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बीकानेर,देवी सिंह भाटी और अर्जुन राम मेघवाल दोनों सार्वजनिक मीटिंग में आमने सामने हुए इस वाकया से राजस्थान में चर्चा का विषय ही नहीं कई सवाल भी उठ रहे हैं। कोन वास्तव में कैसा जन नेता है किस में क्या काबिलियत है ? जनहित कोन कर सकता है ? भाटी ने केंद्रीय मंत्री के समक्ष राजस्थानी की मान्यता तथा राजस्थान के हिस्से के नहरी पानी का मुद्दा ही नहीं उठाया, बल्कि गोचर भूमि पर कब्जों को लेकर प्रशासन को भी सार्वजनिक रूप से आड़े हाथों लिया। केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल संजीदा, धैर्यवान और स्वभाव से विनम्र है। उनमें राजनीतिक दक्षता से ज्यादा प्रशानिक कुशलता है। वे किसी उलझन में नहीं पड़कर बिना विवाद के राजनीति करते हैं। जनहित के मुद्दे भी उनके लिए सॉफ्ट राजनीति का मंच मात्र ही है वे जनता के हितों और अपने वादों को निभाने में कोई रिस्क नहीं लेते। देवी सिंह भाटी दबंग नेता है वे जनहित के मुद्दे पर किसी हद तक जा सकते हैं। भाटी न संजीदा है न धैर्यवान है और न ही विनम्र है। अकडू, कड़वे और जनहित में जो मुंह में आए कह देते हैं।और जनता का हित पूरा करके ही रहते हैं। वे अपने इस रवैए के लिए राजनीति में जाने भी जाते हैं। भाटी ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम के समक्ष राजस्थानी भाषा की मान्यता और नहरी पानी में राजस्थान के हिस्से का मुद्दा सही और सटीक रखा। इसमें कौनसी राजनीति अदावत है? मेघवाल दोनों मुद्दों के प्रति जिम्मेदार हैं कुछ नहीं कर पाते हैं तो उनकी राजनीतिक विफलता ही हैं। भाटी यह बात सही कहते हैं कि अर्जुन राम ने राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के मुद्दे पर इतना कहा की लगने लगा अब तो भाषा को मान्यता मिलने वाली है। कुछ हुआ नहीं अब वे इस मुद्दे पर कन्नी काटने लगे हैं। राजस्थान के हिस्से से पोंग बांध से पानी के मामले में केंद्रीय मंत्री के रूप में वास्तव में मेघवाल की जिम्मेदारी बनती है कि राजस्थान को हिस्से का पूरा पानी मिले, परंतु वे केंद्रीय जल संसाधन मंत्री रहते ही कुछ नहीं कर पाए तो अब तो उनसे आशा करना ही बेमानी है। भाटी आए तो थे गोचर भूमि से प्रशानिक निर्णयों बावजूद कब्जे नहीं हटाने के मामले पर शिष्टमंडल के साथ प्रशासन से बातचीत करने थे। प्रशासनिक अकुशलता भाटी और मेघवाल की यहां अदावत बढ़ने का कारण बनी। भाटी प्रशासन से खफा हुए और कलक्टर से पूछा आदेशों और निर्णयों के बावजूद गोचर से कब्जे क्यों नहीं हटे ? जिम्मेदार के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई ? कलक्टर को मूक हो जाना पड़ा। भाटी ने गोचर के कब्जे नहीं हटाने पर मर जाने तक की बात की और खफा होकर चल दिए। हालांकि कलक्टर ने बाडेनुमा कब्जे तुरंत हटाने और पक्के कब्जे दीपावली के बाद हटाने की बात कही। भाटी ने गोचर पर कब्जों के मुद्दे पर आर पार की लडाई लड़ने की ठान ली है। भाटी की दीपावली के बाद की व्यूह रचना प्रशासन के समक्ष बड़ी चुनौती बनने वाली है। बीकानेर के जनप्रतिनिधि मेघवाल और भाटी दोनों ने ही देश प्रदेश की राजनीति में अपने अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ी है। जनता चाहती है वे आपसी अदावत छोड़ दें। जनता दोनों को चाहती है। दोनों मिलकर ज्यादा जनहित कर सकते हैं। क्या जनता के हितों के लिए अहम त्यागकर दोनों एक हो सकेंगे ?

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