बीकानेर/ मुक्ति संस्था के तत्वावधान में शनिवार को नेपाली उपन्यास ‘ब्रह्मपुत्र का छेउछाउ ‘ के राजस्थानी अनुवाद की पुस्तक ‘ ब्रह्मपुत्र रै आसै-पासै ‘ का लोकार्पण किया गया । लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार , कवि-आलोचक डॉ अर्जुन देव चारण ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कवि- कथाकार राजेन्द्र जोशी थे तथा कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि साहित्यकार नगेन्द्र किराड़ू रहे ।
नेपाली के वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री लील बहादुर क्षेत्री के नेपाली भाषा में लिखित उपन्यास को साहित्य अकादेमी नई दिल्ली से 1987 में पुरस्कार मिला । नेपाली उपन्यास *ब्रह्मपुत्र का छेउछाउ का राजस्थानी भाषा में युवा साहित्यकार डॉ नमामी शंकर आचार्य ने *ब्रह्मपुत्र रै आसै-पासै* शीर्षक से अनुवाद किया जिसको केन्द्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है ।
लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अर्जुन देव चारण ने कहा कि नेपाली उपन्यास का राजस्थानी भाषा में डॉ आचार्य ने बेहतरीन अनुवाद किया है उन्होंने कहा कि लील बहादुर क्षेत्री नेपाली के वरिष्ठ साहित्यकार है, उन्होंने अपने अनुभवों से हम लोगों को इस उपन्यास के माध्यम से असम में रहने वाले नेपालियों के पुर्नवास के साथ उनके रोजगार की समस्या को परिचित कराने का प्रयास किया है। चारण ने कहा कि सरल-सहज भाषा में राजनैतिक द्वंद और अंतर्विरोध को बखूबी लिखा गया है । उन्होंने कहा कि अनुवाद मौलिक रचना में पर काया प्रवेश करने जैसा है, अनुवाद कर्म दोयम दर्जे का रचना-कर्म नहीं है,युवा रचनाकार डॉ नमामी शंकर आचार्य चीजों को सूक्ष्म तरीके से देखने वाले शोधार्थी है,यह उपन्यास राजस्थानी भाषा के पाठकों के लिए डॉ. आचार्य का मुकम्मल प्रयास है।
लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि राजेन्द्र जोशी ने कहा कि साहित्य अकादमी सदैव अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य को अधिक से अधिक राजस्थानी भाषा में प्रकाशित करने का प्रयास कर रही है, जोशी ने कहा कि युवा शोधार्थी डॉ नमामी शंकर आचार्य ने इस उपन्यास को राजस्थानी भाषा में अनुवाद कर इसके माध्यम से असम में रहने वाले नेपालियों की असली तस्वीर को राजस्थानी भाषा के पाठकों से रूबरू करवाने का प्रयास किया है, उन्होंने कहा कि यह उपन्यास स्वाभिमानी लोगों के दर्द का बेहतरीन अभिलेख है ।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि नगेन्द्र किराड़ू ने कहा कि उपन्यास के माध्यम से राजस्थानी पाठकों को नेपाली लोगों द्वारा महसूस की गई हकीक़त से परिचित कराने का कामयाब काम अनुवाद के माध्यम से किया है ।
अनुवादक युवा शोधार्थी डॉ नमामी शंकर आचार्य ने अनुवाद कर्म पर अपनी बात रखते हुए कहा कि *ब्रह्मपुत्र रै आसै-पासै* उपन्यास का अनुवाद करते हुए भावनात्मक रूप से मैं असम में रहने वाले नेपालियों की दास्तान को झेलने वाले लोगों के दिलों में गोते लगाने लगा उन्होंने बताया कि किसी मनुष्य के दर्द को भाषा में उकेरना उसमें शामिल होने जैसी अनुभूति होने लगती है । इस अवसर पर अनेक लोग उपस्थित थे ।