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बीकानेर,पूरा शहर बीकानेर स्थापना दिवस पर अपनी जीवन संस्कृति, कला, साहित्य की समृद्धि और विकास के आलम में डूबा हुआ हो। जन जीवन और परंपरागत लोक संस्कृति के क्षितिज पर उमंग और उल्लास हिलोरे ले रहे हैं। अक्षय तृतीय और नगर स्थापना पर देश भर से प्रवासी और परिजन एक दूसरे को इस उमंग उल्लास में शामिल कर रहे हो ऐसे में कुछ हमारे ऐसे जन प्रतिनिधि भी हैं जिन्हें न बीकानेर का स्थापना दिवस याद आया और न ही अक्षय तृतीया की जनता को शुभकामनाएं देना उचित समझा। वे मानते होंगे जनता तो मोहरा है। पार्टियां राजनीतिक समीकरणों के चलते टिकट दे देती है। पार्टी में तारनहारों के नाम से चुनाव जीत जाते हैं। जीतने के बाद जनता और पार्टी जाए भाड़ में। ऐसे नेता जनता और जन भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने से नहीं चूकते। जनता समझती है, परंतु कर क्या सकती है ? सच्चा जन प्रतिनिधि वही जो सुख दुख में जनता के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ा रहे, परंतु राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों की मानसिकता ही विकृत होती जा रही है। वे जनता के बजाए तारनहरों की नजरों में साफ सुथरा बने रहते हैं। व्यवहार में जनता के प्रति कुटिलता, जातिवाद, भाई भतीजावाद उनकी राजनीति का भले ही उसूल ही बन गया हो। उनको दिखता वही है जिनसे उनके राजनीतिक स्वार्थ पूरे होते हैं। या चापलूस और चाटुकार समझते हैं। ऐसे जनप्रतिनिधियों को उनके ही लोग धरातल समझने नहीं देते। यह मान्यता बना ली जाए कि फिर टिकट मिल जाएगा। जनता तारणहार के नाम पर वोट देगी। अपने राजनीतिक समर्थक जुट जाएंगे। फिर जातिवाद, भाई भतीजावाद करने से क्यों चूकना। समय चक्र हमेशा एक जैसा थोड़े ही रहता। हमेशा पोल में ढोल नहीं बज सकते। तारणहार के भरोसे हमेशा तेर जाए यह जरूरी नहीं है। हाल फिलहाल तो ऐसे जनप्रतिनिधियों को स्थापना दिवस और अक्षय तृतीय की हार्दिक शुभकामनाएं।

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