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बीकानेर,जैन विश्व भारती संस्थान के केंदीय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को मानद रूप से कुलाधिपति बनाना परंपरा के विपरीत है। इस से एक पक्ष में संस्थान की प्रतिष्ठा घटी है। इसका अर्थ यह नहीं है की अर्जुन राम मेघवाल कोई छोटा व्यक्ति है। एक व्यक्ति के रूप में और भाजपा पार्टी में उनके कार्यों की अपनी साख है। वे समाज के गुणी व्यक्ति है। कुलाधिपति पद नाम ही सब तरह से निरपेक्ष भाव के बड़े विद्वान की छवि देखी जाती है। समाज और व्यवस्था में वे सर्व स्वीकार्य माना जाता । कुलाधिपति के आभा मंडल से ही विश्व विद्यालय की साख बनती है। पहली बात तो अर्जुन राम मेघवाल भाजपा राजनीतिक दल से जुड़े हैं सवाल यह कि कांग्रेस से जुड़े विश्व विद्यालय से संबद्ध समाज, विद्यार्थी अर्जुन राम को आदर्श कुलाधिपति मानेंगे? अगर नहीं मानते हैं तो यह उनकी नियुक्ति से विश्व विद्यालय की साख पर बट्टा है। ऐसे में उनको कुलाधिपति बनाने से संस्था का गौरव नहीं बढ़ेगा, बल्कि राजनीतिक पूर्वाग्रह का समावेश होगा। संस्था के कर्ता धर्ता जब उनका बस चलेगा तो वे कांग्रेस के किसी केंद्रीय मंत्री को कुलाधिपति बना देंगे। जैन विश्व भारती संस्थान ने देश में मानव निर्माण और जीवन मूल्य की शिक्षा देने की जो पहल की है वे कालांतर में इस तरह से कुलाधिपति बनाने से निश्चित ही धूमिल होनी है। अब तक जो अच्छे काम हुए हैं वे राजनीति के भेंट चढ़ जाएंगे। भले ही अर्जुन राम को मानद रूप से ही यह पद दिया हो उनके हाथ में निर्णय का कोई अधिकार नहीं हो , परंतु इसका संदेश ठीक नहीं गया। संस्थान के प्रमुख लोगों को जैन विश्व भारती सस्थान के हित में इस तरह की राजनीतिक वितृष्णा से बचना ही चाहिए। इस निर्णय से अर्जुन राम मेघवाल की तो मान प्रतिष्ठा बढी है, परंतु जैन विश्व भारती संस्थान के लिए कतई अच्छा नहीं कहा जा सकता। जैन विश्व भारती राष्ट्रीय की धरोहर है। इसका कुलाधिपति भी ऐसा ही होना चाहिए। राजनेता तो कभी नहीं।

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