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बीकानेर. सनातन धर्म में दिन वार विशेष और तिथि का अपना एक महत्व है और उस तिथि विशेष को पर्व के रूप में मनाया जाता है. चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को सनातन धर्म में शीतला माता की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. होली के एक सप्ताह बाद चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला सप्तमी का पर्व मनाया जाता है और इस दिन घरों में अलग अलग प्रकार के पकवान भोजन बनाया जाता है.

ऐसी माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है: दरअसल, मान्यता है कि शीतला माता की पूजा आराधना करने और भोजन अर्पित करने ऐसी माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है और किसी भी प्रकार का चर्म रोग चेचक की तकलीफ और बीमारी से छुटकारा मिलता है. माना जाता है कि माता की पूजा करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. साथ ही जीवन मे सुख समृद्धि बनी रहती है.

क्यों मनाया जाता पर्व जानिए : मान्यता है कि शीतला माता को चेचक की देवी भी कहा जाता है. शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के मध्य में मौसम परिवर्तन के बीच एक दिन यानी कि शीतला सप्तमी को बनने वाला भोजन के दिन सुबह सीता माता की पूजा अर्चना करने के बाद खाना चाहिए. हालांकि इसके वैज्ञानिक कारण भी है कि इससे शरीर में मौसम परिवर्तन से हुए बदलाव का नकारात्मक असर नहीं होता है.

पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि इससे शीतला माता की कृपा भी बनी रहती है और चेचक और अन्य चर्म रोग और संक्रामक रोग की पीड़ा भी नहीं होती. शीतला सप्तमी के दिन दही, रबड़ी, चावल और अन्य पकवान बनते हैं जो अगले दिन यानि अष्टमी के दिन शीतला माता को पूजा अर्चना के साथ भोग लगाए जाते हैं.

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