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बीकानेर,कवयित्री मुक्ता तैलंग ने अपनी गजलों में कलात्मक पक्ष की बजाय कथ्य को अधिक महत्व दिया है। इसी कारण वह अपनी बात पाठकों तक पहुंचाने में कामयाब रही है। लेखिका का मकसद समाज की विद्रूपताओं को सामने लाते हुए इन्हें दूर करने की जागरूकता लाना है।

मुक्ति संस्थान द्वारा मंगलवार को सूचना केंद्र में कवयित्री मुक्ता तैलंग मुक्त के हिंदी गजल संग्रह नाज़नीन सियासत के विमोचन के दौरान वक्ताओं ने यह बात कही।

समारोह के मुख्य अतिथि कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता समाज सेवी डाॅ.नरेश गोयल ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार मौजूद रहे। पत्रवाचन हरि शंकर आचार्य ने किया।

मुख्य अतिथि राजेन्द्र जोशी ने कहा कि मुक्ता तैलंग ने जैसा देखा, वैसा लिखा है। उनकी रचनाओं में शब्दों की भूलभुलैया नहीं है। वह सीधा आईना दिखाने में विश्वास करती हैं। सच को सच लिखना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। साफबयानी उनकी रचनाओं की सबसे बड़ी खूबी है।

विशिष्ट अतिथि राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि सियासत जैसे संवेदनशील विषय पर कलम चलाना बड़ी जोखिम होती है। लेकिन तैलंग ने इसे बखूबी निभाया है। उनकी गजलों में विषय की दृष्टि से विविधता है तथा प्रत्येक रचना में एक संदेश उभर कर आया है।

अध्यक्षता करते हुए नरेश गोयल ने कहा कि मुक्ता तैलंग ने बीकानेर की लेखन परंपरा को आगे बढ़ाया है। उनकी रचनाओं में संवेदनाएं हैं। दरकते रिश्तों की कहानी है। वे अपनी रचनाओं में पाठकों के लिए कई सवाल रखती हैं और इनका जवाब भी चाहती है।

पुस्तक पर पत्र वाचन करते हुए हरिशंकर आचार्य ने कहा कि नाज़नीन सियासत की 108 गजलें समाज को आईना दिखाती हैं। उन्होंने कहा कि तैलंग ने हिंदी गजल लेखन को नई पहचान दिलाई है। उनके लेखन में पुस्तक दर पुस्तक परिपक्वता आई है।

इससे पहले अतिथियों ने पुस्तक का विमोचन किया। मुक्ता तैलंग ने अपनी सृजन यात्रा के बारे में बताया और कहा कि इससे हिंदी गजलों की एक पुस्तक आसमां हुआ मेरा लिख चुकी हैं। उन्होंने नव विमोचित पुस्तक की चुनिंदा रचनाएं प्रस्तुत की।

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