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बीकानेर,आदिकाल से ही ऋषि मुनि, राजा महाराज पंच महाभूतों के पोषण और विश्व कल्याण की भावना से यज्ञ करते आए हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु का प्राकृतिक पोषण यज्ञ से ही होता है। यह परंपरा आज भी भारतीय जीवन संस्कृति में समाहित है। किसी व्यक्ति में यज्ञ करने की भावना कब जागृत होती है ? स्वार्थी प्रवृत्तियों को तिलांजली देने से मनुष्य में यज्ञ करने की सिद्धि प्राप्त होती है। यज्ञ में आहुति का तात्पर्य सार्वजनिक कल्याण के लिए अपनी क्षमताओं को समर्पित करना होता है। सरेह नथानिया गोचर में वृष्टि महायज्ञ की भावना भी सर्व व्यापी गोधन और आमजन की खुशहाली है। धुरंधर राजनीतिज्ञ देवी सिंह भाटी इरादों और धुन के पक्के हैं। उनके राजनीतिक जीवन की आलोचना के कई बिंदु हो सकते हैं, परंतु जनहित और जन कल्याण की भी वे ऐसी मिसाल बने हैं जिसकी हर किसी नेता से उम्मीद नहीं की जा सकती। अभी वे प्रदेश व्यापी गोचर, ओरण, जोहड़ पायतन और बहाव की भूमि के संरक्षण की आवाज उठा रहे हैं। यह आवाज, प्रकृति, वन्य जीव जंतु और पारस्थितिकी संरक्षण का बहुत ही पुण्य कार्य है। सरेह नथानिया गोचर की चाहर दिवारी बनाने का काम अपनी क्षमताओं को सार्वजनिक कल्याण के कामों में समर्पित करना ही है। भाटी ने खुद अपनी मां की स्मृति में पांच किलोमीटर दीवार बनाने के लिए एक करोड़ रुपए दिए हैं। प्रदेश में सर्व व्यापी गोधन और आमजन की खुशहाली की भावना से वृष्टि महायज्ञ सर्व कल्याण की पवित्र भावना है। लगता है देवी सिंह भाटी ने अपना जीवन समाज राष्ट्र और गोधन कल्याण को समर्पित कर दिया है। देवी सिंह जी का यह वृष्टि महायज्ञ सफल हो। वर्षा हो, गायों के खातिर खूब घास उपजे, आमजन में खुशहाली आए। उनका पूरा जीवन समाज हितों के कार्यों में ही समर्पित रहे। यही वृष्टि महायज्ञ की सफलता है और जन कल्याण भी।

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