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बीकानेर,श्रीमाली समाज महिला मण्डल द्वारा अजित फाउण्डेशन में आयोजित लोकगीत एवं एकल काव्य पाठ कार्यक्रम की अध्यक्ष्यता करते हुए इन्द्रा दवे ने कहा कि लोकगीत एवं काव्य एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिससे हम अपनी संस्कृति को बचा सकते है एवं जान सकते है। लोक के माध्यम से ही हम अपनी लोक कलाओं एवं लोक विधाओं को बीज रूप में संरक्षित रख सकते है। लोकगीतों के द्वारा हम अपनी संस्कृति को जान सकते है। यह एक सशक्त माध्यम है जिससे हमारा जुड़ाव रहना आवश्यक है ताकि हम अपनी आने वाली पीढि को संस्कारित एवं सामाजिक बना सकते है।

सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ. कृष्णा आचार्य ने लोकगीतों, राजस्थानी दौहों एवं एकल काव्य पाठ की प्रस्तुति देते हुए उन्होंने सामाजिक व्यवस्था, महिला अधिकार, लोक परम्पराओं, वर्तमान परिदृश्य, महंगाई एवं जीवन जीने की शैली पर लोकगीतों की प्रस्तुति दी। डॉ. आचार्य ने माता म्हारी सुरस्वती से आगाज करते हुए मंहगाई एवं मिलावट पर तम्बुरा साची साची बोल… गीत प्रस्तुत किया। वीर, श्रृंगार एवं हास्य रस पर आधारित राजस्थानी विरांगनााओं पर ओजस्वी भाषा में गीत प्रस्तुत किए। रानस्थानी नार…. गीत के माध्यम से उन्होंने राजस्थानी वेशभूषा, गहनों एवं बोली की अलग ही पहचान बताई। मिश्री रो सिट्टों…. गीत के द्वारा उन्होंने एकता की बात एवं सभी को साथ लेकर चलने की बात पुरजोर से रखी।

श्रीमाली समाज महिला मण्डल की प्रवक्ता डिम्पल श्रीमाली ने बताया कि हमें सामाजिक सरोकारों के साथ-साथ संस्कृति एवं विरासत से भी जुड़े रहना आवश्यक है। लोक साहित्य ही एक ऐसा माध्यम है जिससे हम अपनी परम्पराओं को निरन्तर परिष्कृत करते हुए आने वाली पीढि को सौंप सकते है। इसके लिए हमें इस तरह के आयोजनों को निरन्तर आयोजित करना होगा।
संध्या श्रीमाली ने किसान एवं वर्षा पर केन्द्रित आ ओ रे बादळिया…. गीत की प्रस्तुति देकर समा बांध दिया।

संस्था कार्यक्रम समन्वयक संजय श्रीमाली ने कार्यक्रम संयोजन किया। तथा संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए सभी का स्वागत एवं मंच संचालन किया। कार्यक्रम के अंत में मोनिका यादव ने संस्था द्वारा सभी आगुन्तकों का धन्यवाद ज्ञापित किया।

कार्यक्रम में कामिनी, भागीरथी, पार्वती, उर्मिला, चन्द्रकला, ललिता, मोनिका, ज्योति, संध्या, शालू, दर्शना, विनू, विजन्ता, रेखा, अंजली, माया, डिम्पल, बुलबुल, मानू, मीनाक्षी, तरूणा, वंशिका उपस्थित रहे।

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