बीकानेर,लोक चेतना के कवि स्व. गिरजाशंकर पाठक के कार्यों को याद करते हुए लालेश्वर महादेव मन्दिर के स्वामी विमर्शानंद ने कहा कि पाठकजी का अनछपा साहित्य प्रकाशित होना चाहिए ताकि नई पीढी उससे सीख ले सके।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए व्यंग्यकार डॉ.अजय जोशी ने कहा कि गिरिजाशंकर पाठक कला संस्कृति एवं साहित्य शोध संस्थान बीकानेर ने इस कार्यक्रम को आयोजित कर पीढी ऋण चुकाने का कार्य किया है। वे अपने समय के ओज के कवि थे जिनकी कविताएँ समाज को नई दृष्टि, नए विचार देती है। संस्था के सचिव साहित्यकार एवं समीक्षक डॉ.आख़िलानन्द पाठक ने अपने पिताजी के व्यक्तित्व-कृतित्व के बारे में बताते हुए कहा कि उनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित है और अभी विभिन्न विधाओं में कई सारी पुस्तकों का प्रकाशन होना है। अखिलानंद ने बताया कि कवि ‘गिरजेश’ को सुनना सदा ही श्रोताओं को अच्छा लगता था l उनका काव्य संग्रह ‘सहस्रई’ में लोक स्तुति करते हुए उन्होंने लिखा; जेठ मास जिस साल में तपे आदि से-अंत / बारिश की भरमार हो जीव कृषक हर्षन्त।। लोक व्यवहार पर उनके विचार थे; गुणा भाग ऋण जोड़ में मची भागम भाग / तीन पांच मन में जहां अमन वहां कतराय। स्व.गिरजाशंकर पाठक समय के बदलाव को बखूबी समझते थे, किंतु आस्था और विश्वास को वे डिगनेवाली वस्तु नहीं मानते। वे अपनी कविता में लिखते हैं; इस तरह चलो कि राह में / हार कर भी जीत पास हो।
इससे पहले मंच ने कवि गिरिजाशंकर पाठक के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजली की। डॉ.कृष्णा आचार्य ने सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए अपनी रचना प्रस्तुत की। सर्वभाषा काव्यगोष्ठी में वरिष्ठ कवयित्री प्रमिला गंगल ने ब्रज में फाग, आशा शर्मा, लीलाधर सोनी, जुगल किशोर पुरोहित, इप्सिता पाठक, प्रीति पांडेय, कैलाश टाक, बाबू बमचकरी, प्रमोद शर्मा, शिव दाधीच, ब्रजबिहारी पाठक, विश्वकर्मा पांडेय, अभिषेक पाठक, सविता पांडेय, अनामिका पाठक ने अपनी रचनाओं से खूब तालियां बटोरी। कमल रंगा, श्रीगोपाल स्वर्णकार, ताराचंद सोनी, अभिषेक पाठक और नेहा पाठक ने अपर्णा भेंट कर स्वागत किया। कार्यक्रम संयोजक राजाराम स्वर्णकार ने पाठकजी के जीवन संघर्ष को काव्यमयी शब्दों में सुनाते हुए मत कर घणा मटरका रै मूरख गैलसफा गरबीला काळ सिराणे ऊभो देखे थारी राफड़ लीला सुनाकर तालियाँ बटोरी। सभी के प्रति आभार समरेश पाठक ने ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन कवि कैलाश टाक ने किया।