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बीकानेर,भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर एवं इंडियन इंस्टियूट आॅफ साइंस, बेगलूरू के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की जा रही ‘इम्यूनोलाॅजी एण्ड इट्स एप्लीकेशन्स्‘ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आज एनआरसीसी में शुभारम्भ किया गया। जिसमें एनआरसीसी एवं आईआईएससी बेंगलूरू सहित बीकानेर के परिषद अधीनस्थ संस्थानों/केन्द्रों के वैज्ञानिकों, विषय-विशेषज्ञों, विषय संबद्ध अनुसंधान कर्ताओं, प्रतिभागियों के रूप में राजुवास, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, एसपी मेडिकल काॅलेज, राजकीय डूँगर महाविद्यालय, बेसिक काॅलेज के साइंस संकाय के छात्र-छात्राओं ने सहभागिता निभाईं।

उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि डाॅ. अशोक कुमार मोहंती, संयुक्त निदेशक, आईवीआरआई, मुक्तेश्वर ने कहा कि ऊँटों का बायोमेडिकल अनुसंधानों एवं विकास कार्याें में उपयोग हेतु देश एवं विदेश में कई कार्य चल रहे हैं। ऊँटनी के दूध में विद्यमान औषधीय एवं पोषक गुणधर्माें के कारण मानव उपयोग बहुत यह फायदेमेंद सिद्ध हो रहा है। उन्होंने भारत में ऊँटों की घटती संख्या पर चिंता जाहिर करते हुए इस प्रजाति के संरक्षण की महत्ती आवश्यकता जताई तथा कहा कि पशुओं के दूध में करीब 6000 से ज्यादा प्रकार के प्रोटीन पाए जाते हैं जिनके विविध रूप में उपयोग की संभावना पर अनुसंधान की आवश्यकता है। इस क्रम में एंटीस्नेक विनम तैयार करने हेतु नई आणविक तकनीकों के माध्यम से प्रोटीन की विविधता व उपयोगिता को तलाशा जाना चाहिए ताकि भावी समय में एंटीस्नेक विनम तैयार किया जा सके।
केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम संयोजक डाॅ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि हमारे लिए अत्यंत हर्ष एवं महत्व का विषय है कि उष्ट्र प्रजाति से प्राप्त नैनो एंटिबाडिज की उपयोगिता हाल के अनुसंधान कार्याें एवं प्राप्त परिणामों से सिद्ध हुई है और देश-विदेश में कई वैज्ञानिक एवं संस्थाएँ एनआरसीसी के साथ समन्वयात्मक अनुसंधान हेतु आगे आए हैं। डाॅ.साहू ने कहा कि वर्तमान समय में उष्ट्र प्रजाति का मानव एवं पशुओं के विभिन्न रोगों के निदान एवं उपचार में अनेकानेक उपयोगिताएँ सामने आ रही है। केन्द्र ने पूर्व में भी इस दिशा में कई अनुसंधान कार्य किए भी हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र द्वारा उष्ट्र की उपयोगिता को दृष्टिगत रखते हुए एंटी-स्नेक (बांडी) वेनम के उत्पादन हेतु बड़े स्तर पर इसके उपयोग की संभावना को तलाशा जा रहा है। डाॅ.साहू ने आशा जताई कि इस दिशा में और बेहतर परिणाम आने पर ऊँट का उपयोग और इस प्रजाति की मांग बढ़ेगी जिसके फलस्वरूप प्रजाति के संरक्षण एवं विकास को बल मिल सकेगा।
सत्र के दौरान डाॅ.कार्तिक सुनागर, असिस्टेंट प्रोफेसर एवं कार्यक्रम संयोजक ने ‘वाई इंडिया नीड्स ए मच-इम्प्रूव्ड स्नैकबाईट थैरेपी‘ विषयक व्याख्यान में बताया कि देश में सांप प्रजाति के संबंध में विशिष्ट जानकारी जुटाने की महत्ती आवश्यकता है क्योंकि एक ही सांप के जहर का प्रभाव भी अलग-2 जगहों के अनुसार भिन्न-2 होता है। आईआईएससी में एक अलग अनुसंधान केन्द्र की स्थापना प्रस्तावित है जिसमें विभिन्न प्रजातियों के सर्पाें को रखा जाएगा एवं इसके विष का संग्रहण, विश्लेषण एवं अनुसंधान किया जाएगा। साथ ही इससे बेहतर एंटीस्नैक विनम की दिशा प्रशस्त होगी।
केन्द्र के डाॅ.एस.के.घौरूई, प्रधान वैज्ञानिक एवं आयोजन सचिव ने एनआरसीसी द्वारा विषयगत अनुसंधान की व्याख्यान के माध्यम से जानकारी देते हुए कहा कि केन्द्र में हुए ऊँटों से जुड़े अनुसंधान के फलस्वरूप एंटीस्नेक (बांडी) विनम तैयार करने की दिशा में उल्लेखनीय अनुसंधान कार्य किया गया है तथा स्वदेशी थायरोग्लोबुलीन परिमापण किट का विकास, विभिन्न मानवीय रोगों के निदान हेतु नई तकनीकों में विकसित करना, बैक्टिरिया में एंटिबायोटिक रोधी गुणों के विकास को रोकने एवं उनसे होने वाले रोगों के बेहतर ईलाज की संभावनाएँ जागी है।
चर्चा सत्र के दौरान के डाॅ.पी.डी.तॅंवर, जे.एस., एस.पी.मेडिकल काॅलेज, डाॅ.एस.पी.मेहता, प्रधान वैज्ञानिक, एनआरसीई, डाॅ.आर.के.सावल, डाॅ.सुमन्त व्यास, डाॅ.राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक, एनआरसीसी आदि ने विषयगत गहन चर्चा में सक्रिय रूप से भाग लिया। वहीं प्रथम दिवस के दोपहर से राजकीय डूंगर महाविद्यालय में चले तकनीकी सत्रों में आईआईएससी बेंगलूरू के डाॅ.कार्तिक सुनागर, श्री अजिंक्या उनावने, सुश्री सेनजी लक्ष्मी ने अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए।

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