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बीकानेर,आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी आदि ठाणा 18, साध्वीश्री विचक्षणश्रीजी की शिष्या साध्वी विजय प्रभा, साध्वीश्री चन्द्रप्रभाकी शिष्या साध्वीश्री प्रभंजनाश्रीजी के सान्निध्य में रविवार को गुरु पूजनोत्सव ढढ्ढा चौक के यशराग निकेतन प्रवचन पांडाल में जैन विधि से मनाया गया।
वासक्षेप इंद्रचंद- वीरचंद-किरण देवी बेगानी से चातुर्मास के दौरान उपयोग में ली जाने वाली वासक्षेप का कलश भेंट कर आचार्यश्री, मुनिवृंद व साध्वीवृंद से आशीर्वाद लिया। समारोह में मुनि व साध्वीवृंद के सांसारिक परिजनों का श्री सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट के मंत्री रतन लाल नाहटा, श्री जिनेश्वर युवक परिषद के अध्यक्ष संदीप मुसरफ, मंत्री मनीष नाहटा व धीरज बरड़िया ने पाग, दुपट्टा व श्रीफल से सम्मानित किया। आचार्यश्री के सान्निध्य में रविवार को प्रवचन पांडाल में बच्चों का शिविर आयोजित किया गया।
प्रवचन पांडाल में गंवली सजाई गई तथा श्रावक श्राविकाओं ने देव, गुरु व धर्म का जयकारा करते हुए केसर युक्त पीले मांगलिक अक्षत से आचार्यश्री का पूजन वंदन किया। श्रावक-श्राविकाओं ने पांच-पांच बार गुरु वंदना की । ’’इच्छामि खमासमणो । वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि ।।
आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी ने प्रवचन में कहा कि जैन धर्म में पंच परमेष्ठी अर्थात अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु को वंदनीय, पूजनीय व गुरुपद का सच्चाधारक बताया गया है। वर्तमान में श्रावक-श्राविकाएं थोड़ा परोपकार, सेवा कार्य व आगमों, धर्म पुस्तकों का अध्ययन कर प्रवचन करने वालो को गुरु मानकर भ्रमित हो रहे है। ये छदम गुरु किसी का भी भला व कल्याण नहीं कर सकते है। जैन दर्शन में व्यक्तिगत आराधक को गुरु मानना, उसके उपदेश आदेश को मानना गलत बताया गया है। पांच महाव्रत धारी, शुद्ध आचार वाले साधु-साध्वी चाहे वे किसी भी पंथ, समुदाय की हो वंदनीय व पूजनीय तथा गुरु पद ग्रहण करने के अधिकारी है, अन्य नहीं । पांच महाव्रतधारी की कभी उपेक्षा, अवहेलना, जिन शासन की निंदा नहीं करें । बीकानेर के मुनि सम्यक रत्न सागर, साध्वीश्री चन्द्रप्रभा की शिष्या साध्वीश्री प्रभंजना, श्रेयस रत्न सागर, शाश्वत रत्न सागर ने गुरु की महिमा का वर्णन किया। विचक्षण महिला मंडल, ज्ञान वाटिका के बच्चों, जिनेश्वर महिला परिषद की योजना पारख, रौनक कोचर ने गुरु भक्ति के गीत तथा कोटा की सुश्री जौली भंडारी व बालक भीनव नाहटा ने विचारों के माध्यम से गुरु पद का गुणगान किया।

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