












बीकानेर,उग्र विहारी तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी ने आज तेरापंथ भवन में प्रवचन देते हुए कहा कि उतराध्ययन सुत्र में भगवान महावीर स्वामी ने कहा कि जो छ: काय के जीवों की हिंसा नही करता है वह शुद्ध साधुचर्या का पालन करता है। छ: काय का अर्थ है पृथ्वीकाय, अप्पकाय, तेजसकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय व त्रसकाय के जीवों से है।
साधु जीवन में कभी भी इन जीवों की हिंसा नही कर सकता है। इसलिए ही आगम में साधुओं के लक्षणों का निरूपण है। सच्चा संत भी भिक्षा से आहार प्राप्त करता है तो मिथ्याचारी साधु भी भिक्षा से ही आहार प्राप्त करता है। इसलिए दोनों ही प्रकार के संतों की संज्ञा संत है। जैसे स्वर्ण अपने सद्गुणों के कारण कृत्रिम स्वर्ण से पृथक होता है, वैसे ही सद्संत अपने सद्गुणों के कारण असद्संत से पृथक होता है। स्वर्ण को जब कसौटी पर करते हैं तो वह खरा उतरता है। कृत्रिम स्वर्ण स्वर्ण के सदृश्य दिखाई देता है किंतु कसौटी पर कसने से अन्य गुणों के अभाव में वह खरा नहीं उतरता है इसलिए वह शुद्ध सोना नहीं है। केवल नाम और रूप से सोना सोना नहीं होता ,वैसे ही केवल नाम और वेश से कोई सच्चा संत नहीं होता। सद्गुणों से ही जैसे सोना सोना होता है वैसे ही सद्गुणों से ही संत संत होता है। मुनि श्री ने कहा कि उतराध्ययन सुत्र में भगवान महावीर ने कहा कि संवेग, विवेक, सुशील, आराधना, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, विनय, शान्ति, मार्दव, आर्जव, अदीनता, तितिक्षा, आवश्यक, शुद्धि ये सभी सच्चे संत के लक्षण है। जो अहिंसक जीवन जीता है, संयममय जीवन जीता है। वह साधु है।
आज के कार्यक्रम में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के सी. पी. एस. के राष्ट्रीय प्रभारी दिनेश मरोटी का गंगाशहर आगमन पर अभिनन्दन तेरापंथी सभा गंगाशहर की ओर से सभा के अध्यक्ष नवरतन बोथरा, मंत्री जतनलाल संचेती, सहमंत्री पीयूष लूणिया,वरिष्ठ श्रावक जैन लूणकरण छाजेड़, पूर्व अध्यक्ष अमरचंद सोनी ने साहित्य व पताका पहनाकर किया। अभा तेयुप के दिनेश जी मरोटी ने उग्र विहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार जी स्वामी के तप व श्रावकों के आत्मकल्याण हेतु किये जा रहे प्रयासों को उल्लेखनीय बताया। एवं गंगाशहर सभा का आभार व्यक्त किया।
