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बीकानेर,महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय का 21 वें स्थापना दिवस यानि दो दशक तक समाज और युवा पीढ़ी को क्या योगदान रहा ? इस पर कई सवाल उठते हैं। इन सवालों का प्रेस, जनप्रतिनिधि या सरकार कोई जवाब जानना चाहते हैं? राजस्थान में इस विश्व विद्यालय की छवि केवल परीक्षा आयोजन करने वाले विश्व विद्यालय की रही है। पूरे संकाय और मानदंडों के अनुसार विश्वविद्यालय स्ट्रेक्चर नहीं बन पाने से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग भी सवाल उठा रहा है। शिक्षा, शोध, शैक्षणिक उपलब्धियां और नई पीढ़ी को दिशा देने में दो दशक में उपाधियां देने के अलावा कुछ खास गिनाने लायक उपलब्धियां नहीं है। अगर प्राइवेट छात्रों की परीक्षा फीस और प्राइवेट कॉलेजों की मान्यता की फीस की आमदनी नहीं हो तो विश्वविद्यालय की क्या स्थिति बनती है यह भी एक सवाल है। इस बड़ी राशि का क्या उपयोग होता है यह भी जांचने परखने जैसा सवाल है। विश्व विद्यालय में पहले से चल रहे विभाग कंप्यूटर साइंस, एनवायरमेंट, माइक्रो बायोलॉजी, हिस्ट्री में मानक पैटर्न के पूरे पद भी नहीं भरे जा सके हैं। इससे इन विभागों में शैक्षणिक गुणवत्ता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। दो वर्ष पहले राज्य सरकार की ओर से बिजनेस मैनेजमेंट, ड्राइंग एंड पेंटिंग, जियोग्राफी, लॉ ( विधि संकाय) की घोषणा की गई अभी तक इन विभागों में तय मानदंडों के अनुरूप विभागाध्यक्ष, एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफेसर के छह छह पदों की भर्ती ही नहीं हुई है। यह बात सही है कि विश्व विद्यालय राजस्थान में सबसे ज्यादा प्राइवेट छात्रों की परीक्षा लेता है। परीक्षा की फीस विश्व विद्यालय का बड़ा वित्तीय संसाधन है। इसी फीस से परिसर में कई निर्माण कार्य भी करवाया है। इंडोर स्टेडियम बना है, परंतु कोच के पद नहीं भरे हैं। साइकिल वेलोड्राम तकनीकी रूप से सही नहीं बनने की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। पूर्व वी सी के खिलाफ स्टाफ ने ही एफआईआर दर्ज करवाई थी। विश्व विद्यालय में इंटरनल पॉलिटिक्स को लेकर आपसी शिकायतें इतनी है कि बाकी बातें इतर हो जाती है। महामहिम राज्यपाल कलराज मिश्र कुलाधिपति है राजस्थान में कुलपतियों को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं कुलाधिपति को विचार करना ही चाहिए। अन्यथा इन कुलपतियों का कार्यकाल एक मिसाल बन जाएगा। वे दीक्षांत समारोह में पधार रहे हैं। विश्वविद्यालय की भावी पीढ़ी के हित में उनको और राजस्थान सरकार को विचार करना चाहिए। इस समारोह में उप मुख्यमंत्री डा. प्रेम चंद बैरवा जिनके पास तकनीकी शिक्षा, उच्च शिक्षा, समेत अन्य विभाग है उनके आने के बाद तो विश्वविद्यालय में खामियों और विसंगतियों को दूर कर आवश्यक सुधार होना चाहिए। कुलाधिपति और उप मुख्यमंत्री यह देखें कि जो वे 1 लाख 26 हजार 880 उपाधियां दे रहे हैं उनके पीछे का सच क्या है? विश्वविद्यालय से संबद्ध ( एफिलेटेड) कोलेजो की धरातल की स्थिति क्या है? अगर सरकार और किसी में पद और मान की नैतिकता बची है तो पड़ताल करें अन्यथा तो जैसा है वैसा चल ही रहा है।

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