बीकानेर,विरासत संवर्द्धन संस्थान द्वारा आयोजित दस दिवसीय घूमर प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारम्भ गुरुवार सुबह टी.एम. ऑडिटोरियम में हुआ। उद्घाटन सत्र की शुरुआत में मां सरस्वती व नटराज के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन व माल्यार्पण कामेश्वर प्रसाद सहल, कन्हैयालाल बोथरा, भैरव प्रसाद कत्थक आदि के साथ संस्थान के सक्रिय सदस्यों व प्रशिक्षक पं. पन्नालाल कत्थक व अशोक जमड़ा ने किया। संगीत गुरु पं. पुखराज शर्मा ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की, तबले पर संगत लियाकत अली ने की।
श्रीगंगानगर से पधारे घूमर प्रशिक्षक पंडित पन्नालाल कत्थक व अशोक जमड़ा का कामेश्वर प्रसाद, कन्हैयालाल बोथरा, भैरव प्रसाद व सम्पतलाल दूगड़ ने माल्यार्पण कर स्वागत किया। इस दौरान अतिथियों ने घूमर से जुड़ी बातें साझा की। संस्थान के उपाध्यक्ष कामेश्वर प्रसाद सहल ने कहा कि संगीत की अन्य कलाओं में कलाकार परोक्ष रहता है, गीतकार, संगतकार व गायकों की रिकार्डिंग के पश्चात वे दृष्टिगत नहीं रहते पर नृतक प्रत्यक्ष रहता है। कन्हैयालाल बोथरा ने कहा कि विरासत सम्वर्द्धन संस्थान व टी.एम. ओडिटोरियम में इतनी अच्छी व्यवस्थाऐं उपलब्ध करवाई है व इतने अनुभवी प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण में कम समय में अधिक से अधिक लाभ लेना चाहिए। भैरवप्रसाद कत्थक ने कहा कि संगीत व नृत्य की कलाओं में हमारी राजस्थानी व बीकानेर की अद्भुत विरासत रही है। इसमें पाश्चात्य संक्रमण की जगह इनके संरक्षण व संवर्द्धन की आवश्यकता है। जतनलाल दूगड़ ने प्रशिक्षकों व कलाप्रेमी प्रशिक्षुओं का स्वागत करते हुए कहा कि पंडित पन्नालाल कत्थक में 80 वर्ष की उम्र में भी 20 वर्ष की स्फूर्ति व ताजगी है। इतने अनुभवी प्रशिक्षकों का निर्देशन प्राप्त होना निश्चय ही बीकानेर क्षेत्र में नवप्रशिक्षुओं के लिए सौभाग्य की बात है। पंडित पन्नालाल कत्थक ने परम्परागत कलाओं की विरासत के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए टोडरमल जी लालानी एवं विरासत संवर्द्धन संस्थान द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना की। उन्होंने कहा कि गुरु की पहचान शिष्यों से होती है। शिष्य जब सफलता प्राप्त कर लेते हैं तो गुरु की प्रतिष्ठा स्वतः हो जाती है। कत्थक ने कहा कि घूमर प्रशिक्षण कार्यशाला में युवतियों व महिलाओं की संख्या देखकर ही उत्साह पता चल रहा है। बता दें कि घूमर कार्यशाला में 90 युवतियों व महिलाओं का रजिस्ट्रेशन किया गया है, हालांकि आवेदन लगातार आ रहे हैं।
समारोह का संचालन रोशन बाफना ने किया। उद्धाटन सत्र के साथ ही कार्यशाला के प्रथम दिन के प्रथम सत्र व सायंकालीन सत्र में प्रशिक्षण में 8 साल की छोटी बालिकाओं से लेकर युवतियों व प्रौढ़ महिलाओं तक ने उत्साह से घूमर की प्राथमिक जानकारी व ताल व लय के प्रारम्भिक स्टेप सीखे। 8 मात्रा व 16 मात्रा के ताल के साथ विलम्बित, मध्यम व द्रूत गति के गुर व राजस्थानी घूमर के भाव का प्रशिक्षण प्राप्त किया। नृत्य मुद्रा में नमन करने की विधि का भी प्रशिक्षण प्रदान किया।
10 जून की शाम संस्थान अध्यक्ष टीएम लालाणी की अध्यक्षता में समापन कार्यक्रम होगा। लालाणी 5 जून को बीकानेर पहुंचेंगे, जो 10 जून तक मार्गदर्शन देते रहेंगे। समापन कार्यक्रम में घूमर प्रतियोगिता, कत्थक नृत्य प्रस्तुति व कत्थक से जुड़ी किताब का लोकार्पण होगा।