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बीकानेर,तीन साल के दौरान 2 बार में लगभग 39 हजार करोड़ रुपए की कर्ज माफी के बावजूद महाराष्ट्र में किसानों की खुदकुशी का सिलसिला थम नहीं रहा। गत वर्ष जून से अक्टूबर के बीच महज पांच महीने में 1076 किसान मौत को गले लगा चुके हैं। वर्षों से सूखे की मार झेल रहे मराठवाड़ा में बाढ़ का कहर टूटा। पानी में डूबी फसल तो फसल बीमा की रकम मिली और न ही सरकार की तरफ से वांछित सहायता। बाढ़ का पानी तो उतर गया, मगर किसान मुश्किलों के भंवर में फंस गए। पिछले साल 11 महीने में अकेले . मराठवाड़ा में 805 किसानों ने आत्महत्या की है। कपास का कटोरा कहे जाने वाले विदर्भ में भी यही हाल है। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठजोड़ से बनी उद्धव सरकार दो साल की हो गई है। इस दौरान छह हजार से ज्यादा किसानों ने खुदकुशी की है। किसान आंदोलन के मुखर समर्थक महाविकास आघाडी सरकार में शामिल तीनों दलों के नेता – मंत्री किसानों की खुदकुशी पर चुप्पी साध जाते हैं। अन्नदाताओं की मजबूरी पर धुरंधर किसान नेता भी नजरें बचा रहे हैं। बेशक कुदरती कहर को कोई टाल नहीं सकता, लेकिन समय पर मदद मिले तो “किसानों की पीड़ा कम हो सकती है। उनकी जिंदगी बचाई जा सकती है। किसानों के हितों की दुहाई दे आंसू बहाने वाले नेता हकीकत से अनजान नहीं हैं। लागत के अनुसार उपज की कीमत किसानों को मिले, ऐसे उपाय करने चाहिए। खेती जब फ़ायदे में तब्दील होगी तो किसान आत्महत्या को मजबूर नहीं होंगे।

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