीं है कि 15 अक्टूबर को हरिद्वार पहुंचकर ओमप्रकाश जोशी के नामांकन में भाग लें और उन्हें निर्विरोध राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की दिशा में अपना योगदान दें। ओम प्रकाश जोशी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बेशक बने, परन्तु ऐसा प्रायोजित खेल खेलकर नहीं। इसकी स्वीकार्यता कितनी होगी? इससे समाज का हित कितना होगा? य़ह बात समझने की है।
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