Trending Now












बीकानेर,श्राद्ध पक्ष पर श्रीमद् भागवत कथा प्रेमियों द्वारा आयोजित की जा रही गोपेश्वर- भूतेश्वर महादेव मंदिर में चल रही पाक्षिक श्रीमद् भागवत कथा के बारहवें दिन मंगलवार को सींथल पीठाधीश्वर १००८ महंत क्षमाराम जी महाराज ने कथा वाचन करते हुए  बताया कि भक्त के लिए भगवान, भगवान के लिए भक्त दोनों एक दूसरे के लिए एक दूसरे के प्रेमांश पद हैं, प्रेम के खजाने हैं और भगवान को भक्त के प्रति, भक्त को भगवान के प्रति ऐसी विलक्षण भावना होती है। भगवान अपने को और भक्त अपने को भूल जाते हैं। दोनों से पूछा जाए कि आप भूल कर कहां रहते हो, भक्त यह निर्णय नहीं कर सकता कि मैं कहां रहता हूं। भगवान भी यह भूल जाते हैं कि मैं अनन्त-अनन्त कोटि ब्रम्हाण्ड का नायक हूं। परात्पर हूं। परब्रह्म हूं, सर्वाधार हूं, सर्वान्तरयामी हूं, सब मुझमें अमूष्यूत है, सब मुझसे प्रेरित है, मैं सर्वाधिष्ठान हूं, सर्वाधिष्ठाता भी हूं।
क्षमाराम जी महाराज ने कहा- जैसे पानी में डूबे हुए को जल ही जल दिखता है। ऐसे इस प्रेम जल में डूबे को सब जगह प्रेम ही प्रेम दिखता है।  देखो यह भगवान का प्रेम अभी तो संयोग से गोपियां भी सामने हैं, भगवान भी सामने हैं। आज प्रेम के बहुत से विलक्षण  प्रसंग की व्याख्या कथावाचक क्षमाराम जी महाराज ने कहा कि जैसे हमारे शरीर में पांच प्राण है, यह प्राण निकल जाए तो हमारा शरीर शव है। नहीं तो शिव स्वरूप, नहीं तो शव स्वरूप है। ऐसे ही भागवत में राज पंचाध्याय के पांच अध्याय है। यह भागवत में श्रीकृष्ण कथा के प्राण है। बड़े विचित्र भगवान की कथा है। हम लोग तो इस कथा का लेशांष भी नहीं पकड़ सकते। शब्दों का अर्थ कर देना अलग बात है। इस प्रेम में डूबे महापुरुष ही इस प्रेम को पहचान सकते हैं। जैसे गीता के लिए कहा गया है कि गीता को कौन जानता है? कहते हैं भगवान श्री कृष्ण जानते हैं। उसका आधा अर्जुन जानते हैं, उससे आधा भक्त जानते हैं। उसके बाद कौन जानते हैं, क्या जानते हैं? हम कह नहीं सकते।
क्षमाराम जी महाराज ने श्रद्धालु भक्तों को एकादशी के दिन स्वस्थ व्यक्ति को उपवास करने का तरीका और किस प्रकार करना चाहिए। इसकी संपूर्ण जानकारी व्याख्यान देकर की। साथ ही बताया कि द्वादशी के दिन एकादशी की घड़ी आने पर ही एकादशी का व्रत पूर्ण माना जाता है। कभी -कभी ऐसा योग बनता है, कोरोना काल में जेठ माह में ऐसा योग बना था जो एकादशी के बाद द्वादशी बहुत वर्षों के बाद आई थी। स्नान कब करना चाहिए, उसे किस घड़ी में करने से कौनसा स्नान कहलाता है? इससे अवगत कराया।

Author