बीकानेर।स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के सभागार में मंगलवार को कुलपति प्रो आर पी सिंह ने नोखा मुल के असम प्रवासी एम डी गट्टानी की पुस्तक “जैविक कृषि एवं गौधन’’का विमोचन किया गया। इस अवसर पर कुलपति प्रो सिंह ने कहा कि कृषि रसायनों की अत्यधिक उपयोग के कारण हमने अनेक असाध्य बीमारियों को न्योता दिया है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है की आने वाली पीढ़ियों के लिए हालात और अधिक दुष्कर हो जाएंगे। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि किसी जमाने में मात्र जैविक खेती ही हुआ करती थी लेकिन बढ़ती जनसंख्या की खाद्य आपूर्ति के कारण हम जैविक खेती को भूल गए है। अतीत में पूर्ण रूप से जैविक पद्धति पर निर्भर रही हमारी कृषि व्यवस्था समय की मांग के अनुरूप कृत्रिम रसायनों पर निर्भर हो गई। नतीजा यह हुआ कि खाद्यान्न उत्पादन के मामले में हमारा देश स्वावलंबी भले ही हो गया. लेकिन इस व्यवस्था ने हमारी प्राकृतिक संपदाओं पर नकारात्मक प्रभाव डाला। वर्तमान समय में जल-जमीन- वायु प्रदूषण के फलस्वरूप, रसायन आधारित कृषि व्यवस्था पर ही प्रश्न खड़े हो रहे हैं। यही कारण है कि जैविक कृषि व्यवस्था की ओर लौटकर प्राकृतिक संपदाओं को समग्र रूप से पुनः सक्रिय करना समय की मांग बनती जा रही है। लेखक श्री गट्टाणी ने एक वीडियो के माध्यम से उनके द्वारा किए जा रहे जैविक खेती से जुड़े कार्यों को प्रदर्शित किया। कुलपति प्रो सिंह ने बताया की लेखक श्री गट्टाणी ने इस पुस्तक में किसानों को जैविक खेती एवं गौधन से जुड़े सभी पहलुओं की विस्तार पूर्वक जानकारी देने का प्रयास किया गया है। इसमें मुख्य रूप से जैविक खेती एवं इसके सिद्धांत, जैविक खेती के लाभ, जैविक खाद बनाने के तरीके और उनका उपयोग, हरी खाद एवं राइजोबियम जीवाणु कल्चर, जैविक कीटनाशक, रोगनाशक बनाने की विधियां और उपयोग, मिश्रित खेती से मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना, खरपतवार की समस्या को फायदे में बदलना एवं गौधन के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई हैं। इस अवसर पर
लेखक एमडी गट्टाणी ने बताया कि वे वर्षों से जैविक कृषि के प्रचार-प्रसार से जुड़े हुए है। और कृषि की जैविक पद्धति अपनाने के इच्छुक किसानों के मार्गदर्शन के उद्देश्य से यह पुस्तक बनाई है। जिसका लाभ ‘किसानो एवं गौधन पर कार्य कर रहे व्यक्तियों को मिल सके । वे स्वयं भी नोखा में 7.71 हैक्टेयर भूमि पर जैविक विधियों से कृषि कार्य करते हैं। इनके खेत पर कतारों में लगे 6000 वृक्ष और अन्य पौध नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। यहां पर गोबर गैस स्लरी आधारित वर्मीकम्पोस्ट एवं वर्मीवाश, संयंत्र भी स्थापित किए हुए हैं। दुश्मन कीटों-पतंगों, रोगों आदि से निपटने के लिए भी वानस्पतिक कीटनाशक बनाते हैं। खरपतवार का भी ये उत्पादनशील उपयोग करते हैं। गट्टानी ने कृषि विश्वविद्यालय के सभी वैज्ञानिकों को उनके खेत अवलोकन करने का भी निमंत्रण दिया । इससे पहले लेखक एम डी गट्टानी ने कुलपति प्रो आर पी सिंह और बिहार कृषि विश्वविद्यालय साबोर भागलपुर के कुलपति डॉ अरुण कुमार को आसामीज फुलाम गमछा पहनाकर उनका अभिनंदन किया ।।कार्यक्रम के अंत में श्री ओम प्रकाश राठी ने सभी का आभार व्यक्त किया।यह रहे उपस्थित…. डॉक्टर पी एस शेखावत, डॉक्टर दाताराम ,डॉक्टर वीर सिंह, डॉक्टर मधु शर्मा, डॉ विमला डुंकवाल, डॉ दीपाली धवन. पीआरओ सतीश सोनी, विशेष अधिकारी विपिन लड्ढा.