बीकानेर,महिला आरक्षण विधेयक मंगलवार को ऐसे समय लोकसभा में पेश किया गया है जब पांच राज्यों में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं और इन राज्यों में चुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने अपने अपने चुनावी शंख फूंक दिए हैं।
खासकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में चुनाव गतिविधियां काफी तेज हो गई हैं। इन राज्यों में सत्तारूढ़ दलों व विपक्षी पार्टियां चुनाव यात्राओं एवं रैलियों में जुट गई हैं। तेलंगाना व मिजोरम में भी चुनावी हलचल शुरू हो गई है। अब देखना यह है कि क्या संसद के मौजूदा विशेष सत्र में इस विधेयक के पारित होने के बाद क्या इन राज्यों में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में इस विधेयक का सियासी रंग किस तरह चढ़ता है। क्या राजनीतिक दल कानून लागू होने से पहले अपने स्तर पर महिला आरक्षण के अनुपात में महिला प्रत्याशियों को टिकट देंगे?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस विधेयक के पारित होने से इन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी इसका असर होना तय है। विधेयक के पारित होने पर श्रेय भाजपा और कांग्रेस दोनों ही लेना चाहेंगी। इसलिए इसका सियासी असर विधानसभा चुनावों के साथ लोकसभा चुनावों पर होना तय है। इसलिए राजनीतिक दल यह आकलन करने में जुट जाएंगे कि विधेयक से चुनावी संभावनाओं पर क्या असर पड़ेगा। इस समय कांग्रेस चुनावी राज्यों में जातीय जनगणना, पुरानी पेंशन योजना और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ाने के मु्द्दे को प्रमुखता से उठा रही है जबकि भाजपा डबल इंजन की सरकार, विकास,सनातन धर्म पर हमले को लेकर प्रतिद्वंद्वी दलों पर निशाना साध रही है। लेिकन अब महिला आरक्षण की सियासी धार कई पुराने समीकरणों को बदल सकती है।
कुछ ऐसी होगी राजस्थान की तस्वीर
राजस्थान में वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है और भाजपा वापसी के लिए तैयारी में जुटी है। विधेयक पारित होने के बाद राज्य विधानसभा के लिए चुनावी व्यूह रचना में बदलाव हो सकता है। अभी दोनों पार्टियां जातिगत समीकरण साधने में जुटी हैं। महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण से जुड़ा विधेयक पास हो जाता है तो 200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में 66 सीटें महिलाओं के लिए हो जाएंगी। विधानसभा में वर्तमान में 27 महिला विधायक हैं। इनमें से सबसे अधिक कांग्रेस पार्टी से 15 व भाजपा से 10 महिला विधायक हैं। आरएलपी की एक विधायक हैं और एक विधायक निर्दलीय है। राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें है। महिला आरक्षण विधेयक पास होने पर 8 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी।
एमपी में ऐसी हो सकती है स्थिति
मध्य प्रदेश में 230 सदस्यीय विधानसभा है। वर्तमान में भाजपा सत्तारूढ़ लेकिन कांग्रेस को उम्मीद है कि सरकार विरोधी रूझान के बल पर वह सत्ता में वापसी कर सकती है। विधानसभा चुनाव में महिला आरक्षण अहम मुद्दा बन सकता है। साल 2018 के चुनाव में मध्य प्रदेश में महिला विधायकों की संख्या सिर्फ 21 थी। भाजपा ने सिर्फ 10 प्रतिशत, तो कांग्रेस 12 प्रतिशत महिलाओं को ही टिकट दिया था। अभी प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों की तरफ सेसिर्फ 21 महिला विधायक हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है और भाजपा सत्ता में वापसी के लिए जद्दोजहद कर रही है। महिला आरक्षण विधेयक पारित हो जाने के बाद दोनों ही पार्टियां चुनाव में श्रेय लेने की होड़ करेंगी। यहां सत्ता की दावेदार दोनों पार्टियां भाजपा व कांग्रेस सामान्यतया 8-10 महिलाओं को टिकट देती रही हैं। महिला आरक्षण लागू होने पर 90 सदस्यी विधानसभा की 29-30 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है। बस्तर और सरगुजा आदिवासी बहुल अंचल है। महिला आरक्षण के बाद यहां की सियासी तस्वीर बदल जाएगी।
तेलंगाना में BRS रही है आरक्षण के पक्ष में
तेलंगाना में अभी बीआरएस की सरकार है और वहां भी इस साल के अंत तक चुनाव होने वाले हैं। बीआरएस महिला आरक्षण की पहले से ही हिमायत करती रही है। पिछलेदिनों ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने की मांग की थी।