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बीकानेर,पत्रकार और पत्रकारिता आजादी के बाद अपने दायित्वों को लेकर सबसे निचले पायदान पर है। आजादी के अमृत महोत्सव पर पत्रकारों और पत्रकारिता से जुड़े कई संस्थानों को अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत आन पड़ी है। हम पत्रकारिता क्यों करते है? पत्रकार की लोकतंत्र और समाज के प्रति क्या जिम्मेदारी है ? भ्रष्टाचार, अन्याय, अत्याचार, पक्षपात के खिलाफ आवाज बनने का दायित्व आज भी पत्रकारो का है। क्या आज के पत्रकारों में ऐसी संवेदनाएं और कर्तव्य बोध है? आत्म विश्लेषण कर लें। आज जयपुर में जार के एक गुट का राष्ट्रीय सम्मेलन हो रहा है। इस सम्मेलन में पत्रकारिता धर्म के प्रति पत्रकारों की कितनी ललक है। साफ है सब अपने स्वार्थों के बोझ तले बोल रहे हैं। बीकानेर में जार के दो गुट हैं और भी संगठन बने हुए हैं वे कर क्या रहे हैं? किसी का अच्छा उद्देश्य और भावनाएं हाेगीं वे किसी कारण से अच्छा नहीं कर पा रहे होंगे, परंतु पत्रकारिता को कलंकित करने वाले काम भी हो रहे हैं। कई दलाली कर रहे हैं तो कुछ लोग वसूली। कई प्रेस कान्फ्रेस आयोजन के इन्वेंट मेनेजर बनकर काम कर रहे हैं। कुछ तो क्षुद्र स्वार्थी लोगों का पत्रकार के रूप में इक्यूपमेंट बने हुए हैं। सारे खराब नहीं है जो खराब हैं वे पूरी पत्रकारिता की छवि पर आंच डाल रहे हैं। क्या ऐसे तथाकथित पत्रकारों को यह अधिकार देना चाहिए कि पूरी पत्रकारिता कलुषित हो जाए। पहली बात तो ये पत्रकार है ही नहीं। पोल देखकर यूं ही घुस आए है। कुछ को जन सम्पर्क विभाग की अनुचित शह है। कोई गलत को गलत कहने और अनुचित लोगों को टोकने वाला नहीं है तिस पर गलत लोगों के बनाएं संगठनों का सहारा भी मिला हुआ है। पत्रकारिता में जो भी गलत हो रहा है उसे झाड़ पोंछकर किनारे लगाने की जरूरत है। अन्यथा बहुत बुरा हश्र होने वाला है। पत्रकारिता एक गिरोह के माफिक दिशा लेने जा रही है। जो अपनी जिम्मेदारी समझते हैं वे आगे आएं। निंदा करना धर्म में एक पाप माना गया है। आज पत्रकारों और पत्रकारिता की चंहु ओर निंदा हो रही है। पत्रकारों को अपने पेशे की साख बचाने के लिए आत्मलोचना तो करनी ही चाहिए। अन्यथा पत्रकारिता का पवित्र कर्म कलुषित हो जाएगा। पत्रकारिता न तो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की विश्वसनीयता बरकरार रख पाएगा और नहीं ही समाज का दर्पण बन सकेगा। देश के एक बड़े नेता ने हाल ही में कहा था कि पत्रकार खुद ही अपनी साख खो रहे हैं। यह बात सही है कि पत्रकार ही पत्रकारिता की इज्जत पर बट्टा लगा रहे हैं। स्वार्थी, दलाल, पीत पत्रकारिता करने वाले, चाटुकार पिछले दरवाजे से अनाधिकृत रूप से पत्रकारिता में घुस आए हैं। इनका उद्देश्य पत्रकारिता नहीं है, बल्कि पत्रकारिता के नाम पर जो भी फायदा मिल सकता है वो काम कर रहे हैं। मूल पत्रकारिता और पत्रकारिता के उद्देश्य गोण हो गए हैं। कुछ तो विचार करो। पत्रकारिता की थाती पर आ रही आंच से बचा लो।

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