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बीकानेर,नगर निगम में जो हो रहा है वो सब निंदनीय है। महापौर शिक्षित और सुशील महिला है। लोक व्यवहार में उनमें संस्कार झलकते हैं। वे भारतीय लोकतंत्र और भावी राजनीति की कर्णधार है। भारतीय जनता पार्टी के इस बोर्ड से पार्टी की साख भी जुड़ी है। महापौर के साथ, भाजपा शहर जिलाध्यक्ष, विधायक और सांसद का अब तक का व्यवहार भी सामने आता है। जो निर्णय और कदम महापौर की ओर से उठाए जा रहे हैं उनसे महापौर का कद तो बड़ा नहीं होने वाला है। उनके क्रियाकलापों से युवा पीढ़ी और बीकानेर की राजनीति में कोई अच्छा संदेश नहीं जा रहा है। महापौर और आयुक्त के बीच विवाद को भी जनता समझती है। कोन मनमानी करना चाहता है। कोन गुंडागर्दी करता है। क्या कांग्रेस और अफसर भाजपा के बोर्ड को काम नहीं करने दे रहे हैं ? आयुक्त के निगम के कार्य संचालन को लेकर अपने लॉजिक हैं। कांग्रेस की अंजना खत्री अलग बात कह रही है। इसमें कल्ला के लिए जो शब्द प्रयोग किए गए हैं वो सुशीला कंवर की रेली में शोभा नहीं देते। आयुक्त के साथ समन्वय नहीं रख पाना महापौर की नेतृत्व की कमी या विफलता है। अफसर नेतागिरी नहीं कर सकता वो प्रशासनिक व्यवस्था से बंधा है। उस व्यवस्था और कानून के दायरे से बाहर कोई क्यों जाएगा? महापौर और समर्थकों का कांग्रेस के मंत्री, आयुक्त को दोष देना कहां तक उचित है यह बात तो महापौर ही जाने, परंतु जो हो रहा है वो न तो महापौर की साख बढ़ाने वाला है और न भाजपा और महापौर के नजदीक नेताओं की इज्जत बढ़ रही है। यह तो जनता में पीछे वालों को भला ही बताने जैसा कदम है। बीकानेर की राजनीति में महापौर का राजनीतिक भविष्य है। निगम आयुक्त को हटाने या माफी मांगने से महापौर की राजनीति चमक जाएगी ऐसा लगता नहीं है। मंत्री डा. कल्ला को उनके समर्थक कुछ कह दे या विरोधियों के साथ महापौर समर्थक मारपीट कर लें। ऐसा करने से महापौर को राजनीति में कितनी बढ़त मिल जाएगी महापौर खुद ही विश्लेषण कर लें। छिछले राजनीतिक कदमों से महापौर के राजनीतिक भविष्य पर क्यों प्रश्नवाचक लगाया जा रहा है? इस बात को महापौर खुद ही समझ सकती है। मार्गदर्शक और समर्थक भी इसे समझे तो भला है। नहीं तो फिर काला टीका ही लगना है। हाथ कुछ नहीं लगना।

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