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जोधपुर। पश्चिमी राजस्थान के किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। मौसम की बेरुखी ने किसानों को सूखा व अकाल के कागार पर खड़ा कर दिया है। हालात यह हैं कि कुल बुआई की केवल 10 प्रतिशत फसलें ही बची हैं, जिन्हें बचाने के लिए किसान भरपूर मेहनत कर रहे हैं।

 

पश्चिमी राजस्थान में वर्षा-आधारित बारानी (असिंचित) कृषि 11.17 मिलीयन हेक्टेयर यानी कुल भौगोलिक क्षेत्र के 53.49 प्रतिशत हिस्से में होती है। इस बार मानसून पश्चिमी राजस्थान से रूठा रहा, जिसने किसानों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। इधर बिजली की कटौती, कम वोल्टेज की सप्लाई, बढ़ते तापमान ने भी किसानों की कमर तोड़ने में कमी नहीं रखी। यहां तक पशुओं के लिए चारे का संकट भी खड़ा हो गया है।

 

जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, जालोर के किसानों के हालात गंभीर हैं। यहां 41.18 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में 30.6 लाख हेक्टेयर भूमि पर खरीब फसलों की बुआई हुई, जो कि करीब 75 फीसदी है। इसमें से केवल 11 लाख हेक्टेयर फसले बची हैं, बाकि सब नष्ट हो चुकी है।

 

जोधपुर के किसान बहा रहे आंसू

जोधपुर जिले में कुल बुआई क्षेत्र 13 लाख हेक्टेयर है। इस बार मानसून में बारिश नहीं होने से 9 लाख हेक्टेयर पर ही बुआई हो पाई थी। इसमें से 5 लाख हेक्टेयर बारानी का है। यानी यहां सिर्फ बारिश के पानी से ही फसले संभव हैं। जून की शुरुआत में बुआई तो किसानों ने कर दी, लेकिन उसमें केवल 4 लाख हेक्टेयर में ही फसलें शेष हैं, जिन्हें बचाने के लिए किसान दिन-रात एक कर रहे हैं।

 

400 वोल्ट की जरूरत 300 की सप्लाई से जल रही हैं मोटरें

किसानों पर बिजली का झटका भी जोर से लग रहा है। एक तो बिजली कटौती ऊपर से वोल्टेज की कमी से भी किसान परेशान हैं। 400 की जगह 300 वोल्ट की सप्लाई से ट्यूबवेल पर लगी मोटरें जलने लगी हैं। बारिश का पानी नहीं है, इसलिए सिंचाई मोटर से ही हो रही है। ऐसे में मोटर खराब होने पर उसे ठीक करवाने का खर्च तो बढ़ा ही है, सिंचाई भी बाधित हो रही है। जोधपुर में 75 हजार किसानों के पास कृषि कनेक्शन हैं। खराब वोल्टेज से 75 हजार किसान प्रभावित हो रहे हैं। वहीं ट्यूबवेल पर निर्भरता से भूमिगत जलस्तर भी गिर रहा है।

 

 

बाड़मेर में सूखे खेत।

 

मूंग की खेती बचाएं या मूंगफली की

किसानों ने 4 लाख हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र में मूंगफली, कपास, अरंडी, गाजर व मूंग की बुआई कर रखी है। ज्यादा रकबा मूंगफली और मूंग की फसल का है। अब संकट इस बात का है कि सीमित पानी की वजह से कौन सी फसल को सींचा जाए और किसे छोड़ा जाए? मूंग की फसलें अच्छी तैयार हो चुकी हैं, लेकिन किसान मूंगफली की फसलों को बचाने की जुगत में है। मूंगफली की बुआई में लागत ज्यादा आती है। ऐसे में मूंग की फसलों को बारिश के भरोसे बिना सींचे ही छोड़ना पड़ रहा है।

 

बारानी क्षेत्र की 70 प्रतिशत फसलें नष्ट

इसमें बाजरा, मूंग, मोठ व ग्वार को बड़ा नुकसान हुआ है। सिंचित क्षेत्र में भी सिंचाई के अभाव में अब तक के हालात अनुसार 30 प्रतिशत उत्पादन कम होने की आशंका है। मूंग की फसल सबसे ज्यादा प्रभावित है।

 

2 हजार करोड़ से अधिक नुकसान का अनुमान

जिले के 3 लाख हेक्टेयर में बाजरा व 1 लाख 50 हजार हेक्टेयर में मूंग की बुआई हुई थी। बाजरे का 5 लाख 50 मीट्रिक टन व मूंग का 2 लाख 35 हजार मीट्रिक टन उत्पादन का अनुमान था, लेकिन बारिश के अभाव में 70 प्रतिशत फसल खत्म हो गई है। जिससे बारानी क्षेत्र की इन दो फसलों में ही 2000 करोड़ से अधिक के नुकसान की आशंका है।

 

जैसलमेर में खड़ीन तक सूखे, मुश्किल में किसान

पश्चिमी राजस्थान के दूसरे जिले जैसलमेर से भी किसानों के हाल बेहाल हैं। यहां 7 लाख हेक्टेयर भूमि पर बुआई होती है, लेकिन इस बार 5 लाख हेक्टेयर पर हुई। मानसून आते ही जैसलमेर में अच्छी बारिश हुई, लेकिन उसके बाद एक बार भी बारिश नहीं हुई। किसानों की 3 हेक्टेयर में खड़ी फसलें सिंचाई की कमी से नष्ट हो गईं। अब सिंचित क्षेत्र में करीब 2 लाख हेक्टेयर में फसलें बची हैं। वह भी जलने के कगार पर हैं।

 

पहले क्लोजर से इंदिरागांधी नहर में पानी नहीं मिला

जैसलमेर के सिंचित क्षेत्र इंदिरा गांधी नहर के पानी पर निर्भर है। किसानों का कहना है कि यहां पहले 60 दिन के क्लोजर की वजह से पानी नहीं मिला था। अब बारिश नहीं होने से जलस्तर गिर गया। सिंचित क्षेत्र की फसलें भी अब बारिश के भरोसे हैं।

 

खड़ीनों में पानी नहीं

जैसलमेर में गैर सिंचित क्षेत्र आज भी खड़ीन सिंचाई (बारिश के पानी से सिंचाई) पर भी निर्भर हैं। यहां खडीनों में वर्षा जल एकत्र होता है उसी से सिंचाई होती है। इस बार खड़ीन खाली हैं। फतेहगढ़ तहसील, पोकरण, जैसलमेर व नाचना में ट्यूबवेल क्षेत्र हैं, लेकिन जिन किसानों को बिजली कनेक्शन मिले, वह बिजली कटौती की वजह से सिंचाई नहीं कर पा रहे हैं। हजारों किसान डिमांड राशि भरने के बाद भी बिजली कनेक्शन की बाट जोह रहे हैं।

 

 

जैसलमेर में खेत के हालात।

 

बाड़मेर जिले में गहराया चारे का संकट, ज्यादा बुआई तो नुकसान भी ज्यादा

बाडमेंर में भी किसानों के हाल जोधपुर और जैसलमेर से भी बुरे हैं। यहां हर साल 15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ की बुआई होती है। जून की शुरुआत में अच्छी बारिश हुई तो किसानों ने इस बार 11.93 लाख हेक्टेयर में बुआई कर दी, लेकिन मानूसन की बेरुखी किसानों पर आफत बनकर टूटी। यहां अंकुरित और तीन फीट तक खड़ी फसलें जल गईं। सिंचित क्षेत्र में मात्र 3 लाख हेक्टेयर पर फसलें बची हैं। वह भी जलने के कगार पर है। किसान कुंओं से सिंचाई कर रहे हैं।

 

रबी की फसलों पर भी रहेगा असर

बाड़मेर में 18 में से 12 तहसीलों में खरीफ के बाद जीरे की बुआई होती है। बारिश के अभाव में सूखी जमीनों का असर जीरे और अरंडी की फसल पर भी रहेगा। यानी खरीब की फसलों के साथ रबी की फसलें भी प्रभावित होंगी। किसान आर्थिक रुप से पूरी तरह टूट जाएगा।

 

कलेक्टर ने दिए गिरदावरी के आदेश

जिला कलेक्टर लोकबंधु ने बाड़मेर, रामसर, बायतु, शिव, गिड़ा, गड़रारोड़, गुड़ामालाणी, धनाऊ, धोरीमन्ना, सिणधरी, चौहटन, सेड़वा, सिवाणा, समदड़ी पचपदरा में 11.93 लाख हेक्टेयर भूमि पर हुई बुआई की गिरदावरी के आदेश दिए हैं। हालांकि सितंबर माह में गिरदावरी होती है, लेकिन सूखे के हालात को भांपते हुए एक माह पहले ही आदेश दे दिए।

 

पर्याप्त बिजली नहीं

दिन में 6 घंटे व रात में 7 घंटे किसानों को बिजली मिलने के सरकारी आदेश के बावजूद मुश्किल से 3 से 4 घंटे ही बिजली मिल पा रही है। जिन किसानों के कृषि कनेक्शन हैं, वे बिजली की पर्याप्त सप्लाई नहीं होने से सिंचाई नहीं कर पा रहे। नमृदा नहर में अवैध कनेक्शन कर लोग पानी निकाल रहे हैं। किसानों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा।

 

पशुचारा खत्म, पशुधन में गिरावट की आशंका

बाड़मेर के किसानों के पास पशुधन भी ज्यादा है। उनकी आय पशुधन पर भी निर्भर करती है। यहां पशुओं के लिए चारा खत्म हो चुका है। किसानों का कहना है कि इस बार हालात 2009 से भी ज्यादा खराब हैं। उस समय सरकार ने गन्ने के चारे की व्यवस्था करवाई, तब जाकर पशु बचे थे।

 

जालोर जिले में 60 फीसदी फसलों को नुकसान

जालोर जिले में खरीफ बुआई का लक्ष्य 6 लाख 18 हजार हेक्टेयर का है, लेकिन इस साल 4 लाख 13 हजार 429 हेक्टेयर पर बुआई हुई है। अधिकांश फसलें जल चुकी है। यहां ज्वार और बाजरा की 3 लाख 36 हजार हेक्टेयर पर बुआई होती है, जो इस बार केवल 2 लाख 52 हजार 125 हेक्टेयर पर हुई। फसलें 50 प्रतिशत जल चुकी हैं। मूंग, मोठ की दलहन की फसल 11 लाख 50 हजार हेक्टेयर पर होती है, लेकिन इस बार बुआई 87 हजार 973 हेक्टेयर पर ही हुई।

 

तिल, मूंगफली, अरंडी को मिलाकर कुल तिलहन फसलों की बुआई 1 लाख 11 हजार हेक्टेयर पर होती है, लेकिन इस बार 41 हजार 425 हेक्टेयर पर सिमट कर रह गई। जालोर जिले में कपास की 1 हजार हेक्टेयर में से 630 हेक्टेयर बुआई हुई। ग्वार सीड की भी 45 हजार में से 25 हजार हेक्टेयर में बुआई हो पाई है। यहां औसत बारिश 560 मिमी होती है, जो कि 124.33 मिमी ही अब तक दर्ज हुई है।

 

इनका कहना है

किसानों के बिगड़ते हालातों को लेकर भारतीय किसान संघ जोधपुर के प्रांत प्रचार प्रमुख तुलछाराम सिंवर, जैसलमेर से जिला मंत्री वैण सिंह, बाड़मेर से प्रांत मंत्री हरिरराम और जालोर जिला के अध्यक्ष सोमाराम का कहना है कि पश्चिमी राजस्थान में बारिश के अभाव में आरानी क्षेत्र की अधिकतर फसलें नष्ट हो चुकी हैं। सिंचित क्षेत्र में भी अधिक तापमान बढ़ने व हवा की नमी कम हो जाने से सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ रही है। बिजली सप्लाई गड़बड़ाने से किसान सामान्य सिंचाई भी नहीं कर पा रहे। सरकार नेशनल ग्रिड से बिजली खरीद कर किसानों को सिंचाई के लिए अतिरिक्त बिजली दें और पशुओं के लिए चारे व पानी का पुख्ता प्रबंध करें, तभी हालात कुछ काबू में हो पाएंगे।

 

 

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