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बीकानेर,स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीन “स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर” पर यूके (यूनाइटेड किंगडम) से डिजाइन पेटेंट मिलने के बाद अब पेटेंट कार्यालय, भारत सरकार से भी डिजाइन पेटेंट मिल गया है। कृषि विश्वविद्यालय की डॉ. मनमीत कौर, डॉ. वाई. के. सिंह, सुश्री शौर्या सिंह, डॉ.अरुण कुमार एवं डॉ.पी. के. यादव को ये डिजाइन पेटेंट दिया गया है। विदित है कि इससे पूर्व पिछले वर्ष ही एसकेआरएयू को बाजरा बिस्किट समिश्रण पर फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी से पेटेंट मिला था।

कुलपति डॉ अरुण कुमार ने कहा कि ये खुशी की बात है कि कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीन “स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर” पर यूके से डिजाइन पंजीकरण (डिजाइन पेटेंट) मिलने के बाद भारत में भी डिजाइन पेटेंट मिला है।कुलपति ने बताया कि फसल अवशेष प्रबंधन हेतु वर्तमान में जो मशीनें हैं वे सब्सिडी के बाद भी काफी महंगी हैं। लिहाजा आम किसान उसका उपयोग नहीं कर पाता। लेकिन “स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर” मशीन उनसे करीब चार गुना कम कीमत पर ही उपलब्ध हो सकेगी। लिहाजा कृषि विश्वविद्यालय की यह उपलब्धि अब पराली एवं अन्य फसल अवशेषों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर पाएगी।

कृषि महाविद्यालय अधिष्ठाता डॉ पीके यादव ने बताया कि फसल अवशेष प्रबंधन लम्बे समय से देश में ज्वलंत समस्या बनी हुई है। जिसका विभिन्न प्रयासों के बाद भी निराकरण नही हो पा रहा है। ऐसे में कृषि विश्वविद्यालय द्वारा बेहद कम कीमत पर निर्मित मशीन ”स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर” आने वाले समय में फसल अवशेष प्रबंधन के क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रभाव ला सकती है।

सह आचार्य डॉ वाई.के.सिंह ने बताया कि खुशी की बात है कि यूके (यूनाइटेड किंगडम) से डिजाइन पंजीकरण (डिजाइन पेटेंट) मिलने के कुछ ही समय बाद ही भारत सरकार ने भी डिजाइन पंजीकरण (डिजाइन पेटेंट) प्रदान कर दिया है। उन्होने मशीन के कार्य करने को लेकर बताया कि फसल कटने के बाद जो फसल अवशेष रह जाते हैं उसे ये मशीन छोटे छोटे टुकड़ों में काट कर पूरे क्षेत्र में फैला देती है। जो जैविक खाद में परिवर्तित होकर फसलों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराता है।

सहायक आचार्य डॉ मनमीत कौर ने बताया कि कुलपति डॉ अरुण कुमार की प्रेरणा, मार्गदर्शन एंव दिशा-निर्देशन में विश्वविद्यालय को यूके और भारत सरकार से ये डिजाइन पंजीकरण (डिजाइन पेटेंट) मिला है। साथ ही बताया कि जुलाई 2023 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित एक वर्किंग पेपर के अनुसार भारत प्रतिवर्ष करीब 650 मिलियन टन फसल अवशेष उत्पन्न करता है। किसानों द्वारा अधिक फसल पैदा करने की प्रतिस्पर्धा के चलते फसल अवशेषों को अपशिष्ट मानकर त्वरित निपटान के लिए जला देना आम बात हो गई है। जबकि फसल अवशेष जलाने से ना केवल महत्वपूर्ण बायोमास का नुकसान होता है बल्कि यह प्रदूषण वृद्धि में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। फसल अवशेष दहन से मृदा की उर्वरता भी कम हो रही है एवं मानव स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है।

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