बीकानेर,राजस्थान में राजनीतिक हालात कर्नाटक से काफी भिन्न है। राजनीति में भाजपा जनरेशन चेंज ( युवा पीढ़ी को आगे लाने ) का फार्मूला कर्नाटक में काम नहीं आया। विश्लेषको का मानना है मास लीडर यदुरप्पा की भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से अनदेखी भी कर्नाटक चुनाव में एक फैक्टर रहा है। अब यह मात्र बहस का मुद्दा है और सबके अपने अपने तर्क है। फैक्ट यह है कि मोदी चेहरा, नढ्ढा और भाजपा की अमित शाह की स्ट्रेटेजी फेल हो गई। लोकतंत्र की यही खूबी है। बेशक केंद्र में मोदी सरकार अच्छा काम कर रही है। कई कठिन परिस्थितियों में मोदी सरकार के निर्णय काबिले तारीफ रहे। यह अलग बात है। भाजपा नेतृत्व में पार्टी के भीतरी लोकतंत्र पर सवाल उठाते रहे हैं। कर्नाटक में बड़ी संख्या में नेताओं ने भाजपा क्यों छोड़ दी? अधिकांश कांग्रेस में शामिल होकर जीत भी गए। राजस्थान भाजपा संगठन में भी कमोबेश कर्नाटक से मिलते जुलते समीकरण है। बस फर्क इतना ही है कि यहां वहां के नेताओं की जगह वसुंधरा राजे सिंधिया है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व राजे को हासिए पर ले जाना चाहता है। बिना मास लीडर के मोदी और शाह के चेहरे से राजस्थान में भाजपा जीत हासिल कर ले यह बड़ा चेलेंज होगा। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। प्रदेश कांग्रेस के भीतर की कशमकश अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी के सामने बड़ा हर्डल है। फिर भी अशोक गहलोत के हाथ में कमान है और केंद्रीय नेतृत्व गहलोत के साथ है। राजस्थान भाजपा की कमान किसके हाथ में है? सवाल गंभीर है। माना केंद्र मजबूत है। केंद्रीय नेतृत्व सक्षम है तो क्या राजस्थान में प्रदेश स्तर के मास लीडर के बिना इन हालातों भाजपा कांग्रेस का मुकाबला कर पाएगी? संगठन कड़ी से कड़ी जोड़ कर बनता है। वार्ड स्तर, तहसील स्तर, जिला स्तर फिर प्रदेश स्तर के नेता संगठन के हिस्से होते हैं। राजस्थान में भाजपा में मास लीडर वसुंधरा राजे ही है। क्या केंद्रीय नेतृत्व राजे को अनदेखा कर राजस्थान में अगला विधानसभा चुनाव फतेह कर लेगा? यहां केवल मोदी मोदी काम आ जाएगा तो प्रदेश संगठन स्थानीय नेताओं की जरूरत क्या रह जाएगी। अगर बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व, मोदी, अमित शाह इस मुगालते में रहे तो भाजपा को नुकसान उठाना पड़ेगा। भाजपा में बिना मास लीडर के राजस्थान में चुनाव लडना रिस्की है। राजस्थान में वसुंधरा राजे के अलावा कोई मास लीडर नहीं है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व फिर प्रयोग करके देख लें। उल्टा हुआ तो 2024 के लोकसभा चुनाव पर असर होना तय है।
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