बीकानेर,संगठन के प्रति निष्ठां उसे कहते हैँ, जिसमे संगठन द्वारा घोषित कार्यक्रम को जनता तक व्यक्तिश :, शोसल मिडिया के माध्यम से अवगत करावे, संगठन की अब तक की उपलब्धि से जनता को वाकिब करावे, संगठन के कार्यक्रम होने के बाद संगठन द्वारा जारी पोस्ट को जनता तक शोसल मिडिया के माध्यम से पहुचाये, संगठन के कार्य और घरेलू कार्य के बीच तालमेल बिठाते हुवे दायित्व का निर्वहन करे, संगठन में किसी पदाधिकारी से व्यक्तिगत मनमुटाव, मतभेद को कुंठित होने पर भी इसका असर संगठन में न पड़ने दें l कभी संगठन या उसके मुखिया से ऊपर स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश न करे l
किन्तु संगठन से हतोत्साहित होने के कारण –
ज़ब कार्यकर्ता या पदाधिकारी घर फूँक कर भी टेंशन मोल ले, ज़ब कार्यकर्ता या पदाधिकारी मात्र अपने आपको यूज होते हुवे देखे, जबकि उपेक्षा भी अपनी महसूस करे l जमीनी स्तर पर काम वो करे, विरोधियो की कोपदृष्टि का शिकार वो बने, या आँख की किरकिरी वो बने, किन्तु महत्व ऐसे लोगो को मिले जो या तो पैराशुटी व्यक्ति हो या प्रोफेशनल हो ऐसी स्थिति में वह कार्यकर्ता /पदाधिकारी इतना हतोत्साहित हो जाता हैँ कि फिर वह उस संगठन या सामाजिक संस्था से तो क्या वह किसी से जुड़ने की अपनी इच्छाशक्ति को समाप्त कर देता हैँ l और यह आज की हकीकत हैँ इसलिए उपरोक्त वर्णित पोस्ट में दिए गये तथ्यों के अनुसार किसी भी संगठन/सामाजिक /स्वयंसेवी संस्थाओ में ऐसे कार्यकर्ताओ की फ़सल हीं नष्ट हो चुंकि हैँ l हर चुनाव या सामाजिक संस्थाओ में हर बार एक नई जमीनी कार्यकर्ताओ की फ़सल पैदा होती हैँ एक उम्मीद के साथ किन्तु एक समय के बाद अपने आपको मात्र और मात्र ठगा सा महसूस करते हुवे अपने आपको कोसने के अलावा कुछ पल्ले नहीं पड़ता फिर अपनों के साथ विरोधियो के नमक मिर्च लगाकर सुनने को मिलते हैँ ताने l ये मेरा जमीनी अनुभव हैँ जो मैंने प्रेक्टिकल महसूस किया हैँ और अनेक जमीनी कार्यकर्ताओ से चर्चा में उनकी पीड़ा को महसूस किया हैँ l