बीकानेर शहर कि दो अहम मांगे जो बाईपास के बहाने वर्षों लटकाए रखी गई कल मुख्यमंत्री की गई घोषणाऐं स्वागत योग्य है। विशेष कर बीकानेर के लिए भी कुछ घोषणाएं हुई जिसके लिए शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला जी के प्रयास सराहनीय है।
लेकिन जहां तक मुझे याद है। बीकानेर के इतिहास में रेल मंत्री सी के जाफर बीकानेर मीटर गेज से ब्रोड गेज परिवर्तन के मामले में आए थे और सभी से समझाइश करने के बाद भी बीकानेर के नेतागण बाईपास की मांग पर अडे रहें जिससे वह स्वीकृत राशि अन्य प्रदेश में खर्च कि जाकर वर्षों पिछड़ने के बाद बाईपास की मांग धरी रह गई और शहर के बीच से ही रेल दौड़ रही है।
दुसरा मामला भी ठीक उसी तर्ज पर अडे रहकर लगभग 12 वर्ष का नुक़सान सहन किया जिसमें यूआईटी चेयरमैन हाजी मकसूद अहमद के कार्यकाल में वर्ष 2011-12 में 8 से 9 करोड़ की लागत से कोटगेट फाटक की समस्या का समाधान हो रहा था, उसी काम के लिए अब लगभग 26 करोड अधिक खर्च किए जा रहे हैं। यह काम सिर्फ जिला कलेक्टर द्वारा एनओसी नहीं दिए जाने के कारण ही कार्य नहीं हो सका यही कारण रहा कि उस समय विधायक, सांसद जैसे राजनेताओं ने हाजी मकसूद अहमद का सहयोग नहीं किया सिर्फ चंद व्यापारियों को नुकसान ना हो और व्यापारी खुश रहें । तथा हमारे वोट की राजनीति चलती रहे, बीकानेर की पांच लाख की जनता परेशान हो तो हो वोट हमारे टूटने नहीं चाहिए । इस कारण इस कार्य में बाधा डाली गई थी जो कार्य 8 से 9 करोड़ में हो रहा था आज 35 करोड़ की लागत से भी होने की संभावना नहीं है। उस समय नेताओं का तर्क था कि बरसात के दिनों में इसमें पानी भर जाएगा जबकि इसमें रेन हार्वेस्टिंग पंपिंग स्टेशन और नाला तक एक्स्ट्रा बनाया जा रहा था ताकि बरसात के दिनों में जनता को परेशानी का सामना नहीं करना पड़े । लेकिन बीकानेर की भोली भाली जनता को भी कहा गया की सिर्फ बने तो बाईपास ही बने । अब बाईपास कहां गया । क्या बरसात का पानी अब नहीं भरेगा क्या अब व्यापारियों को परेशानी नहीं होगी । हमारे बीकानेर की यह भी एक पहचान है कि राजनीति करने वाला कोई भी किसी पार्टी संगठन से क्यों न हो उन पर विश्वास कर अपनी सही मांग भुला देते हैं। यही मेरे बीकानेर शहर कि गंगा जमुनी तहजीब और पहचान का एक हिस्सा है। खैर जो भी हो देर आए दुरुस्त आए अंत भला तो सब भला ।