Trending Now


बीकानेर,2025 के संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष (IYC2025) की थीम सहकारिताएँ एक बेहतर दुनिया का निर्माण करती हैं , जो हर जगह सहकारी समितियों के स्थायी वैश्विक प्रभाव को प्रदर्शित करता है। इस उद्देश्य से प्रशासक एवं प्रबंध संचालक आरसीडीएफ श्रुति भारद्वाज के द्वारा जारी आदेशों की अनुपालना में उरमूल डेयरी प्रबन्ध संचालक बाबूलाल विश्नोई के निर्देशों अनुसार एन पी पी डी परियोजना के अन्तर्गत उरमूल डेयरी बीकानेर की और से लालमदेसर बड़ा में लालमदेसर बास दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति के अध्यक्ष हरचंदराम सहू सचिव सहीराम जी सहू के सहयोग स्वच्छ दुग्ध उत्पादन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया।
जिसमें अक्षय निधि प्रोजेक्ट के प्रशिक्षक अमित कुमार ने पशुपालकों ने स्वच्छ दुग्ध उत्पादन जानकारी दी कि जैसा कि हम सभी जानते है कि दूध एक सर्वोत्तम पेय एवं खाद्य पदार्थ है। इसमें भोजन के सभी आवश्यक तत्व जैसे प्रोटीन, शक्कर, वसा, खनिज लवण तथा विटामिन आदि उचित मात्रा में पाये जाते है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त आवश्यक होते है। इसीलिए दूध को एक सम्पूर्ण आहार कहा गया है। दूध में पाये जाने वाले उपर्युक्त आवश्यक तत्व मनुष्यों की ही भॉति दूध में पाये जाने वाले सूक्ष्म (आँख से न दिखायी देने वाले) जीवाणुओं की वृद्धि के लिए भी उपयुक्त होते है, जिससे दूध में जीवाणुओं की वृद्धि होते ही दूध शीघ्र खराब होने लगता है। इसे अधिक समय तक साधारण दशा में सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। दूसरे कुछ हानिकारक जीवाणु दूध के माध्यम से दूध पीने वालों में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ पैदा कर देते हैं। अतः दूध को अधिक समय तक सुरक्षित रखने, गन्दे एवं असुरक्षित दूध की पीने से होने वाली बीमारियों से उपभोक्ताओं को बचाने तथा अधिक आर्थिक लाभ कमाने के उद्देश्य से दूध का उत्पादन साफ तरीकों से करना अत्यन्त आवश्यक है। स्वच्छ दूध वह दूध होता है जो कि साफ एवं बीमारी रहित जानवरों से, साफ वातावरण में, साफ एवं जीवाणु रहित बर्तन मे, साफ एवं बीमारी रहित ग्वालों द्वार निकाला गया हो तथा जिसमें दिखाई देने वाली गन्दगियों (जैसे गोबर के कण, घास-फूस के तिनके, बाल मच्छर, मक्खियाँ आदि) बिल्कुल न हो तथा न दिखाई देने वाली गन्दगी जैसे सूक्ष्म आकार वाले जीवाणु कम से कम संख्या में हो। दूध में दो प्रकार की गन्दगियाँ पायी जाती है
आँख से दिखाई देने वाली गन्दगियाँ – जैसे गोबर के कण, घास-फूस के तिनके, बाल धूल के कण, मच्छर, मक्खियाँ आदि। इन्हें साफ कपड़े या छनने से छान कर अलग किया जा सकता है। ऑख से न दिखाई देने वाली गन्दगियाँ – इसके अन्तर्गत सूक्ष्म आकार वाले जीवाणु आते हैं, जो केवल सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से ही देखे जा सकते है। इन्हें नष्ट करने के लिए दूध को गरम करना पड़ता है दूध को लम्बे समय तक रखना हो तो इसे ठंडा करके रखना चाहिये।
उरमूल डेयरी आरपी रामलाल वर्मा ने बताया कि हमारे देश में इस समय कुल दूध का उत्पादन 3.3 करोड़ मीट्रिक टन से अधिक हो रहा है जो अधिकतर गाँवों में या शहर की डेरियों में ही उत्पादित किया जाता है, जहां सफाई पर ध्यान न देने के कारण दूध में जीवाणुओं की संख्या बहुत अधिक होती है तथा दिखाई देने वाली गन्दगियाँ जो नहीं होने चाहिए वह भी मौजूद रहती हैं। इसके मुख्य कारण निम्न हैं –
-गाय के बच्चे को थन से दूध का पिलाना।
-गाँवों एवं शहरों में गन्दे स्थानों पर दूध निकालना।
-गन्दे बर्तनों में दूध निकालना एवं रखना।
-पशुओं को दुहने से पहले ठीक से सफाई न करना।
पशुओं को दुहने वाले के हाथ एवं कपड़े साफ न होना।
-दूध दुहने वाले का बीमार होना।
-दूध बेचने ले जाते समय पत्तियों, भूसे व कागज आदि से ढकना।
-देश की जलवायु का गर्म होना।
-गन्दे पदार्थों से दूध का अपमिश्रण करना।
-साफ दूध का उत्पादन स्वास्थ्य एवं आर्थिक लाभ के लिए आवश्यक है अतः ऐसे दूध का उत्पादन करते समय निम्न बातों पर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है:
दूध देने वाले पशु से सम्बन्धित सावधानियाँ:
-दूध देने वाला पशु पूर्ण स्वस्थ होना चाहिए। -टी.बी., थनैला इत्यादि बीमारियाँ नहीं होनी चाहिए।
-पशु की जॉच समय-समय पर पशु चिकित्सक से कराते रहना चाहिए।
-दूध दुहने से पहले पशु के शरीर की अच्छी तरह सफाई कर लेना चाहिए। -दुहाई से पहले पशु के शरीर पर खरैरा करके चिपका हुआ गोबर, धूल, कीचड़, घास आदि साफ कर लेना चाहिए।
-खास तौर से पशु के शरीर के पीछे हिस्से, पेट, अयन, पूंछ व पेट के निचले हिस्से की विशेष सफाई करनी चाहिए।
-दुहाई से पहले अयन की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए एवं थनों को किसी जीवाणु नाशक के घोल की भीगे हुए कपड़े से पोंछ लिया जाय तो ज्यादा अच्छा होगा।
-यदि किसी थन से कोई बीमारी हो तो उससे दूध नहीं निकालना चाहिए।
-दुहाई से पहले प्रत्येक थन की दो चार दूध की धारें जमीन पर गिरा देनी चाहिए या अलग बर्तन में इक्कठा करना चाहिए।
दूध देने वाले पशु के बांधने के स्थान से सम्बन्धित सावधनियाँ :
-पशु बॉधने का व खड़े होने के स्थान पर्याप्त होना चाहिए।
-फर्श यदि सम्भव हो तो पक्का होना चाहिए। यदि पक्का नहीं हो तो कच्चा फर्श समतल हो उसमें गड्डे इत्यादि न हो।
-मूत्र व पानी निकालने की व्यवस्था होनी चाहिये।
-दूध दुहने से पहले पशु के चारों ओर सफाई कर देनी चाहिए। गोबर, मूत्र हटा देना चाहिए।
-यदि बिछावन बिछाया गया हो तो दुहाई से पहले उसे हटा देना चाहिए।
-दूध निकालने वाली जगह की दीवारें, छत आदि साफ होनी चाहिए। उनकी चूने से पुताई करवा लेनी चाहिए तथा फर्श की फिनाईल से धुलाई दो घण्टे पहले कर लेनी चाहिए।
दूध के बर्तन से सम्बन्धित सावधानियाँ :
-दूध दुहने का बर्तन साफ होना चाहिए। उसकी सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। दूध के बर्तन को पहले ठण्डे पानी से, फिर सोडा या अन्य जीवाणु नाशक रसायन से मिले गर्म पानी से, फिर सादे खौलते हुए पानी से धोकर धूप में चूल्हे के ऊपर उल्टा रख कर सुखा लेना चाहिए।
-साफ किए हुए बर्तन पर मच्छर, मक्खियों को नहीं बैठने देना चाहिए तथा कुत्ता, बिल्ली उसे चाट न सके।
-दूध दुहने के बर्तन का मुंह चौड़ा व सीधा आसमान में खुलने वाला नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे मिट्टी, धूल, गोबर आदि के कण व घास-फूस के तिनके, बाल आदि सीधे दुहाई के समय बर्तन में गिर जायेंगे इसलिए बर्तन सकरे मुंह वाले हो तथा मुंह टेढ़ा होना चाहिए।
-दूध दुहने वाले व्यक्ति से सम्बन्धित सावधानियाँ :
दूध दुहने वाला व्यक्ति स्वस्थ होना चाहिए तथा उसे किसी प्रकार की कोई बीमारी न हो।
उसके हाथों के नाखून कटे होने चाहिए तथा दुहाई से पहले हाथों को अच्छी तरह से साबुन से धो लिया गया हो।
-ग्वाले या दूध दुहने वाले व्यक्ति के कपड़े साफ होने चाहिए तथा सिर कपड़े से ढका हो।
-दूध निकालते समय सिर खुजलाना व बात करना, तम्बाकू खाकर थूकना, छींकना, खॉसना आदि गन्दी आदते व्यक्ति में नहीं होनी चाहिए।
उरमूल डेयरी आरपी रामचन्द्र ने राजस्थान सरकार द्वारा चलाई जा रही मंगला पशु बीमा योजना, मुख्यमंत्री दुग्ध सम्बल योजना के बारे में किसानों को जानकारी दी।

Author