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बीकानेर,राजस्थान में इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनावों के चलते प्रदेश में सियासी मौसम चढ़ना शुरू हो गया है। चुनावी माहौल में जहां एक और राजनैतिक पार्टियां पूरी तरह से एक्टिव मोड में आ गई है, तो वहीँ दूसरी और सभी उम्मीदवारों में भी टिकट की दावेदारी दिखाना शुरू कर दिया है।

राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सभी राजनैतिक पार्टियों ने धार्मिक और जातीय समीकरणों को बांधना शुरू कर दिया है। इन समीकरणों का अंदाजा पिछले कुछ समय में सभी पार्टियों के बड़े नेताओं के क्षेत्रीय दौरों और सभाओं से लगाया जा सकता है। जैसे जैसे चुनाव पास आ रहे हैं राजस्थान देश की राजनीती का केंद्र बनता जा रहा है।

प्रदेश में इन दोनों सियासी उबाल अपने चरम पर है, हालाँकि चुनाव आयोग ने अब तक राजस्थान चुनावों के लिए किसी भी तरह की आधिकारिक की घोषणा नहीं की है। लेकिन पिछले कुछ चुनावों की गणित के आधार पर ये कहा जा सकता है कि प्रदेश में अक्टूबर के महीने में आचार सहिंता और दिसम्बर महीने के आखिर तक चुनाव की घोषणा किये जाने की संभावना है। अगर अब तक चुनावों की बात करें तो राजस्थान में किसी भी पार्टी को जीत के लिए धर्म और जाति फैक्टर पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होगी। शायद यही कारन है की इस बार सभी पार्टियां उम्मीदवारों का चयन धर्म और जाति के आधार पर करने पर जोर दे रही है।

राजस्थान के अब तक के चुनावों के आधार पर प्रदेश की 200 विधानसभा क्षेत्रों में से 80-90 सीटें ऐसी है जहां पर जाति विशेष के वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। राजनैतिक विश्लेषकों की माने तो राजस्थान में हर पांच साल बाद सरकार बदलने की परम्परा के चलते मतदाताओं के वोटिंग करने की भूमिका में भी बदलाव आया है। प्रदेश में कुल 89 फीसदी आबादी हिंदू और दो फीसदी अन्य धर्मों के है, इसमें अगड़े 19 फीसदी, पिछड़े 40 फीसदी, दलित 18 फीसदी और 14 फीसदी आदिवासी आते हैं। तो आईये आज हम आपको अगड़ों की गणित समझाते हैं

राजस्थान में बिना जातीय समीकरणों के चुनाव जितना असंभव सा ही दिखता हैं, राजस्थान के मतदाताओं में एक सबसे बाद वर्ग अगड़ों का है जिनके पास प्रदेश के 19 फीसदी वोटर्स हैं। आगे अगड़ों की बात करें तो इनमें 7 फीसदी ब्राह्मण, 6 फीसदी राजपूत, 4 फीसदी वैश्य और 2 फीसदी अन्य वर्ग आते हैं।

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