जयपुर,कांग्रेस में जो विद्रोह हुआ उसका असली कारण विधायक दल की बैठक से पहले मुख्यमंत्री पद से अशोक गहलोत का इस्तीफा लेकर इसी बैठक में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री घोषित करने की तैयारी थी । गहलोत और उनके समर्थकों को ये कतई मंजूर नहीं था।
इसी से नाखुश हो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और खाद्य मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास को ले जैसलमेर तनोट माता के दर्शनों के लिए चले गए तथा पीछे से संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल के यहां समर्थकों को एकत्रित करने के लिए आनन फानन में टेंट गाड़ना पड़ा। धारीवाल के साथ अन्य प्रमुख गहलोत समर्थक जलदाय मंत्री डॉ. महेश जोशी आदि ने गहलोत के पक्ष में ताकत दिखाने के लिए अधिक से अधिक विधायकों को जुटाया और सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाने के खुले विरोध का आगाज कर आलाकमान की सचिन को मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति को धराशायी कर डाला। इस सबके बावजूद भी आलाकमान का दबाव आए तो विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने की व्यूह रचना रची गई ताकि मध्यावधि चुनाव में जाने के अलावा कोई रास्ता ही न बचे।
राहुल-सोनिया कहते तो ही गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ते
राजस्थान में सत्ता में बदलाव को लेकर चली कोशिशों को फ्लॉप करने में एक ट्वीस्ट यह भी था कि गांधी परिवार के कहे बिना कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव में अशोक गहलोत के उतरने की कोई मंशा भी नहीं थी। गहलोत राहुल गांधी को मनाने जरूर गए थे , लेकिन राहुल-सोनिया से हुई मुलाकातों में दोनों ने ही गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव लड़ने को कहा ही नहीं। गहलोत नेहरू-गांधी परिवार के घोषित उम्मीदवार बनाये जाने की शर्त पर ही कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हुए थे,पर जब ऐसा हुआ नहीं तो उन्होंने अपने आपको इस रेस से बाहर कर लिया था,लेकिन उसके बावजूद राहुल गांधी के कहने पर सोनिया गांधी ने सीएलपी की मीटिंग बुला गहलोत से इस्तीफा लेने को कह पायलट की ताजपोशी के लिए भेज दिया । गहलोत ने ऊपरी मन से ही विधायक दल की बैठक बुलाने की सहमति दी । इसके बाद बैठक से पहले इस्तीफा लेने के लिए जयपुर पहुंचे पर्यवेक्षकों की कार्य योजना को फैल करने के लिए ही मुख्यमंत्री जैसलमेर चले गए और पीछे से धारीवाल के घर से विद्रोह का बिगुल फूंक डाला।
क्यों बजा धारीवाल के घर से विद्रोह का बिगुल
धारीवाल के यहां भी विधायको का कैम्प इसलिए बनाया गया था ताकि जरूरत पड़ने पर बाड़ेबंदी भी की जा सके। इसके लिए ही बस मंगवाई गई थी तथा एक रिसोर्ट में ठहरने की पूरी तैयारी कर रखी थी। सभी समर्थक विधायको के इस्तीफे के लिए विधानसभा अध्यक्ष के घर जाना और आवश्यकता पड़ने पर बाड़ेबंदी के लिए रिसोर्ट कूच कर जाने का प्लान इसलिए ही बनाया गया था, क्योंकि मुख्यमंत्री के बंगले पर जा विधायक दल की बैठक में विद्रोह उचित नहीं था। वहां एक तरफ गहलोत प्रस्ताव रखते और उनके ही समर्थक विरोध करते तो सारा घटनाक्रम सीधे तौर पर मुख्यमंत्री के खिलाफ ही जाता।
इसलिए रखी तीन शर्ते
गहलोत से इस्तीफा ले पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की व्यूह रचना के सामने आने के चलते ही पर्यवेक्षकों से मिलने गए संसदीय मंत्री शांति धारीवाल, जलदाय मंत्री एवं सरकारी मुख्य सचेतक डॉ.महेश जोशी व खाद्य मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने प्रस्ताव के साथ तीन शर्ते जोड़ने की मांग रखी थी। इनमें पायलट गुट के विद्रोह के समय गहलोत के साथ डटे 102 विधायको में से ही किसी एक को मुख्यमंत्री बनाने, 19 अक्टूबर को होने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव तक नेतृत्व परिवर्तन का कोई फैसला नहीं करने और और समूह में विधायको की रे लेने की शर्त प्रमुख रूप से थी। इन शर्तों को प्रस्ताव के साथ जोड़ने की मांग को पर्यवेक्षकों ने ठुकरा दिया,इसीलिए गहलोत समर्थक विधायक सीएलपी की बैठक में नहीं आए। एक लाइन का प्रस्ताव रख सचिन को मुख्यमंत्री बनाने की इस कवायद को रोकने के लिए ही विधायको के साथ अन्य गहलोत समर्थक धर्मेंद्र राठौड़, पवन गोदारा सरीखे नेता भी जुटे हुए दिखाई दिए। राठौड़ तो विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी के घर इस्तीफा देने पहुंचे विधायको की बस से विक्ट्री की मुद्रा में हाथ उठाए उतरते नजर आए।
यूं हुई पर्यवेक्षकों की रणनीति हवा- हवाई
जानकारों का दावा हैं कि समय रहते अगर गहलोत गुट विद्रोह का बिगुल नहीं फूंकता तो पहली नवरात्री 26 सितंबर 2022 को सचिन पायलट राजस्थान के नए मुख्यमंत्री की शपथ ले चुके होते। पायलट को राहुल गांधी ने केरल यात्रा के दौरान हरी झंडी दे दी थी उसके बाद ही पायलट ने विधायको से मुलाकात का सिलसिला तेज किया था। दूसरी तरफ गहलोत परिवर्तन की रणनीति के लिए पर्यवेक्षकों को भेजने की मंशा को भांप गए थे लिहाजा उन्होंने भी बड़ी चतुराई से आलाकमान के इस फैसले को हवा- हवाई कर डाला। समर्थकों का तर्क है कि जब अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ ही नहीं रहे तो मुख्यमंत्री बदलने के लिए विधायको की रायशुमारी जानने की बैठक बुलाने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता।