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बीकानेर,बीजीपी में मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर सियासी खींचतान जारी है। वसुंधरा की वापसी के संकेतों की आहट से उनका धुर विरोधी धड़ा एकजुट हो गया रहा है। सियासी नेरेटिव बदलने की मुहिम शुरू कर दी है।

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन मेघवाल और नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ परदे के पीछे सक्रिय हो गए। केंद्रीय जलशक्ति मंत्री शेखावत खुलकर कह चुके हैं पीएम मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा जाएगा। राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क है कि विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही वसुंधरा राजे का कद बढ़ रहा है। हाल ही में सवाई माधोपुर में हुई पार्टी की मीटिंग में संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने ऐसे संकेत दिए है। मीटिंग में बीएल संतोष ने साफ कहा कि ऐसा कुछ मत कहो और करों जिससे पार्टी को नुकसान हो। कर्नाटक चुनाव हार चुके हैं। हमें राजस्थान जीतना है। सियासी जानकारों का कहना है कि बीएल संतोष का इशारा वसुंधरा विरोधी गुट की तरफ माना जा रहा है। क्योंकि सीएम फेस को लेकर सबसे ज्यादा बयानबाजी वसुंधरा राजे के धुर विरोधी माने वाले नेता कर रहे है। जबकि वसुंधरा राजे कैंप के नेता खामोश है।

पूरा गणित समझिए बिंदुओं में

राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क है कि वसुंधरा राजे के विरोधी धड़ा अभी नहीं तो कभी नहीं की तर्ज पर आगे बढ़ रहा है। राजे के विरोधी धड़े का मानना है कि यही मौका है। वसुंधरा राजे सियासी तौर पर कमजोर हुई है। पार्टी आलाकमान पहली बार वसुंधरा राजे के मुद्दे पर खामोशी धारण किए है। जबकि चुनाव के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। पार्टी नेता खुलकर कह रहे है कि चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा। मतलब साफ है वसुंधरा राजे के धुर विरोधी इस बार पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। सियासी जानकारों का कहना है कि जातीय समीकरण के हिसाब से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ को वसुंधरा राजे की काट के तौर पर सीएम फेस के लिए पेश कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी तर्क है कि इस चुनाव में पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी रहे भाजपा और कांग्रेस है। दोनों दलों के अलावा अन्य पार्टिया भी है। जो वसुंधर राजे को पंसद नहीं करती है।

वसुंधरा से बड़ा नेता नहीं

राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क है कि इस बार बीजेपी गहलोत सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर पैदा नहीं कर पाई है। जैसी बीजेपी ने गहलोत के दूसरे कार्यकाल के दौरान की थी। उस समय वसुंधरा राजे ने प्रदेश भर में परिवर्तन रैली निकाली और गहलोत सरकार की खामियों के जनता के सामने रखा। नतीजा यह हुआ कि बीजेपी को बंपर जीत मिली थी। लेकिन इस बार हालात बदले हुए है। पार्टी में गुटबाजी है। जेपी नड्डा के जयपुर में जन आक्रोश रैली में कुर्सियां खाली रह गई थी। इसके लिए गुटबाजी बड़ी वजह मानी गई थी। सियासी जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के विधायकों के प्रति नाराजगी है। कांग्रेस ‘विकास के मुद्दे’ पर जीत का भरोसा जता रही है। बीजेपी महंगाई, भ्रष्टाचार और प्रशासन में सख़्ती के कारण ‘जनता के ग़ुस्से’ की बात कर रही हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि राजस्थान बीजेपी में वसुंधरा राजे से बड़ा कोई नेता नहीं है। विरोधी धड़ा इस भ्रम को तोड़ना चाहता है।

उगते सूरज’ और ‘डूबते सूरज’

उल्लेखनीय है कि राजस्थान में बीजेपी की अंदरूनी गुटबाजी खुलकर कई बार सामने चुकी है। केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने करीब 8 महीने पहरले झुंझुनूं में बीजेपी कार्य समिति में नेताओं से कहा- ‘डूबता हुआ सूरज’ देखना बंद करो। सनसेट पॉइंट अंग्रेजों के बनाए हुए हैं। ‘उगते हुए सूरज’ सतीश पूनिया के नेतृत्व में देखना शुरू करो। उगते सूरज को पानी चढ़ाओ। केंद्रीय मंत्री मेघवाल बीजेपी हाईकमान के नजदीकी माने जाते हैं। बीकानेर में हुई रैली में पीएम मोदी ने सिर्फ अपने संबोधन में अर्जुन मेघवाल का नाम लिया था। मोदी से लेकर अमित शाह से उनके निकट और अच्छे पॉलिटिकल संबंध हैं। माना जा रहा है उन्होंने ‘उगते सूरज’ और ‘डूबते सूरज’ शब्दों का इस्तेमाल कर बीजेपी का पूरा सियासी नेरेटिव बदलने की मुहिम शुरू कर दी थी।

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