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बीकानेर,व्हील चेयर पर आसमां में उड़कर पैरासैलिंग और समुद्र की सैर करने वाले सागर के हौसलों का कोई जवाब नहीं। ऐसी कोई चुनौती नहीं जो सागर व्यास को उनकी बीमारी के आगे झुका सके। 11 साल की उम्र से मस्क्यूलर डिस्ट्रॉफी जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित सागर के जीवन में सागर की तरह कई तूफान आए। लहरें उठी लेकिन हौंसलों ने सब संभाल लिया। 32 साल के सागर की रातें वेंटिलेटर पर निकलती हैं तो दिन की शुरुआत भी ऑक्सीजन मास्क से ही होती है। बिना व्हील चेयर यहां से वहां हिलना संभव नहीं। लेकिन एक ऐसा जज्बा जिसकी बदौलत पूरा देश घूम चुके हैं।

11 साल की उम्र में लाइलाज बीमारी
चलते-चलते गिर जाने पर जब चेकअप करवाया तो मालूम चला की मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी है जो समय के साथ बढ़ती चली जाएगी। आठवीं कक्षा में पढने वाले 11 वर्षीय सागर को मालूम चला तभी से खुद को मानसिक रूप से मजबूत बना लिया। सागर अभी 32 साल के हैं। बारहवीं तक जैसे-तैसे स्कूल गए। लेकिन उसके बाद से पढाई का सफर घर से ही व्हील चेयर पर तय किया। सागर ने तीन बार राजस्थानी भाषा, पॉलिटिकल व सोशियोलॉजी में एम ए किया। फिर वेब डिजाइनिंग कोर्स किया। अब ऑनलाइन काम भी करते हैं।

महाराष्ट्र में सागर किनारे सागर।
सोशल नेटवर्किग से लोग जुड़े
सागर को यह एहसास हुआ कि उनके जैसे कितने ही लोग हैं जो किसी असाध्य रोग या विकलांगता से पीड़ित हैं। ऐसे कई लोगों को सोशल नेटवर्क पर तलाशा। परिचय होने के बाद उन्हें लगा कि खुद कमा पाना विकलांग व्यक्तियों के लिए काफी आवश्यक है लेकिन उनके पास अवसर कम हैं। तब सागर ने अपने साथ ऐसे विकलांग व्यक्तियों को जोड़ना शुरू किया जो घर बैठे वेबसाइट से जुड़े काम कर सकें।

बचपन के दोस्त श्याम और नवीन जो हर राह पर सागर के साथ रहते हैं।
बना ली टीम ‘राह’ सागर हर वर्ष देश के विभिन्न क्षेत्रों से मस्क्यूलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित लोगों का गेट टुगेदर का आयोजन करते है। सभी लोग एक साथ एक स्थान पर मिलते हैं। इस प्रयास से ऐसे भी मरीज हैं जो बीस सालों से घर से नहीं निकले थे उनके परिजनों का हौसला बढ़ा। वे भी अपने बच्चों को लेकर जोधपुर पहुंचे। सागर के दोस्त ऐसे पीड़ितों के यहां स्वयं पहुंच कर उन्हें साथ लाते हैं। उन्होंने इस टीम को ‘राह‘ नाम दिया है। इसी नाम से एनजीओ बनाया। दिसम्बर में यह टीम जैसलमेर गई और वहां सागर ने पैरासेलिंग की। जोधपुर के चांदपोल क्षेत्र के निवासी सागर अपनी मां के साथ रहते है। उनकी दोनों बहनों की शादी हो चुकी है और पिता का निधन हो चुका है। सागर की देखभाल उनकी मां ही करती हैं। सागर कि जीजा राजकुमार जोशी का भी उन्हें बहुत सपोर्ट रहता है।

सागर ने देखा कि उनके साथ जुड़े ज्यादातर लोग अपने ही घर की चारदीवारी में बंद रहते हैं। खुद घूमने का शौक रखने वाले सागर को यह चीज भी एक बड़ी समस्या लगी। उन्होंने अलग-अलग राज्यों में रहने वाले अपने उन दोस्तों के साथ घर से निकलने और घूमने की योजना बनाई। अपने उन दोस्तों के साथ सागर राजस्थान के अलावा गुजरात, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र तक घूम चुके हैं। सागर के बचपन के दो साथी श्याम और नवीन उनके साथ हमेशा कंधे से कन्धा मिलाकर चले हैं। सागर के हर ट्रिप में ये दोनों दोस्त साथ रहते हैं।

जैसलमेर में पैरासेलिंग के दौरान सागर और उनके साथी।
देशभर से जुड़े पीड़ित
अपने दिव्यांग दोस्तों के साथ मिलकर सागर ने राह चैरिटेबल का गठन किया। इससे जुड़े सभी सदस्य दिव्यांग हैं और भारत के अलग-अलग राज्यों से हैं। ओडिशा से अर्पिता,शिमला से गरिमा, हैदराबाद से साहित्य और मेघा, गुजरात से दिव्या, महाराष्ट्र से अमोल और रूपाली, बिहार से आलोकिता. इसके अलावा राजस्थान से पायल और आयूषी।

पीड़ितों के लिए बनाना चाहते हैं घर
राह फाउंडेशन बनाने के पीछे सागर का सपना है एक ऐसा घर बने जहां मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित रहें। एक दूसरे का सहारा बन सकें। साथ मिल कर नई टेक्नोलॉजी पर रिसर्च और अर्निंग के नए नए तरीके सीखें। सागर को हाल ही मई एक दान दाता ने इस काम के लिए एक जमीन डोनेट की है। लेकिन वहां भवन निर्माण का पैसा राह फाउंडेशन के पास नहीं है। सागर लगातार सरकार से कोशिश कर रहे हैं उनके लिए कोई फंड मिल जाए। उसने कहा कि सरकार उन्हें विकलांग लिस्ट में स्कूटी दे रही है। लेकिन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के पीड़ितों को इलेक्ट्रिक व्हील चेयर ही काम आ सकती है। साथ ही केयर टेकर फंड की डिमांड भी है। क्योंकि इस बीमारी में बिना केयर टेकर जीवन यापन संभव नहीं।

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