बीकानेर। वैसे तो बरसाने की लठमार होली दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध है, लेकिन राजस्थान के बीकानेर की होली भी अपने अलग अंदाज के चलते काफी मशहूर है. अल्हड़ मस्ती, फाल्गुनी गीत और चंग की थाप होली से 10 दिन पहले ही गूंजने लगते हैं. बीकानेर का पुराना शहर या यूं कहें कि अंदरूनी क्षेत्र पुष्करणा, जिसकी चर्चा के चलते बीकानेर न सिर्फ देश, बल्कि दुनिया भर में विख्यात है. यहां की रम्मतों का अलग ही क्रेज है।
फक्कड़दाता से आगाज
आयो रे भोळो गणेशियों……….
नत्थूसर गेट के अंदर प्रेम एवं श्रृंगार तथा हास्य रस से ओत प्रोत स्वांग मेहरी रम्मत फक्कड़दाता का मंचन हुआ। भगवान गणेश स्वरुप के अखाड़े मे पहुंचने और नृत्य-स्तुती वंदना के साथ रम्मत की शुरुआत हुई। बोहरा-बोहरी, जाट-जाटणी स्वांग पात्रों के माध्यम से अच्छे जमाने के शगुन मनाए गये। खाकी पात्र नृत्य प्रस्तुत कर सभी का मनमोहा। रम्मत कलाकारों की ओर से लावणी, चौमासा और ख्याल गीतों का गायन कर वर्तमान परिस्थितियों पर कटाक्ष किया।रम्मत कलाकार कैलाश पुरोहित के अनुसार रम्मत में पंडित जुगल किशोर ओझा,मदन जैरी,कन्हैया लाल रंगा,रामजी रंगा,शिवरतन रंगा, भोला महाराकज,राजपाल, अमिताभ,हनुमान, कालू,भागी, किशोर, सन्नू रंगा,कैलाश ओझा, सुंदर लाल, कैलाश पुरोहित,सावन कुमार, महेश कुमार, हरिरतन आदि कलाकार की भूमिका में दिखे। रम्मत मंचन के दौरान पारम्परिक गीत आयो रे भोळो गणेशियों, खाखी आयो धूम से, भूल आयो लोटो रे, लखले लखले हो लाडलडा आदि का गायन किया। ख्याल गीत में राजनीति, राजनेताओं और समसामयिक विषयों पर कटाक्ष किए ।
400 साल पुरानी परंपरा…
लोक संस्कृति और परंपरा के संवाहक के तौर पर त्योहारों को मनाने का बीकानेरी अंदाज का एक बिरला उदाहरण है. बीकानेर शहर में बसंत पंचमी के साथ ही रम्मतों के अभ्यास का आयोजन शुरू हो जाता है. होलाष्टक के लगने के साथ ही हर दिन बीकानेर में अलग-अलग क्षेत्र में रम्मतों का मंचन होता है. बीकानेर के बिस्सों के चौक में करीब 400 साल से आयोजित हो रही शहजादी नौटंकी रम्मत का आयोजन इन्हीं में से एक है. कभी मनोरंजन के नाम पर त्योहार के मौके पर अपनों को एक जगह इक_ा करने के उद्देश्य से शुरू हुई यह रम्मत अब परंपरा बन चुकी है. सबसे खास बात है कि एक ही परिवार की ओर से मंचित की जाने वाली इस रम्मत में शामिल लोगों में ऐसे लोग भी है, जो खुद उम्र के आठवें दशक में होने के बावजूद भी पीढ़ी दर पीढ़ी के रूप में विरासत मिली जिम्मेदारी समझकर अब इस परंपरा को निभा रहे हैं.
लोक संस्कृति की एक झलक…
रम्मत से जुड़े कलाकार कृष्ण कुमार बिस्सा ने बताया कि उनके पूर्वजों ने इस रम्मत को शुरू किया था और तब से होली के मौके पर यह एक परंपरा बन गई, जिसे अब वह भी निभा रहे हैं। रम्मत कलाकार मदनगोपाल व्यास ने बताया कि यह बीकानेर की लोक संस्कृति एक झलक है और हर उम्र की भागीदारी बतौर दर्शक इन रम्मतों में होती है। यही कारण है कि देर रात शुरू होने वाली रम्मतों के करीब 10 से 12 घंटे तक लगातार चलती है। इस दौरान इन्हें देखने के लिए लोग खड़े मिलते हैं।
हर दिन बढ़ रहा रम्मतों का क्रेज…
रम्मत से जुड़े कलाकार शिवनारायण पुरोहित ने बताया कि पुराने समय में मनोरंजन के साधन नहीं थे और इसलिए पूर्वजों ने अपने हिसाब से इन रम्मतों को शुरू किया। लेकिन, आज जब सभी तरह के मनोरंजन के साधन है। बावजूद इन रम्मतों का क्रेज हर दिन बढ़ रहा है, जो इनकी लोकप्रियता का पैमाना है. कुल मिलाकर त्योहार को केवल त्योहार ही नहीं, बल्कि परंपरा की निर्वहन के रूप में भी मनाना अपने आप में बीकानेर के लोगों की खासियत है. यही कारण है कि लोग एक त्योहार का एक दिन आनंद नहीं, बल्कि कई दिनों तक आनंद उठाते है।