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बीकानेर, अनुवाद साहित्य की सशक्त विधा है। यह विधा मौलिक सृजन से कहीं भी कम नहीं है। अनुवाद विधा भारतीय भाषाओं के साथ-साथ विश्व की भाषाओं के बीच एक सेतु का काम करती है। यह उद्गार राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष श्री गोपाल  कृष्ण व्यास ने सोमवार को स्थानीय सर्किट हाऊस में राजस्थानी के वरिष्ठ कवि कथाकार कमल रंगा की राजस्थानी प्रतिनिधि कविताओं के अनुवाद की पुस्तक ‘अक्षर की काया’ के लोकार्पण अवसर पर व्यक्त  किए।
व्यास ने कहा कि रंगा की कविताओं का संस्कृत एवं हिन्दी भाषा में एक साथ अनुवाद होना एक नव प्रयोग तो है ही साथ ही भाषायी समन्वयक का एक महत्वपूर्ण सृजनात्मक उपक्रम है। रंगा की राजस्थानी कविताएं अपनी एक अलग पहचान के कारण पाठकों में हमेशा चर्चित रही है।
आयोजन में पुस्तक के मूल रचनाकार कमल रंगा ने कहा कि ऐसे अनुवाद के माध्यम से राजस्थानी मान्यता को बल मिलेगा। रंगा ने दोनों अनुवादकों के महत्वपूर्ण कार्य को रेखांकित करते हुए अनुवाद की उपयोगिता बताई।
लोकार्पण समारोह में अक्षर की काया पुस्तक के अनुवादक वरिष्ठ कवि, आलोचक एवं अनुवादक मालचंद तिवाड़ी ने कहा कि अनुवाद कर्म एक सृजनात्मक चुनौती और परकाया प्रवेश है। इस पुस्तक के माध्यम से कमल रंगा की प्रतिनिधि राजस्थानी कविताएं हिन्दी पाठक समाज में अवश्य उपस्थिति दर्ज कराएगी। पुस्तक की अनुवादिका  ईला पारीक ने रंगा की कविताओं का संस्कृत भाषा में अनुवाद कर भाषायी भाईचारे का उदाहरण पेश किया। पारीक ने संस्कृत को जनभाषा बनाने की इच्छा रखते हुए राजस्थानी की महत्वपूर्ण कविताओं को संस्कृत पाठकों तक पहुंचाना एक अच्छा अनुभव बताया।
कार्यक्रम में डॉ फारूख चौहान, प्रो रजनी रमण झा, डॉ अजय जोशी, गंगा सहाय पारीक,जाकिर अदीब, गिरिराज पारीक, राम अग्रवाल, आत्माराम भाटी, भंवर मोदी, सुधा आचार्य, कल्याणी पारीक, डॉ मिर्जा हैदर अली बेग, दामोदर तंवर सहित विभिन्न कला अनुशासनों के गणमान्य लोगों ने कहा कि कोरोना काल में कोरोना एडवाईजरी का पालन करते हुए छोटे परन्तु महत्वपूर्ण आयोजन के माध्यम से तीन भाषाओं की कविताओं का मिलन एक महत्वपूर्ण एवं नवाचार बताया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ फारूख चौहान ने किया और सभी का आभार गिरिराज पारीक ने व्यक्त किया।
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