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बीकानेर,केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कथित तौर पर केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों को राजस्थान में भारत-पाकिस्तान सीमा से लगे मुस्लिम बहुल इलाकों में रहने वाले लोगों की ‘जनसांख्यिकीय और आर्थिक’ जानकारी जुटाने का निर्देश दिया है.केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों ने इसे एक ‘नियमित अभ्यास’ करार दिया है, जिसका उद्देश्य कट्टरपंथी तत्वों और सीमा पर उनकी गतिविधियों पर सतर्कता बनाए रखना है. सीमावर्ती इलाकों में डेमोग्राफिक बदलाव राज्य पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय के अलावा केंद्रीय सशस्त्र बलों, खासतौर पर सीमा सुरक्षा बल के लिए चिंता का विषय रहा है, जिसके पास अब भारतीय क्षेत्र के भीतर 50 किमी तक वारंट के बिना किसी जगह की तलाशी लेने का अधिकार है.

गृह मंत्रालय और बीएसएफ दोनों ने सीमावर्ती राज्यों और जिलों में इस मुद्दे को बार-बार उठाया है. दरअसल, इस साल अगस्त में नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एनएसएस) की बैठक में यह चर्चा के प्रमुख विषयों में से एक रहा. इस बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भाग लिया और उन्होंने सीमावर्ती राज्यों के डीजीपी से इस तरह के बदलावों पर ‘नज़र रखने’ का आह्वान किया था.पिछले साल बीएसएफ चीफ पंकज कुमार सिंह ने कहा था कि सीमावर्ती जिलों में वाकई ‘जनसांख्यिकीय बदलाव’ हुए है. यह संकेत देता है कि ‘आंदोलनों’ के साथ-साथ मतदाता पैटर्न में हुए बदलाव इसकी वजह हो सकती है.एनएसएस सम्मेलन में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के डीजीपी सहित केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के सभी प्रमुखों ने भाग लिया था.

यह इतना बड़ा मुद्दा क्यों है?

इसके कई कारण हैं. सबसे पहली बात, इस मुद्दे पर अक्सर दक्षिणपंथी मीडिया और राजनेताओं द्वारा चर्चा की जाती है. उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, असम और पश्चिम बंगाल सहित कई सीमावर्ती राज्यों में अल्पसंख्यकों को टारगेट करने के लिए अक्सर मुस्लिम आबादी, विशेष रूप से बांग्लादेशी प्रवासियों में वृद्धि की ओर इशारा करते हुए आंकड़े इस्तेमाल किए गए हैं. बांग्लादेशियों ने अपनी अर्थव्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए इन दावों का खंडन किया है.दूसरी अहम बात, राजस्थान के चार जिलों श्री गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर के धार्मिक प्रोफाइलिंग के लिए जनसांख्यिकीय और आर्थिक अध्ययन के डेटा का आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है, जो पाकिस्तान के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं. तीसरी बात, राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में आशंका है कि मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए इस तरह की प्रोफाइलिंग का दुरुपयोग किया जा सकता है. द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में राज्य विधानसभा चुनावों से पहले पश्चिम बंगाल में इसी तरह की कवायद की गई थी. चुनावों में ध्रुवीकरण देखा गया था जिसमें विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदाय को कुछ दलों और राजनेताओं द्वारा निशाना बनाया गया था.असल में चिंता की बात क्या है?

गौरतलब है कि जैसलमेर जिले के छह गांवों मोहनगढ़, नाचना, बहला, भरेवाला, सैम, तनोट और पोखरण में बीएसएफ ने इसी तरह का अध्ययन किया था.जैसलमेर में बीएसएफ ने कथित तौर पर ‘अन्य समुदायों के 8-10 प्रतिशत की तुलना में मुस्लिम आबादी में 22-25 प्रतिशत की हाई ग्रोथ रेट’ का पता चला, जिसे उसने चिंता का विषय बताया था.बीएसएफ ने मस्जिदों में नमाज़ के लिए बच्चों की अधिक उपस्थिति का भी हवाला दिया है. मुसलमानों की ‘धार्मिकता में वृद्धि’ और ‘कट्टरपंथ’ के संकेत के तौर पर ‘अरब रीति-रिवाजों’ की ओर झुकाव, हेयर स्टाइल और पोशाक में बदलाव की बात कही है.हालांकि, इसे समुदाय के सदस्यों के बीच किसी भी ‘राष्ट्र-विरोधी’ गतिविधि या पाकिस्तान के लिए साफ तौर पर सॉफ्ट कॉर्नर होने का कोई सबूत नहीं मिला.बीकानेर में कम हुई मुस्लिमों की जनसंख्या

यह ध्यान देने की बात है कि पाकिस्तान की सीमा से लगे राजस्थान के चार जिलों में से एक जैसलमेर में हमेशा से मुस्लिम आबादी अधिक रही है. यह जिले की कुल आबादी का लगभग एक-चौथाई हिस्सा रहा है.कुल जनसंख्या में समुदाय का प्रतिशत 1991 में 24 प्रतिशत था, जो 2001 में गिरकर 23.4 प्रतिशत और फिर 2011 में बढ़कर 25.1 प्रतिशत हो गया.कोविड के कारण 2021 में जनगणना नहीं हुई लेकिन पिछली दो जनगणनाओं में बीकानेर जिले में मुस्लिम आबादी में कमी दर्ज की गई थी. हालांकि इस समुदाय की जनसंख्या बीकानेर में 2001 के 11.8 प्रतिशत से मामूली रूप से बढ़कर 2011 में 12.34 प्रतिशत और श्री गंगानगर में 2.37 प्रतिशत से 2.57 प्रतिशत हो गई.जैसलमेर और बाड़मेर में हिंदू की आबादी घटी

इसी दौरान, श्री गंगानगर और बीकानेर में हिंदू आबादी का प्रतिशत बढ़ा लेकिन जैसलमेर और बाड़मेर में थोड़ा कम हुआ.इसलिए मुसलमानों की आबादी में वृद्धि कोई नई खोज नहीं है.इस बात के सबूत 2018 में हुए बीएसएफ के अध्ययन हैं, जिससे पता चलता है कि मुसलमानों की उपस्थिति और उनकी धार्मिकता की अभिव्यक्ति के संदर्भ में कही गई बातें हकीकत से अधिक प्रतीत होता है. यह न केवल सीमावर्ती राज्यों या मुसलमानों के बीच बल्कि देश भर में और सभी धर्मों के बीच देखी जाने वाली बात है.

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