बीकानेर, वेटरनरी विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशालय एवं पशुपालन विभाग, के संयुक्त तत्वावधान में फील्ड पशुचिकित्सकों के लिए भारत सरकार की एस्केड परियोजना के अन्तर्गत पशुओं में रोग निदान एवं नियंत्रण विषय पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण मंगलवार को सम्पन्न हुआ। प्रशिक्षण शिविर के समापन सत्र में पशुचिकित्सकों को सम्बोधित करते हुए कुलपति प्रो. सतीश के. गर्ग ने कहा कि पशुचिकित्सको का कार्य केवल पशु ईलाज तक ही सीमित नहीं है वरन् पशु उत्पादन क्षमता बढ़ाना भी उनका कर्त्तव्य है। पशुचिकित्सकों को फिल्ड में कार्य करते हुए नित नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस तरह के प्रशिक्षणों के माध्यम से उनको पशुचिकित्सा क्षेत्र की नई तकनीकों को जानने का मौका मिलता है जो कि उनके फील्ड में चुनौतियों के निदान में सहायक सिद्ध होती है। प्रो. गर्ग ने बताया कि विश्वविद्यालय पशु चिकित्सको हेतु भविष्य में आवश्यकतानुसार पशुचिकित्सा के अलग-अलग विषयों पर प्रशिक्षणों का आयोजन करेगा जो कि फील्ड पशुचिकित्सको हेतु विशेष लाभकारी सिद्ध होंगे। समापन सत्र के विशिष्ट अतिथि डॉ. ए.साहु, निदेशक राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर ने कहा कि इन प्रशिक्षणों द्वारा फिल्ड पशुचिकित्सको को दोहरा फायदा मिलता हैं, पशु ईलाज के नवीन उपकरणों को देखने और सिखने के साथ-साथ विषय विशेषज्ञों से ज्ञान अर्जित होता है अतः पशुचिकित्सको को इस ज्ञान एवं कौशल का उपयोग पशु ईलाज एवं पशु उत्पादन बढ़ाने हेतु करना चाहिए ताकि पशुपालको को आर्थिक लाभ मिल सके। प्रसार शिक्षा निदेशक प्रो. राजेश कुमार धूड़िया ने बताया कि बीकानेर, उदयपुर, व जयपुर केन्द्रों पर भारत सरकार की एस्केड परियोजना के अंर्तगत विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित पांच प्रशिक्षणों में राज्य के 100 पशुचिकित्सको ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण समापन के अवसर पर अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक एवं नागौर जिलों के पशुपालन विभाग के 20 पशुचिकित्सकों ने भाग लिया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. दीपिका धूड़िया, डॉ. तरूणा भाटी एवं डॉ. मनोहर सेन रहे। प्रशिक्षण सह-समन्वयक डॉ. मगेंश कुमार रहें। इस पांच दिवसीय प्रशिक्षण में विषय विशेषज्ञों द्वारा पशुओं में मेटाबॉलिक रोग, रक्त एवं मूत्र जांच, रेडियोग्राफिक डायग्नोस्टिक तकनीक, विभिन्न नमूनों को एकत्र एवं जांच हेतु भेजने के तरीके, अल्ट्रासोनोग्राफी तकनीक, रोग नियंत्रण की बायोटेक्नोलॉजिकल तकनीक, बायोसिक्योरिटी उपाय, पोस्टमार्टम जांच, पशुजन्य रोगो से बचाव, बायोसेफ्टी लैब, ग्याभिन पशुओं की देखरेख, एवियन इन्फ्लूएंजा नियंत्रण आदि विषयों पर व्याख्यानों के साथ-साथ पशु अनुसंधान केन्द्रों, राष्ट्रीय उष्ट्र एवं अश्व अनुसंधान केन्द्र, क्लिनिक्स एवं प्रयोगशालाओं के भ्रमण आयोजित किये गये। प्रशिक्षण उपरान्त प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाण-पत्र वितरित किए गये।
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