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बीकानेर,यह कटु सत्य ही है कि जब अपने स्वार्थ की बात य आती है, तो हमारी सरकारें और राजनीतिक दल जनकल्याण और जनहित को खूंटी पर टांगने में देर नहीं लगाते। पक्ष हो या विपक्ष, अपने मतलब में ऐसे एक होते हैं कि उन्हें शायद जनता तो कहीं नजर ही नहीं आती, भले ही उनकी करनी से जनता का कितना ही बड़ा अनर्थ क्यों नहीं हो जाए। ताजा मामला कोरोना की तीसरी लहर की आशंका और वैश्विक स्तर पर लोगों को आतंकित कर रहे कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रोन के बीच कांग्रेस और भाजपा की सियासी रैलियों का हैं। दोनों ही दल कोरोना संक्रमण फैलने की आशंका के बीच जयपुर में बड़ी रैलियां करने वाले हैं। भाजपा 5 दिसम्बर को जनप्रतिनिधि सम्मेलन कर रही है, तो कांग्रेस ने दिल्ली में अनुमति नहीं मिलने पर 12 दिसम्बर की केंद्र के खिलाफ महंगाई विरोधी अपनी रैली जयपुर में शिफ्ट कर दी। इसमें देशभर से करीब दो लाख लोगों को जुटाने की तैयारी है। भाजपा की रैली में भी प्रदेश भर से लोग आएंगे। इसमें शामिल होने आ रहे अमित शाह को रैली के रूप में कार्यक्रम स्थल तक ले जाने की योजना है। राजधानी जयपुर में ही लगभग 24 स्थानों पर उनके स्वागत के नाम पर भीड़ जुटाने की तैयारी की जा रही है।

इन दोनों ही सियासी कार्यक्रमों की तैयारी के बीच जयपुर ही नहीं, प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी कोरोना संक्रमण तेजी से फैलने की आशंका खड़ी हो गई है। प्रदेश में कोरोना फिर सिर उठाने लगा है। नवम्बर में प्रदेश में 365 नए संक्रमित सामने आए थे और अब रोजाना दहाई की संख्या में सामने आ रहे संक्रमितों के कारण एक्टिव केस 114 दिन बाद दो सौ का आंकड़ा पार कर चुके हैं। एक तरफ संक्रमण तेजी से फैल रहा है और दूसरी तरफ ओमिक्रोन वैरिएंट भी कर्नाटक के रास्ते भारत पहुंच चुका है।

यदि भाजपा का जनप्रतिनिधि सम्मेलन नहीं होता, तो कांग्रेस की रैली के बहाने अभी तक सियासी बयानबाजी शुरू हो चुकी होती। कांग्रेस भी भाजपा पर हमला करने से नहीं चूकतीं, लेकिन अब दोनों ही दल आम लोगों की चिंता को दरकिनार कर मौन हैं। बेहतर होता कि दोनों ही दल एक मिसाल पेश करते और संक्रमण की आशंका के बीच अपने आयोजन फिलहाल टाल देते, लेकिन जब स्वहित सामने आ जाए तो कोरोना के ‘सियासी संक्रमण’ पर लगाम की अपेक्षा किससे की जा सकती है।

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