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बीकानेर,युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी ने मुख्य मुनि के साथ महती अनुरूपा करते हुए सुश्रायक श्रीमान् भवरलाल जी डागा को सेवा करवाने के लिये शांतिनिकेतन से प्रातः 8.20 बजे विमान में पधारे आचार्य प्रवर की भवरलालजी के छोटे भाई श्री विजय सिंह डागा ने उनके स्वास्थ्य के बारे में विस्तृत जानकारी दी। साथ ही परिवार में धर्म के प्रति श्रद्धा के जो बने है उसका श्रेय अपने मा पिताजी एवं बड़े भाई शांतिलाल जी एवं भाभी लीला देवी और विशेष तौर से भाई जी श्री भंवरलाल जी डागा को देते हुए श्री विजय सिंह डागा ने गुरुदेव से कहा कि यह संघीय सेवा की भावना उन पांच लोगों को वजह से परिवार में आई और आज हम उनके जितनी सेवा नहीं कर पा रहे हैं यह उन्होंने स्वीकार किया। साथ श्री भवरलाल जी डागा की दूरदर्शिता से परिवार में व व्यापार में श्री वृद्धि हुई उसकी जानकारी भी गुरुवर के चरणों में निवेदित की। साथ ही भाई साहब की दूरदर्शिता का उदाहरण देते हुए बताया कि मां के जीवन काल में ही मां के नाम के “ट्रस्ट” का गठन किया। उस समय ऐसी आर्थिक स्थिति भी नहीं थी उसके बावजूद भी आपकी दूरदर्शिता से आज Daga Palace [ Daga Paradise के नाम से दो भवन चल रहे हैं जो संघ व समाज की सेवा के काम आ रहे है। साथ ही गुरुवर को बताया कि भाई साहब ने ऐसा संविधान बनाया है कि इस ट्रस्ट की आमदनी परिवार का कोई भी सदस्य अपने निजी उपयोग में खर्च नहीं कर सकेगा, सिर्फ संघ व समाज की सेवा ही करनी है।

गुरुदेव ने पूरी मात धैर्यपूर्वक सुनते हुए अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। गुरदेव ने बहुत ही कृपा करके श्री भवरलाल जी से पूछा कि आपको क्या कहना है। इस अवस्था में भी हागा जी ने गुरुदेव से चौखले में मागा करने का निवेदन किया। इससे पता चलता है कि डागाजी की सोच आज भी स्वयं के बारे में न होकर

समाज के बारे में है। इसके पश्चात् गुरुदेव ने भंवरलाल जी से स्वास्थ्य के बारे में पूछा। चित्त समाधि में रहने की प्रेरणा दी। गुरुदेव ने पूरी गीतिका के संगान के साथ वृहद मंगलपाठ व कुछ मंत्रों का उच्चारण करते हुए लोगस के लोकों का भवरलाल जी

व पूरे परिवार को श्रवण करवाया। श्री विजय सिंह डागा बताया कि डागा परिवार के लिये आज सोने का सुरज ऊगा है क्योंकि मेरे घर में गुरुओं के पगलिये हुए इससे मेरा भी जीवन धन्य हो गया इसके बाद स्व. बालचन्द जी, माणकचन्द जी व सन्तोकचन्द जी डागा के सभी उपस्थित पारिवारिक जन ने गुरुदेव के प्रति अनन्त अनन्त कृतज्ञता ज्ञापित की।

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