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बीकानेर,हमारा देश कोविड महामारी के उतार चढ़ाव का सामना करते हुए अत्यंत कठिन दौर से गुजरने के पश्चात फिर. से अपनी पूरी ऊर्जा के साथ विकास और समृद्धि के पथ पर आगे बढ़ रहा है। यह प्रक्रिया आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान भी जारी है। इस समय हम स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का उत्सव मना रहे हैं, जिसके चलते पूर्वजों द्वारा संकल्पित दृष्टिकोण के साथ तालमेल बिठाते हुए आत्ममंथन करने, देश करने के संदेश का प्रसार किया जा रहा है। 15 दिसम्बर को हमारे देश की एकता के महान सूत्रधार सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि है। उनके विचारों, कृत्यों के माध्यम से ज्ञान का प्रसार करना और उनकी राष्ट्रवादी भावना को अपनाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करना होगा। भारत की जनता स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनके कुशल नेतृत्व तथा स्वतंत्रता के बाद उनकी दूरदर्शिता, बुद्धिमत्ता और राजनीतिक सूझबूझ की सदैव ऋणी रहेगी।

अहमदाबाद के निगम पार्षद के रूप में अपने जीवन की शुरुआत करते हुए पटेल भारत के गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री बने पटेल को शासन और प्रशासन के दायित्वों की बहुत गहरी समझ थी। दृढ़ निश्चय के गुण के कारण वे जनता के बीच एक जिम्मेदार और विवेकपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में उभरे। उन्होंने 1922-23 के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के आंदोलन में जनता को प्रेरित करते हुए स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन को सक्रिय रूप से सुदृढ़ किया।

वारदोली का अहिंसात्मक सत्याग्रह अंग्रेजों के शक्तिशाली साम्राज्य के विरुद्ध किसानों की प्रभावशाली और अनूठी विजय सिद्ध हुआ। इसके पश्चात महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि दी। इस घटना के पश्चात उनके इस कार्य का प्रभाव पूरे भारत पर हुआ एकता और संगठनात्मक कौशल, दृढ़ निश्चय के लिए प्रसिद्ध पटेल ने अनुशासित

व्यक्ति के रूप में 1937 के प्रान्तीय चुनावों सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन में असाधारण योगदान दिया। इसके चलते उन्हें अपने जीवन के बहुत से वर्ष कारावास में व्यतीत करने पड़े। संविधान सभा की मौलिक अधिकार अल्पसंख्यक तथा जनजातीय और अपवर्जित क्षेत्रों से संबंधित परामर्शदात्री समिति के अध्यक्ष के रूप में सरदार पटेल ने मौलिक और अल्पसंख्यक नियमों से संबंधित महत्त्वपूर्ण खंडों के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। यद्यपि, मौलिक कर्त्तव्यों को 1976 के 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से बाद में सम्मिलित किया गया।

ये उनकी अदम्य तत्परता और अति निर्भीकता ही थी कि उन्होंने एक सीमित अवधि में प्रांतीय रियासतों को एकीकृत करने के कार्य को सतर्कतापूर्वक पूरा किया। पटेल के राजनयिक युक्ति कौशल के कारण प्रांतीय राज्यों का भारतीय संघ में एकीकरण करना सुनिश्चित हो सका। इससे देश को संवैधानिक रूपरेखा के अनुरूप संगठित किया जा सका।

लौह पुरुष सरदार पटेल ने भारत को एकीकृत करने संबंधी अपने महान कार्य के पश्चात भारत जैसे विविधता वाले देश में राज्यों के पुनर्गठन, एकीकरण की भावना को सुदृढ़ करने के लिए अपने सुविचारित मंतव्य के अनुसार अखिल भारतीय सेवाओं के रूप में भारत को लौह आवरण देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरदार पटेल ने नवम्बर 1947 में आक्रांताओं द्वारा गिराए गए सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करके भारतीयों की साझा विरासत और परंपराओं को सांस्कृतिक आधार पर जोड़ने का निर्णय किया। इससे भारत के पुनर्जागरण की गाथा और विध्वंस के बाद निर्माण की विजय परिलक्षित होती है।

इस यथार्थ को स्वीकार करना भी युक्तियुक्त होगा कि आज हमें विरासत में जो कुछ मिला है, उसके लिए हम अपने पूर्वजों के ऋणी हैं। उन्होंने इस अवसंरचना को संस्थागत बनाने के लिए कठोर परिश्रम किया था, जिससे संपूर्ण राष्ट्र के लिए नई ऊंचाइयां और बुलंदियां निर्धारित करने के लिए पूर्ण क्षमता प्राप्त करने और आगे बढ़ने के लिए भारत के लोग और सशक्त हों। इस समय चल रहे आजादी के अमृत महोत्सव के भाग के रूप में सरदार पटेल की जयंती एक ऐसा उचित अवसर है, जिसमें हम परिचित और अपरिचित असंख्य यशवंचित नायकों के सर्वोच्च बलिदानों की भी अनुभूति करें। इसके माध्यम से अपनी ओर से श्रेष्ठतम श्रद्धांजलि अर्पित करें और नए भारत के निर्माण के लिए भावी लक्ष्यों को प्राप्त करने की शपथ लें।

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