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बीकानेर,नगर निगम में भाजपा का बहुमत और महापौर है। साधरण सभा में कांग्रेस पार्षद की अध्यक्षता में कर कई प्रस्ताव पारित कर निर्णय किए। सवाल उठता है क्या ऐसे महापौर जनता की लड़ाई लड़ पाएंगे? साधारण सभा में महापौर और उनके बोर्ड के भाजपा पार्षद के बिना ही सारे प्रस्ताव पारित कर आगे की करवाई शुरू हो गई। यह महापौर की विफलता है। अब तक के हालातों से स्पष्ट है कि महापौर बोर्ड चलाने में सक्षम नहीं है। वे अपने अधिकारियों और कर्मचारियों को विश्वास नहीं ले पा रही है। यह कोई पहली घटना नहीं है। महापौर का हमेशा टकराव का ही रवैया रहा है। इसका कारण जो भी रहा हो। भाजपा की महापौर और उनकी पार्टी के पार्षदों और कुछ विपक्ष के पार्षदों की अनुपस्थित में हुई साधारण सभा में कई प्रस्ताव पारित हो जाना क्या दर्शाता है। इससे इस स्वायत्तशासी व्यवस्था में महापौर का महत्व ही क्या रह गया है। लोकतंत्र में विरोध प्रक्रिया का हिस्सा है, परंतु जो हुआ वो महापौर की राजनीतिक विफलता है। अगर उनकी यह दलील है कि यह सारा वैधानिक व्यवस्था के विपरीत है तो अवैधानिक होने क्यों दिया ? अवैधानिक को रोकने क्या कोई बाहर से आएगा ? इसका तो सीधा सा अर्थ है कि वे राजनीतिक रूप से विफल है। उनका यह आरोप कि मंत्री बी डी कल्ला के इशारे पर हो रहा है। इस आरोप से भी महापौर की विफलता ही झलकती है। क्या कल्ला कोई काम भाजपा के महापौर के इशारे पर करेगा? महापौर अब तक जो करती आई है उसमें किसी का इशारा था क्या ? कुल मिलाकर राजनीतिक दृष्टि से नगर निगम में कांग्रेस की सत्तारूढ़ सरकार हावी है। महापौर की व्यवस्थाएं अब नाम मात्र की ही रह गई है। ये वो संकेत हैं जो महापौर की विफलताओं को इंगित करते हैं। इसका कारण यह भी हो सकता है कि महापौर ने निगम प्रशासन पर हावी होकर काम करने की कोशिश की हो और इसका सबक प्रशासनिक अधिकारियों ने दिया हो। इस पूरे घटनाक्रम में जुबानी जमा खर्च के अलावा महापौर कुछ नहीं कर पाई यह अच्छी बात नहीं है। उनका आयुक्त गोपाल राम बिरधा पर बी डी कल्ला के इशारे पर चलने के आरोप को सिद्ध करने और अगर ऐसा है तो निलंबित करने का दम खम्म हो तो ही महापौर की राजनीतिक चल सकती है अन्यथा तो जो हुआ है उसकी जनता में क्या छवि गई है आप खुद जान लें। ऐसे महापौर क्या जन हित के काम कर पाएंगे ?

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